कल रात शिक्षा व्यवस्था पर व्हाट्सअप ग्रुप में चर्चा हो रही थी।जिसमे मैंने भी भाग लिया। उस चाच के दौरान मैंने जो बातें कही वो यहाँ शेयर कर रहा हूँ।
[18/12, 10:28 PM] deepakrajmirdha: अभी ऐसा है कि कई लोग अपने बच्चों को डॉक्टर या इंजीनियर आईएएस आईपीएस बनाते हैं। पर से ज्यादा लोग प्रयास करते हैं। अधिकतर प्रयास करते हैं पर सफल नहीं होते कुछ चुनिंदा लोग ही सफल होते हैं। हर क्षेत्र में आपके सफल होने का एक निश्चित चांस होता है संभावना होती है। अगर आपको पता चले कि किस क्षेत्र में संभावना ज्यादा है तो आप उस क्षेत्र में कम मेहनत करके भी अधिक परिणाम ला सकते हैं।
कई क्षेत्र ऐसे होते हैं जिसमें संभावनाएं कम होती हैं और परिणाम भी कम होते हैं।
परीक्षण करके ये बताए जा सकता है कि किस क्षेत्र में आप की संभावना ज्यादा है। यह पता किया जा सकता है कि किस क्षेत्र में मेहनत करने से ज्यादा परिणाम आएगा तो आप उसे क्षेत्र में काम करिएगा। चीन अमेरिका कनाडा फ्रांस रूस जैसे देशों में अभी सामान्य हो गया है। वहां पर बच्चों का टैलेंट चेक किया जाता है बचपन में ही और उनको उसी टैलेंट के अनुसार काम करने के लिए और पढ़ाई करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। इससे बच्चा मन लगाकर मेहनत करता है और सफलता के ज्यादा चांस हो जाते हैं। क्योंकि आप किसी को कुछ भी नहीं बना सकते हैं और व्यक्ति पहले से अपने गुण ले कर आता है आप उन दोनों में जरूरी विकास कर सकते हैं। जैसे एक नेता को आप मोटिवेशन ना भी दें तभी वह आगे बढ़ेगा। और आगे जाकर वह एक नेता बनेगा। भले ही उसके पास समस्याएं हो पर वह उस को पार करने का। कई बार एक नेता का बेटा नेता नहीं बन पाता है क्योंकि उसमें वह गुण नहीं होता है। कोशिश की जाती है पर वह आगे नहीं बढ़ सकता है क्योंकि उसमें नेतृत्व करने का गुण है ही नहीं। जो व्यक्ति इस क्षेत्र में काम करने के लायक है उसको उसी क्षेत्र में घर कैरियर बनाने का अभी तलाशने का मौका मिले तो सफलता की संभावना ज्यादा होती है इसको पता करने के बहुत सारे तरीके जिसमें से मेरा भी एक तरीका है और आधी दुनिया में अधिकतर लोग इसी का प्रयोग करके अपने प्राइस अपने घर के लोग अपने कस्टमर्स का डिटेल्स लेते हैं। और उसी के अनुसार स्ट्रैटजी बनाते हैं।
बहुत सारे इन्वेंटरी टेस्ट की तरह यह भी एक सामान्य टेस्ट है जिसका प्रयोग करके अभिरुचि या एटीट्यूट जैसे सच कहें तो आप इस एप्टीट्यूड कहा जाता है कि जानकारी मिलती है। इससे आगे बढ़ने के लिए एक दिशा में मिल जाती है जिस पर काम करके कम मेहनत में ज्यादा रिजल्ट लाया जा सकता है। अगर पता चल जाए कि अगर यह बच्चा एक अच्छा इंजीनियर बनेगा तो कोई भी इस पर खर्च कर सकता है सरकार भी इस पर खर्च कर सकती है। पर कोई बच्चा एक चित्रकार बनने का गुण रखता है और उसको जबरदस्ती इंजीनियर बनाया जाता है तो आज कल वह आगे जाकर फेल हो जाएगा। ऐसी स्थिति से बचने से पहले उसका प्रतिभा परीक्षण करना चाहिए और उसके अभिरुचि जानने चाहिए।
प्राचीन भारत की शिक्षा व्यवस्था की पड़ताल कीजिएगा तो पाइएगा इसी तरह गुरुकुल चलते थे और उन गुरुकुल से जो विद्यार्थी निकलते थे वह बहुत ही इंटेलिजेंट होते थे।
प्राचीन भारत में गुरुकुल में बच्चों को पढ़ाया जाता था उसका एक करिकुलम होता था और एडमिशन का प्रोसीजर होता था। 5 साल 5 महीना 5 दिन जब बच्चा का होता था उसी दिन उसका गुरुकुल में एडमिशन होता था। उसके पहले बच्चा घर में खेलता कुदता था।
जब बच्चा स्कूल में एडमिशन लेता था जिसे गुरुकुल कहा जाता था तो 2 साल तक उसे गुरुकुल में केवल खेलने कूदने का काम दिया जाता था। इन 2 सालों में विशेष खेल के द्वारा बच्चों की अभिरुचि को जांचा जाता था और इसके लिए अलग से व्यक्ति नियुक्त होते थे। इन खेलों से यह तय होता था कि बच्चा किस क्षेत्र में पढ़ाई करेगा तो सफल हो सकता है और उसका ज्ञान किस क्षेत्र में ज्यादा उपयोगी होगा। अब इस तरह बच्चे को अलग अलग डिसिप्लिन में शुरू से ही बांट दिया जाता था। बच्चे अलग-अलग कक्षाओं में पढ़ते थे और अलग अलग ज्ञान प्राप्त करते थे। समय-समय पर परीक्षाएं होती थी और उनको अगली कक्षा में भेजा जाता था। परीक्षा का तरीका विशेष होता था जो अभी नहीं होता है। परीक्षा में बच्चों को कुछ काम दिया जाता था जो उनका पढ़ाई से जुड़ा था। अगर बच्चे उस काम को पूरा कर लेते थे तो उन्हें अगली कक्षा में प्रमोट किया जाता था वरना फिर से पुरानी कक्षा में पढ़ने के लिए भेज दिया जाता था। रिटेन एग्जाम और नंबर की व्यवस्था नहीं थी। इसी तरह अलग स्तर के लेवल थे। इन गुरुकुलों में रहकर जो पढ़ाई करते थे उन्हे ब्रहमचारी कहा जाता था। अंग्रेजी में जिसे आप बैचलर कहते हैं। इस तरह बैचलर ऑफ आर्ट्स बेचलर ऑफ साइंस इस शब्द का मूल भारतीय गुरुकुल व्यवस्था है।
ग्रेडिंग देना यह एक मूर्खतापूर्ण व्यवस्था है और पूरी दुनिया में इस व्यवस्था को खत्म किया जा रहा है।
एक बच्चा जिसका एग्जाम में 32 नंबर आया वह फेल हो गया और जिसका 33 नंबर आया वह पास हो गया और अगले क्लास में चला गया। दोनों के कैरियर में अब बहुत बड़ा गैप आ जाएगा। जबकि 32 नंबर और 33 नंबर लाने वाले बच्चे का मानसिकता में आईयू में कोई अंतर नहीं है।
कोई बच्चा बहुत ही तेजी के साथ लिख सकता है और कुछ बच्चे धीरे धीरे लिखते हैं पर दोनों के लिए एक ही समय होता है। जबकि धीरे लिखना या तेज लिखना का टैलेंट से कोई लेना देना नहीं है। तो हर बच्चे को एक ही जैसा समय क्यों मिलना चाहिए।
तो वर्तमान में जो व्यवस्था करनी है वह इस तरह से होगी कि बच्चे स्कूल में जाएंगे स्कूल फिर भी वही काम करेंगे जो गुरुकुल करते हैं। शुरुआत में बच्चों को पढ़ाई का बोझ नहीं देंगे उनका ब्रेन मैपिंग किया जाएगा और अभिरुचि की जानकारी ली जाएगी। अभिरुचि का पता चलने पर बच्चे को उसी दिशा में आगे बढ़ाया जाएगा। एग्जामाएंगे लेकिन वो रिटर्न नहीं होकर स्पेशल होंगे और टास्क बेसड होंगे।
इस तरह से जब मात्रभाषा में पूरी तैयारी करवाई जाएगी तो 10 साल में जो बच्चे स्कूल से पास होकर निकलेंगे वह अभी की व्यवस्था में 30 साल की पढ़ाई किए हुए व्यक्ति के बराबर होंगे।
[18/12, 10:47 PM] deepakrajmirdha: यह मुश्किल नहीं है पर आप की शिक्षा व्यवस्था आप को कमजोर करना चाहती है मजबूर करना चाहती है मजबूत करना नहीं चाहती है इसलिए कुछ भी इनोवेटिव सोचती नहीं है। अंग्रेजों का एक शोषण करने का हथियार है। बहुत ही सामान्य तरीके से काम करके इसको एक अच्छा प्रेम वर्क दिया जा सकता है। ताकि अच्छे टैलेंट बाहर आ सके। हर व्यक्ति टैलेंटेड है आइंस्टीन की यह बात सच है अगर आप हर व्यक्ति का टैलेंट को जानकर उसका उपयोग करना जानते हैं। मेरा इन्वेंटरी टेस्ट एक इसी के जैसा टूल है जिसका प्रयोग करके आप इस सिस्टम को डेवलप कर सकते हैं। प्राइवेट स्कूल इसका प्रयोग कर सकते हैं सरकारी स्कूल में तो यह जरुरी होना चाहिए। DAV में या अनिवार्य है पर भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ चुका है। पढ़ाई का अर्थ आज मैं बेरोजगारों को पैदा करना रह गया है जिस से देश का भला होने वाला नहीं है।
[18/12, 10:28 PM] deepakrajmirdha: अभी ऐसा है कि कई लोग अपने बच्चों को डॉक्टर या इंजीनियर आईएएस आईपीएस बनाते हैं। पर से ज्यादा लोग प्रयास करते हैं। अधिकतर प्रयास करते हैं पर सफल नहीं होते कुछ चुनिंदा लोग ही सफल होते हैं। हर क्षेत्र में आपके सफल होने का एक निश्चित चांस होता है संभावना होती है। अगर आपको पता चले कि किस क्षेत्र में संभावना ज्यादा है तो आप उस क्षेत्र में कम मेहनत करके भी अधिक परिणाम ला सकते हैं।
कई क्षेत्र ऐसे होते हैं जिसमें संभावनाएं कम होती हैं और परिणाम भी कम होते हैं।
परीक्षण करके ये बताए जा सकता है कि किस क्षेत्र में आप की संभावना ज्यादा है। यह पता किया जा सकता है कि किस क्षेत्र में मेहनत करने से ज्यादा परिणाम आएगा तो आप उसे क्षेत्र में काम करिएगा। चीन अमेरिका कनाडा फ्रांस रूस जैसे देशों में अभी सामान्य हो गया है। वहां पर बच्चों का टैलेंट चेक किया जाता है बचपन में ही और उनको उसी टैलेंट के अनुसार काम करने के लिए और पढ़ाई करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। इससे बच्चा मन लगाकर मेहनत करता है और सफलता के ज्यादा चांस हो जाते हैं। क्योंकि आप किसी को कुछ भी नहीं बना सकते हैं और व्यक्ति पहले से अपने गुण ले कर आता है आप उन दोनों में जरूरी विकास कर सकते हैं। जैसे एक नेता को आप मोटिवेशन ना भी दें तभी वह आगे बढ़ेगा। और आगे जाकर वह एक नेता बनेगा। भले ही उसके पास समस्याएं हो पर वह उस को पार करने का। कई बार एक नेता का बेटा नेता नहीं बन पाता है क्योंकि उसमें वह गुण नहीं होता है। कोशिश की जाती है पर वह आगे नहीं बढ़ सकता है क्योंकि उसमें नेतृत्व करने का गुण है ही नहीं। जो व्यक्ति इस क्षेत्र में काम करने के लायक है उसको उसी क्षेत्र में घर कैरियर बनाने का अभी तलाशने का मौका मिले तो सफलता की संभावना ज्यादा होती है इसको पता करने के बहुत सारे तरीके जिसमें से मेरा भी एक तरीका है और आधी दुनिया में अधिकतर लोग इसी का प्रयोग करके अपने प्राइस अपने घर के लोग अपने कस्टमर्स का डिटेल्स लेते हैं। और उसी के अनुसार स्ट्रैटजी बनाते हैं।
बहुत सारे इन्वेंटरी टेस्ट की तरह यह भी एक सामान्य टेस्ट है जिसका प्रयोग करके अभिरुचि या एटीट्यूट जैसे सच कहें तो आप इस एप्टीट्यूड कहा जाता है कि जानकारी मिलती है। इससे आगे बढ़ने के लिए एक दिशा में मिल जाती है जिस पर काम करके कम मेहनत में ज्यादा रिजल्ट लाया जा सकता है। अगर पता चल जाए कि अगर यह बच्चा एक अच्छा इंजीनियर बनेगा तो कोई भी इस पर खर्च कर सकता है सरकार भी इस पर खर्च कर सकती है। पर कोई बच्चा एक चित्रकार बनने का गुण रखता है और उसको जबरदस्ती इंजीनियर बनाया जाता है तो आज कल वह आगे जाकर फेल हो जाएगा। ऐसी स्थिति से बचने से पहले उसका प्रतिभा परीक्षण करना चाहिए और उसके अभिरुचि जानने चाहिए।
प्राचीन भारत की शिक्षा व्यवस्था की पड़ताल कीजिएगा तो पाइएगा इसी तरह गुरुकुल चलते थे और उन गुरुकुल से जो विद्यार्थी निकलते थे वह बहुत ही इंटेलिजेंट होते थे।
प्राचीन भारत में गुरुकुल में बच्चों को पढ़ाया जाता था उसका एक करिकुलम होता था और एडमिशन का प्रोसीजर होता था। 5 साल 5 महीना 5 दिन जब बच्चा का होता था उसी दिन उसका गुरुकुल में एडमिशन होता था। उसके पहले बच्चा घर में खेलता कुदता था।
जब बच्चा स्कूल में एडमिशन लेता था जिसे गुरुकुल कहा जाता था तो 2 साल तक उसे गुरुकुल में केवल खेलने कूदने का काम दिया जाता था। इन 2 सालों में विशेष खेल के द्वारा बच्चों की अभिरुचि को जांचा जाता था और इसके लिए अलग से व्यक्ति नियुक्त होते थे। इन खेलों से यह तय होता था कि बच्चा किस क्षेत्र में पढ़ाई करेगा तो सफल हो सकता है और उसका ज्ञान किस क्षेत्र में ज्यादा उपयोगी होगा। अब इस तरह बच्चे को अलग अलग डिसिप्लिन में शुरू से ही बांट दिया जाता था। बच्चे अलग-अलग कक्षाओं में पढ़ते थे और अलग अलग ज्ञान प्राप्त करते थे। समय-समय पर परीक्षाएं होती थी और उनको अगली कक्षा में भेजा जाता था। परीक्षा का तरीका विशेष होता था जो अभी नहीं होता है। परीक्षा में बच्चों को कुछ काम दिया जाता था जो उनका पढ़ाई से जुड़ा था। अगर बच्चे उस काम को पूरा कर लेते थे तो उन्हें अगली कक्षा में प्रमोट किया जाता था वरना फिर से पुरानी कक्षा में पढ़ने के लिए भेज दिया जाता था। रिटेन एग्जाम और नंबर की व्यवस्था नहीं थी। इसी तरह अलग स्तर के लेवल थे। इन गुरुकुलों में रहकर जो पढ़ाई करते थे उन्हे ब्रहमचारी कहा जाता था। अंग्रेजी में जिसे आप बैचलर कहते हैं। इस तरह बैचलर ऑफ आर्ट्स बेचलर ऑफ साइंस इस शब्द का मूल भारतीय गुरुकुल व्यवस्था है।
ग्रेडिंग देना यह एक मूर्खतापूर्ण व्यवस्था है और पूरी दुनिया में इस व्यवस्था को खत्म किया जा रहा है।
एक बच्चा जिसका एग्जाम में 32 नंबर आया वह फेल हो गया और जिसका 33 नंबर आया वह पास हो गया और अगले क्लास में चला गया। दोनों के कैरियर में अब बहुत बड़ा गैप आ जाएगा। जबकि 32 नंबर और 33 नंबर लाने वाले बच्चे का मानसिकता में आईयू में कोई अंतर नहीं है।
कोई बच्चा बहुत ही तेजी के साथ लिख सकता है और कुछ बच्चे धीरे धीरे लिखते हैं पर दोनों के लिए एक ही समय होता है। जबकि धीरे लिखना या तेज लिखना का टैलेंट से कोई लेना देना नहीं है। तो हर बच्चे को एक ही जैसा समय क्यों मिलना चाहिए।
तो वर्तमान में जो व्यवस्था करनी है वह इस तरह से होगी कि बच्चे स्कूल में जाएंगे स्कूल फिर भी वही काम करेंगे जो गुरुकुल करते हैं। शुरुआत में बच्चों को पढ़ाई का बोझ नहीं देंगे उनका ब्रेन मैपिंग किया जाएगा और अभिरुचि की जानकारी ली जाएगी। अभिरुचि का पता चलने पर बच्चे को उसी दिशा में आगे बढ़ाया जाएगा। एग्जामाएंगे लेकिन वो रिटर्न नहीं होकर स्पेशल होंगे और टास्क बेसड होंगे।
इस तरह से जब मात्रभाषा में पूरी तैयारी करवाई जाएगी तो 10 साल में जो बच्चे स्कूल से पास होकर निकलेंगे वह अभी की व्यवस्था में 30 साल की पढ़ाई किए हुए व्यक्ति के बराबर होंगे।
[18/12, 10:47 PM] deepakrajmirdha: यह मुश्किल नहीं है पर आप की शिक्षा व्यवस्था आप को कमजोर करना चाहती है मजबूर करना चाहती है मजबूत करना नहीं चाहती है इसलिए कुछ भी इनोवेटिव सोचती नहीं है। अंग्रेजों का एक शोषण करने का हथियार है। बहुत ही सामान्य तरीके से काम करके इसको एक अच्छा प्रेम वर्क दिया जा सकता है। ताकि अच्छे टैलेंट बाहर आ सके। हर व्यक्ति टैलेंटेड है आइंस्टीन की यह बात सच है अगर आप हर व्यक्ति का टैलेंट को जानकर उसका उपयोग करना जानते हैं। मेरा इन्वेंटरी टेस्ट एक इसी के जैसा टूल है जिसका प्रयोग करके आप इस सिस्टम को डेवलप कर सकते हैं। प्राइवेट स्कूल इसका प्रयोग कर सकते हैं सरकारी स्कूल में तो यह जरुरी होना चाहिए। DAV में या अनिवार्य है पर भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ चुका है। पढ़ाई का अर्थ आज मैं बेरोजगारों को पैदा करना रह गया है जिस से देश का भला होने वाला नहीं है।
शिक्षा व्यवस्था पर एक चर्चा
Reviewed by deepakrajsimple
on
December 18, 2017
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