दुनिया का सबसे विवादित स्थल

दुनिया का सबसे विवादित स्थल अयोध्या ही नही नही                  बैतूल मुक़ददस है।

यहूदियों की संस्कृति अति प्राचीन है यहूदियों के धर्म ग्रन्थ ओल्ड टेस्टा मेंट के अनुसार यहूदियों के पहले पैगम्बर अब्राहम ईसा से लगभग 2000 वर्ष पूर्व के है इनके बेटे का नाम इसहाक और पोते का नाम जेकब था जेकब ने यहूदियों की अनेक जातियों (कहते हैं लगभग 12 जातियां थीं ) को एक किया | जेकब का दूसरा नाम इजरायल था अत: इजरायल का नामकरण उन्हीं के नाम पर हुआ जेकब के एक बेटे का नाम यहूदा था उनके वंशज ज्यूज अर्थात यहूदी कहलाये इसीलिए राष्ट्र का नाम इजरायल और रेस का नाम यहूदी है| इनका धर्म ग्रन्थ 'तनख' कहलाता है यह हिब्रू भाषा में लिखा गया था | बाद में ईसाईयों की बाईबिल में इस धर्म ग्रन्थ को शामिल कर लिया इसे ओल्ड टेस्टामेंट कहते हैं जिसमें तीन ग्रन्थ शामिल हैं पहला ग्रन्थ 'तौरेत' है इसमें धर्म क्या है , धर्म की व्याख्या की गयी है दूसरे ग्रन्थ में यहूदी पैगम्बरों की कहानियाँ हैं तीसरा ग्रन्थ पवित्र लेख कहलाता है| पहले धर्म शास्त्र श्रुति के सहारे एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में चलता रहा लेकिन बाद में तनख की विधिवत रचना 444 ई.पूर्व से 100 ई. पू. तक की गयी ऐसी मान्यता है |
330 में ईरान पर सिकन्दर ने हमला कर उसने ईरान को जीता ही नहीं वहाँ के हखामनी राजवंश को समाप्त कर किसी को नहीं बख्शा यहाँ तक छोटे बच्चे को भी मार डाला | उसी के सेनापति तोलेमी प्रथम ने 320 ई.पू. (सिकन्दर का सेनापति) ने इजरायल और यहूदा पर हमला कर उन पर अधिकार कर लिया |198 ई.पू में यूनानी परिवार के ही सेल्यूकस राजवंश के अंतीओकस चतुर्थ के सत्ता ग्रहण करते ही यहूदियों ने उसके विरुद्ध जेरूसलम में विद्रोह किया |विद्रोह का दमन करने के लिए हजारो यहूदियों को मार डाला यहूदियों के पवित्र डेविड टेम्पल को लूट लिया 'तौरेत' (धर्म ग्रन्थ ) की जो भी प्रति मिली उसे भी जला दिया| यहूदी धर्म के पालन पर रोक लगा कर यहूदियों के धर्म ,आस्था और आत्म सम्मान पर गहरी चोट लगी लेकिन 142 ई.पू .में ही यूनानियों से लड़ कर यहूदियों के नेता ने उनको आजाद करवा दिया | आजादी अधिक समय तक चल नहीं सकी रोमन ने फिर से इजरायल पर फिर से अधिकार ही नहीं किया अबकी बार एक-एक यहूदी की हत्या कर दी|
इजरायल पर अरबों ने भी अधिकार किया 14वीं शताब्दी से ओटोमन एम्पायर का पूरे मिडिल ईस्ट पर कब्जा था लेकिन 19 वीं शताव्दी के बाद साम्राज्य कमजोर पड़ने लगा पूरे योरोप में भी उग्र राष्ट्रवाद जिनमें इटली और जर्मनी सबसे प्रमुख की लहर बढ़ी | ब्रिटेन के समान यह अधिक से अधिक उपनिवेशों पर अधिकार करने की होड़ चली इजरायल पर अरबों को हरा कर इसाईयों ने कब्जा कर लिया यहूदियों और मुस्लिम दोनों को मारा |येरुसलम की धरती पर अनेक धर्म युद्ध हुए | हलाकू और तेमूर लंग हमलावरों ने भी येरुसलम को नष्ट करने का पूरा प्रयत्न किया इजरायल पर कभी मिश्र और प्रथम विश्व युद्ध के समय टर्की का कब्जा था लेकिन 1917 में जब विश्व युद्ध चल रहा था इजरायल पर ब्रिटिश सेनाओं ने कब्जा कर लिया यहूदियों को आश्वासन दिया ब्रिटिश सरकार इजरायल में यहूदियों को बसाना चाहती है जिससे यहूदियों का एक देश हो दुनिया से यहूदी यहाँ आकर धीरे-धीरे बसने लगे
हिटलर के जर्मनी पर अधिकार करने के बाद यहूदियों के साथ जो हुआ मानवता भी शर्मिंदा हो गयी |प्रथम विश्व युद्ध के बाद जर्मनीपरेशानी का कारण यहूदी हैं प्रचार कर उनकी नस्ल की नस्ल नष्ट करने के लिए जानवरों की तरह उन्हें ठूस-ठूस कर ट्रकों में भर कर लाया जाता फिर मरणासन्न स्त्री पुरुषों को गैस चेम्बरो में मरने पर विवश किया जाता | बकायदा ठेके उठते थे कौन कम खर्च में अधिक से अधिक यहूदी मार सकेंगे यहूदी सुन हो गये थे बचने की कोई उम्मीद नहीं थी | उस समय के चित्रों में यहूदियों के शरीर नर कंकाल बने देखे जा सकते हैं |केवल जर्मनी ही नहीं फ़्रांस, इटली ,रूस ,और पौलेंड में अत्याचार ही नहीं उनके धर्म पर बैन लगा दिया गया देख कर आश्चर्य होता है | नर संहार से बची यहूदी नस्ल पत्थर बन गयी |अब वह उस धरती पर लौटना चाहते थे जहाँ से उनको निकाला गया था | द्वितीय विश्व युद्ध के बाद ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ हिंसात्मक बिद्रोह हो रहे थे |इधर यहूदी माईग्रेशन इतना बढ़ा तीन प्रतिशत यहूदियों की जनसंख्या 30 परसेंट हो गयी यहूदियों ने गरीब अरबों से जमीन खरीदी इनके परिवार मिल कर खेती करते थे उनके खेतों के बीच यदि किसी फिलिस्तीनी का खेत आ जाता था उसे बेचने के लिए दबाब डालते लोकल लोगों और यहूदियों के झगड़े बढ़ने लगे अरबों के शस्त्र धारी भी ब्रिटिशर पर हमला करने लगे योरोप में यहूदियों का जन संहार और उनका पलायन देख कर ब्रिटिशर ने ऐसा उपाय निकालने की कोशिश की जिससे अरब और यहूदी दोनों सहमत हो सकें|
संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा फिलिस्तीन को बाँट दिया जाये विभाजन दो राज्यों में होना था संयुक्त राज्य संघ ने 1947 में विभाजन स्वीकार कर लिया लेकिन येरुसलम पर फैसला नहीं हो सका वह संयुक्त राष्ट्रसंघ के आधीन रहा भारत की तरह ही बटवारा हुआ यानी फूट डालो राज करो | 14 मई 1948 को इजरायल ,एक यहूदी राष्ट्र की स्थापना हुई |हजारो यहूदी शरणार्थी इजरायल से शरण मांग रहे थे दुनिया भर से यहूदी युवक युवतियां हाथ पकड़ कर अपने राष्ट्र का उत्थान और विकास में योगदान करने आने लगे प्राचीन कहानियों में वर्णित इजरायल क्या वैसा था धूल भरी आंधियां तम्बुओं में लोग पड़े थे लेकिन उनके मन में उत्साह की कमी नहीं थी मजबूत राष्ट्र के निर्माण की इच्छा शक्ति थी विश्व में कहीं भी यहूदी रहता हो उसके लिए नेशनलिटी की कोइ परेशानी नहीं थी |
इजरायल में येरूस्ल्म एक ऐसा शहर है जिसका इतिहास यहूदियों ,ईसाईयों और मुस्लिमों के विवाद का केंद्र है| यहाँ किंग डेविड के टेम्पल की एक दीवार बच गयी है यहूदियों का विश्वास यहाँ पहली बार एक शिला की नीव रखी गयी थी यहाँ से दुनिया का निर्माण हुआ था और अब्राहम ने अपने बेटे इसाक की यहीं कुर्बानी दी थी यहूदियों के हिस्से में एक दीवार बची है यहाँ कभी एक पवित्र मन्दिर था किंग डेविड का टेंपल जिसे रोमन आक्रमण कारियों ने नष्ट कर दिया बची पश्चिमी दीवार उस टेम्पल की निशानी है यह दीवार होली आफ होलीज के सबसे करीब हैं |
लाखो तीर्थ यात्री दीवार के पास खड़े होकर रोते और इबादत करते दिखाई देते हैं | इसाईयों का विश्वास है यहाँ ईसा को सूली पर चढ़ाया गया था इस स्थान को गोल गोथा भी कहते हैं यहाँ ईसा ने पुन: जन्म लेकर सरमन दिये थे |ईसाई समाज यहाँ के लिए बहुत संवेदन शील है|
मुस्लिम समाज भी इस स्थान के लिए बहुत संवेदन शील है यहाँ डोम आफ रॉक और मस्जिद अक्सा है यह इस्लाम धर्म की तीसरी पवित्र मस्जिद है मुस्लिम समाज का विश्वास है यहाँ  मुहम्मद मक्का से आये थे अपने समकालीन अन्य धर्मों के पैगम्बरों से मिले थे यहाँ एक आधार शिला रखी गयी है मान्यता है यहीं से पैगम्बर मुहम्मद स्वर्ग जा कर वापिस आये थे| मुस्लिम समाज रमजान के हर जुमे को इकठ्ठे होकर नमाज पढ़ते हैं | जबकि मित्रो सच यह है कि उस समय वहां रोमनों का राज्य था । वहां कोई गेर ईसाई का जाना भी मना था । मुहम्मद साहब ने एक दिन दावा किया था कि वह बैतूल मस्जिद से एक रात में अल बुराक गदही से मेराज गए थे परंतु सच यह है कि उस समय वहा कोई मस्जिद थी ही नही । 
इजराईल ने हिब्रू को राष्ट्र भाषा के रूप में अपनाया है यह इनकी प्राचीन है दायें से बायीं और लिखी जाती है |सभी प्रार्थनाओं में हिब्रू का प्रयोग किया गया था लेकिन दैनिक जीवन में हिब्रू का प्रयोग में लाना मुश्किल था यहूदी इसे भूल चुके थे | वह अलग – अलग स्थानों में रहे थे जैसे सैकड़ों वर्षों तक मेसिपोटामिया में बसे यहूदियों की भाषा 'आरमाईक' हो गयी जो यहूदी मिडिल ईस्ट में बसे उनकी भाषा अरबी हो गयी योरोप में बसे जैसे जर्मनी में जर्मन बोलते थे भारत में केरला में बसे यहूदी मलयालम और बाद में महाराष्ट्र में बसे मराठी बोलते हैं जैसा देश वहीं की भाषा उनकी अपनी भाषा हो गया |अत: भाषा को विस्मृत कर चुके थे |भाषा को फिर से जीवित करने वाले महानुभाव का नाम एलिजर बेन यहूदा था यह रशिया में जन्में थे उन्होंने अपनी कोशिश जारी रखी उनके अनुसार पहले परिवार में आपसी बोलचाल में हिब्रू का प्रयोग किया जाये , शिक्षा का हिब्रू को माध्यम बनाया जाये हिब्रू में दूसरी भाषाओं के शब्दों का प्रयोग कर इसे समृद्ध बनाया जाये और इसकी डिक्शनरी बनायी जाये |14 मई 1948 को इजराईल का उदय हुआ हिब्रू राज भाषा पद पर सम्मानित की गयी जबकि यहाँ अरबी का भी चलन है | अब हर क्षेत्र में हिब्रू का प्रयोग होता है विदेशों में बसे यहूदी भी हिब्रू का अध्ययन करते हैं अपनी भाषा स्वाभिमान जगाती है|
अल अक्सा मसजिद की जगह पर यहूदियों का मंदिर ( Temple ) था .जिसे हिब्रू भाषा में " मिकदिश  "कहा जाता है .इसका अर्थ "परम पवित्र स्थान यानी Sancto Santorum कहते हैं .इसका उल्लेख बाइबिल में मिलता है ( बाइबिल मत्ती -24 :1 -2 ) इस मंदिर को इस्लाम से पूर्व दो बार तोडा गया था ,और इस्लाम के बाद तीसरी बार बनाया गया था .इतिहास में इसे पहला ,दूसरा ,और तीसरा मंदिर के नाम से पुकारते हैं .इसका विवरण इस प्रकार है 
पहले मंदिर का निर्माण इस्रायेल के राजा दाऊद(David ) के पुत्र राजा सुलेमान (Solomon ने सन 975 ई ० पू में करवाया था
सुलेमान के इस मंदिर को सन 587 BCE में बेबीलोन के राजा "नबूकदनजर (Nebuchadnezzar ) ने ध्वस्त कर दिया थावर्षों के बाद जब सन 19 ई .पू में जब इस्रायेल में हेरोद (Herod ) नामका राजा हुआ तो उसने फिर से मंदिर का निर्माण करवाया ,जो हेरोद के मंदिर के नामसे विख्यात था ,यही मंदिर ईसा मसीह के ज़माने भी मौजूद थाईसा मसीह के समय यरूशलेम पर रोमन लोगों का राज्य था ,और यहूदी उसे पसंद नहीं करते थे .इसलिए सन 66 ईसवी में यहूदियों ने विद्रोह कर दिया .और विद्रोह को कुचलने के लिए रोम के सम्राट " (Titus Flavius Caeser Vespasianus Augustus तीतुस फ्लेविअस ,कैसर ,वेस्पनुअस अगस्तुस ) ने सन 70 में यरूशलेम पर हमला कर दिया .और लाखों लोग को क़त्ल कर दिया .फिर तीतुस ने हेरोद के मंदिर में आग लगवा कर मंदिर की जगह को समतल करावा दिया
जब सन 638 उमर बिन खत्ताब खलीफा था ,तो उसने यरूशलेम की जियारत की थी .और वहां नमाज पढ़ने के लिए मदिर के मलबे को साफ करवाया था .और उसके सनिकों ने खलीफा के साथ मैदान में नमाज पढ़ी थी .बाद में जब उमैया खानदान में "अमीर अब्दुल मालिक बिन मरवान  "सन 646 ईस्वी में सुन्नियों का पांचवां खलीफा यरूशलेम आया तो उसने पुराने मंदिर की जगह एक मस्जिद बनवा दी ,जो एक ऊंची सी जगह पर है ,इसी को आज" मस्जिदुल अक्सा " Dom of Rock भी कहा जाता है .क्योंकि इसके ऊपर एक गुम्बद है .अब्दुल मालिक ने इस मस्जिद के निर्माण के किये "बैतुल माल" से पैसा लिया था ,और गुम्बद के ऊपर सोना लगवाने के लिए सोने के सिक्के गलवा दिए थे।
अब्दुल मलिक का विचार था कि अगर वह यरूशलेम में उस जगह पर मस्जिद बनवा देगा ,तो वह यहूदियों और ईसाइयों हमेशा दबा कर रख सकेगा ।

इस समय अमेरिका की टॉप 200 कम्पनियो के टॉप पर यहूदी है । मैडोनाल्ड पिज़्जा से लेकर fb वॉट्स एप ट्विटर या मिडिया channel। में देखो तो वहा भी टॉप पर यहूदी है cnn हो fox या abc न्यूज़ कोई भी हो अमेरिका का प्रेसिडेन्ट रिपब्लिक हो या डेमोक्रेट यहूदी समर्थक होता है जिसके कारण बताने की जरूरत नही । यहूदी तो इंग्लॅण्ड जैसे कट्टर ईसाई देश में भी पीएम बन चुके है । 
यहूदियों (इजरायल) इतिहास लगभग 3300 साल पुराना है. इब्राहीम, मूसा, दाऊद और सुलेमान जैसे अपने .समय के राजा यहूदी थे … पवित्र पुस्तकों के अनुसार यहूदियों कनानीं क्षेत्र में राज्य भगवान की इच्छा से मिली … कुरान भी इसकी पुष्टि करता है. यहूदियों बादशाहतों पर 63 ई.पू. में रोमनों ने कब्जा कर लिया … फिलिस्तीनियों को यदि कनानी 'समझ लिया जाए, इस का मतलब अल्लाह ने खुद यहूदियो को वो जगह दी थी. बैतुल मुक़द्दस जो मस्जिद है, वह सुलैमान का (मन्दिर गोमेद) यहूदी मंदिर था … यीशु भी यहूदी थे … तो हजारों साल पुरानी यहूदी मूल के बारे में आज कहा जा रहा है, उनका इस क्षेत्र से कोई संबंध नहीं … ऐसा कहना सभी पवित्र पुस्तकों (तोरात,जबूर,इंजील, कुरान) के खिलाफ है. इस्लाम और मुसलमान तो डेढ़ हजार साल बाद आया ….. किस हिसाब से फिलिस्तीनी मुसलमान को मूल येरूसलम के हकदार हैं ..?कुरआन नई किताब है । जो तोरह है , पुराणी किताब है । कुरान कोपिड है टौरह की और बहूत कुछ जोड़ लिया ह आपके नबी के सहाबियों ने उसमे  । ईसा तो खुद यहूदी थे । लेकिन उनके भक्तो ने फ़र्ज़ी किताबे लाइ और अपने मूल धर्म से हट गए जिसे  आदम से लेकर ईसा तक ने अपनाया ईसा ने कोई नवीन मत नही चलाया वह यहूदी थे और मुहम्मद हिन्दू थे उनके चाचा अबू तालिब पुरोहित थे, कुरआन बहुत बाद में लिखी गई है उसमे मस्जिदे अक्सा का जिक्र है जिसे पहला क़िबला कहा गया लेकिन ये सब यहूदियो की तुलना में नवीन है । यहूदी को वहा से रोमियो फिर बाद में मुसलमानो ने भगाया वह जमीन मुसलमानो की नही यहूदियो की है फलीस्तीनी लोग अरबी है जिन्होंने उन्हें भगाया । यहूदी तो अपने ही पवित्र भूमि में है ।और 2 री बात कुरआन में यह भी लिखा है की आपके क़िबले को बेतुल मुक़द्दस से बदलकर काबा क्र दिया गया था। इसलिए आपको वहा दावेदारी नही करनी चाहिए । वह यहूदियो के प्रोफेट सोलोमन की अंतिम निशानी है ।इस कांसेप्ट का इस्लाम से कोई वास्ता नही है । की आदम से लेकर मुहम्मद तक प्रोफेट है । अभी कोई नई पुस्तक बना क्र कहे की अंतिम पैगम्बर मै हूँ जो सल्ललाहु वसल्लम के बाद आया ऐसे ही उनके मरने के बाद कथित हदिसे लिख दी जाये तो इसका ये मतलब तो नही की उन्हें ईश्वरीय दीन मन जाये ।

साभार
हिमांशु शुक्ला

दुनिया का सबसे विवादित स्थल दुनिया का सबसे विवादित स्थल Reviewed by deepakrajsimple on February 11, 2018 Rating: 5

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