सनातन आर्य वैदिक हिन्दू धर्म का मूल क्या है और आप विषैले वामपंथ से कैसे बचें ?
वेद कहते हैं;
संगच्छध्वं संवदध्वं
सं वो मनांसि जानताम्
देवा भागं यथा पूर्वे
सञ्जानाना उपासते
जैसा कि पहले भी लिखा गया है कि, वेद भी शब्द ब्रह्म है । अत: अनादि है । भगवान भी उसके वक़्ता हैं , रचयिता नहीं ।
वेद हमें स्पष्ट आज्ञा देते हैं हमारे आचरण के लिए ।
संगच्छध्वं का अर्थ है सनातन आर्य वैदिक हिन्दू क़दम से क़दम मिलाकर एक संग चलें ।
संवदध्वं का अर्थ है सभी लोग एक श्वर में बोलो । जहाँ तक संभव है मतभेद न बनाओ ।
जहाँ तक भी भारत भूमि पर पैदा हुआ कोई भी मत दूसरे हिन्दुओं के साथ मिल सकता हो, उसे मिलाओ । उनके सांथ और संग और एक श्वर में रहो ।
और ध्यान दीजिए , मरे और सड़े हुए प्राणियों का माँस खाने वाले पक्षी गिद्ध का भी हमारे प्रभू राम ने अंतिम संस्कार किया । उसको उठाया, अपने गले से लगाया, और उसको अपना प्यार दिया और भरपूर सम्मान दिया ।
फ्रॉड वामपंथी और उनके एजेंट ( NGT वाले ) हमें प्रकृति की संरक्षणा का ज्ञान न दें ।
गिद्ध को गले लगाने वाली सभ्यता को छुआछूत का ज्ञान न पिलाया जाय । आब्दी वाले दूर रहें ।
दूसरी बात, आपको ध्यान रखनी है कि अज्ञानता का अर्थ कुछ और होता है और भ्रम का अर्थ कुछ और होता है ।
जैसे कोई नाश्तिक है या उसे गुरू कृपा नहीं मिली तो उसे हम अज्ञानी कह सकते हैं । पर यदि वह कांगी वामी आपियों के चक्कर में पड़ गया तो उसे हमारे वेद भ्रमित कहते हैं ।
समझिए । रस्सी को न पहचानना अज्ञानता है और उसको सर्प मानना भ्रम है ।
और ध्यान से समझिए । किसी वस्तु के मूल रूप को न समझना अज्ञान है ।और उसको दूसरे का दूसरा समझ बैठना भ्रम है ।
वामपंथियों के फैलाए भ्रम में जब आप पड़ते हैं तब वह भ्रम आपकी कार्य वृत्ति बन जाता है, यह अंत: करण में बैठ जाता है ।
बचिए, विषैले वामपंथ से । जुड़िए, राम की कीर्ति से ।
सनातन वैदिक आर्य हिन्दू ( दूसरी कड़ी )
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देखिए ज्ञान के प्यास का नाम ही जिज्ञासा है । धर्म के प्रति आपको जिज्ञासा होगी तब ही आप कुछ सीख सकेगें ।
"मोक्ष" के प्यास का अर्थ "मुमुक्षा" है ।
और सामान्यतः हमारे ग्रंथ , "अथ" से प्रारंभ होते है ।
अथ के भी तीन अर्थ होते हैं । पहला, ग्रंथ प्रारम्भ हो रहा है ।
दूसरा "अथ" शब्द मंगलवाची है । कल्याणकारी है । मंगलकारी क्यों है? क्योंकि ओम और अथ दोनो भगवान के ही नाम हैं । ब्रह्मा जी के मुख से पहला शब्द ओम अथ ही निकला था ।
( ब्रह्मा जी कथा अगली पोस्ट में )
"अथ" का तीसरा अर्थ भक्ति और उपासना का निरूपण भी है ।
भारत में जो वर्णाश्रम व्यवस्था थी । उसमें आप "वर्ण" की जितनी चाहे व्याख्या कर लीजिए पर ध्यान दीजिए कि यह एक "आश्रम" व्यवस्था थी ।
"आश्रम" का वैदिक अर्थ पता है आपको?
आश्रम का अर्थ होता है, "मर्यादित श्रम" ।
श्रम के साथ "आ" उपसर्ग लगा हुआ है । और जो " आ" उपसर्ग यहाँ पर है, वह मर्यादा का वाचक है ।
अर्थात मर्यादा पूर्वक किया हुआ श्रम , आश्रम कहलाता है ।
दूसरा शब्द है "सती" । सती का अर्थ आत्महत्या या चिता में कूदना नहीं है ।
सतीत्व का मूल तत्व है सती । और सत्यनिष्ठा पत्नी को सती कहा जाता था ।
सावित्री को सती सावित्री कहा गया क्योंकि वह सत्यनिष्ठ बनीं रही । आग में कूद कर जान नहीं देना पड़ा सती बनने के लिए ।हज़ारों उदाहरण हमारे सामने हैं जब औरतों को जीवित ही सती कहा जाता था । गोरे अंग्रेज़ों और वामपंथियों के फ्रॉड से बचिए । मर्यादा का पालन करिए ।
जौहर , युद्ध का भाग था । जिसमें, योद्धाओं की पत्नियाँ और औरतें ज़िन्दा शांतिदूतों के हाथ न पकड़े जाने का व्रत लेतीं थी । जौहर का पूर्ण होना विजय का प्रतीक था । गौरव और आत्मसम्मान का प्रतीक था। सती, एक पवित्रतम शब्द है जो बरखा दत्त जैसी औरतों को कभी भी समझ में नही आएगा ।
अपनी थाती पर गर्व करें । लोगों को जोड़े । राम की कीर्ति गाएँ और कर्तव्य का निर्णय एकांगी नहीं होता, इसका सदैव ही ध्यान रखें ।
सनातन आर्य वैदिक हिन्दू ( तीसरी कड़ी )
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भारतीय क्षत्रियों ने सदैव ही क्षात्र धर्म का पालन किया ( कुछ अपवादों को छोड़कर ) है ।तभी भारत में
हिन्दू जीवित हैं । पर्शिया की 5000 वर्ष सभ्यता मिट गई । यूनान , महान रोमन साम्राज्य और हज़ारों वर्ष पुरानी मिश्र की सभ्यता भी धूल धूसरित हो गई ।
और दूसरी बात ध्यान रखिए , हिन्दु वैदिक सनातनी आर्यों को तारने वाली पतित पावनी गंगा , भारत भूमि पर एक क्षत्रिय राजा भगीरथ के प्रयासों से ही आई ।
अत: सभी वर्णों के लोग संगठित रहें ।
वेद कहते हैं कि , भेद के मूल में निर्भेद होता है ।
अपने मन से अहंकार हटाइए । सनातन आगम ग्रंथों के अनुसार "देव" शब्द का अर्थ "इन्द्रिय" होता है ।
यदि आप सोचते हैं कि आप अपने अहंकार और मन के द्वारा अपने इन्द्रियों को सुख पहुँचा रहे है तो आप भयंकर भूल कर रहे हैं ।
अहंकार , स्वंयम के मन का शत्रु है ।और अहंकार अपनी इन्द्रियों का शत्रु है ।
इसीलिए, अहंकार को देवरिपु भी कहा गया है ।
पाँच कर्म इंद्रियों और पाँच ज्ञान इन्द्रियों रूपी , दसों अहंकार का दमन करिए । अपने अंदर के रावण को मारिए ।
मन में राम का रूप और वाक् पर राम का नाम और लौकिक जीवन में संघ की ( संगठन ) शक्ति ही आपका कल्याण कर सकती है । ध्यान रखिए ज्ञान वैराग्य और भक्ति , इसीलिए वेदों को वेदत्रयी भी कहा गया है ।
केवल ज्ञान से कुछ नहीं होने वाला, केवल वैराग्य से स्वंयम का भला ही कर पाएँगे , इसीलिए वेदत्रयी के सिद्धांत पर अडिग रहिए ।
सदैव ही ईश्वर में विश्वास रखिए ।
आदावन्ते च यन्नास्ति वर्तमानेऽपि तत्तथा ।
क्योकि श्रुति कहतीं हैं जो आदि, मध्य, अन्त में नहीं है वह वर्तमान में भी नहीं है।
राज शेखर तिवारी
Hr. deepak raj mirdha
yog teacher , Acupressure therapist and blogger
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विषैले वामपंथ से कैसे बचें ?
Reviewed by deepakrajsimple
on
February 11, 2018
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