१०१. १८९० ईस्वी से १९२० तक (३० वर्षों से अधिक ) लोकमान्य तिलक भारतीय राष्ट्रिय राजनीति के शिखर पुरुष थे .वे क्रांति कारियों के संरक्षक , विद्वान और अंग्रेजी कानूनों के जानकार थे .उनसे बड़ा कोई व्यक्ति भारतीय राजनीति में २० वीं शताब्दी ईस्वी में नहीं हुआ है ( गाँधी जी की वैसी कोई हैसियत कभी बनी ही नहीं )
.१०२. पूना के एक सरदार बाबा जी महाराज की आकस्मिक मृत्यु के बाद उनकी युवा पत्नी ताई जी महाराज को कुछ परिजनों के माध्यम से उकसा कर पूना के जिला जज एस्टन ने जैसी जालसाजी से झूठे अभियोग तिलक महाराज पर लगाये और जैसे सरासर गलत ढंग से निर्णय दिया ,वह ही प्रमाण पर्याप्त था कि अंग्रेजी कानून उनके जाने के बाद एक क्षण भारत में नहीं रहना चाहिए पर वह चल रहा है जो प्रमाण है कि जो लोग सत्ता में हैं वे अंग्रेजों के वारिस हैं. झूठ के आधार पर तिलक को सजा सुनाई गयी .
१०३ अंग्रेज प्रशासक वाल्टर रैंड जब विक्टोरिया के राज्यारोहण से जुड़ा एक उत्सव पुणे में मनाकर लौट रहा था ,देश भक्तों ने उसे भून दिया . इस पर
दामोदर,बालकृष्ण और वासुदेव , तीनो चाफेकर बंधुओं को और उनके मित्र महादेव रानाडे को आनन् फानन फांसी दे दी गयी और तिलक पर भारत द्रोह का मुकदमा चला कर जेल भेज दिया गया . भारत द्रोह का वही क़ानून अब तक कायम है जो प्रमाणित करता है कि वर्तमान शासक अंग्रेजों के ही वारिस हैं .
१०४. इसी अन्य्यायी व्यवस्था के विरुद्ध किशोर विनायक सावरकर ने अभिनव भारत बनाया .तब तक गाँधी जी भारत में थे नहीं और वे देश भक्त भी तब तक नहीं थे ,ब्रिटिश भक्त थे .यह उन्होंने स्वयं लिखा है .
१०५ इस बीच क्रांतिकारियों से डर कर १८८५ में बंगाल में स्वायत्त शासन देने की घोषणा की गयी यानी धीरे धीरे हम हटेंगे ,यह कहा गया.
१०६ इसी क्रम में ग्वालियर नरेश को खुश करने के लिए भयभीत अंग्रेजों ने ग्वालियर का किला उन्हें लौटा दिया १८८६ ईस्वी में .
१०७, १८८० में पश्चिम में अफगानिस्तान के अमीर से संधिकर १८८५-८६ में म्यांमार (बर्मा ) का मोर्चा खोल दिया और भारतीय सैनिकों के द्वारा उत्तरी बर्मा पर कब्ज़ा कर लिया अन्ग्रेज ने .
१०८.. १८९३ में स्वामी विवेकानंद अमेरिका गए और विश्व में भारत के प्रति सम्मान और कुतूहल जगा .
१०९ अकाल और दुर्भिक्ष के मध्य अंग्रेजो ने भूमि पर किसानो का स्वामित्व समाप्त करने वाला कानून १९०० में लागु कर दिया जो काले अंग्रेज अब तक चला रहे हैं .
११० गौ रक्षिणी सभाओं ,सनातन धर्म महामंडल आदि से घबराकर कर्जन ने बंगाल का विभाजन किया जिसके विरुद्ध तिलक ,सावरकर ,श्री अरविन्द आदि तेजस्वी वीर उठ खड़े हुए . अंग्रेज प्रशासन हिल गया ,प्रस्ताव वापस लेना पड़ा पर तिलक ,सावरकर और श्री अरविन्द , तीनों को जेल में डाल दिया ,तिलक को बर्मा, सावरकर को फ्रांस से पकड़कर ले आ कर अंडमान और अरविन्द को बंगाल में ही रखा , सबको क्रांतिकारियों का प्रेरक और संरक्षक माना , उधर मदनलाल धींगरा ने लन्दन जाकर अंग्रेजों की छाती में बैठकर कर्जन वैली को भून डाला ,अंग्रेज थर थर कांपने लगे . अनेक सुधारों की घोषणा कर क्रमश; भारत से जाने की घोषणा करने लगे.
१११ १९११ में बंगाल का विभाजन रद्द करना पड़ा और पहली बार दिल्ली को अंग्रेजों ने राजधानी बनाया ,अनेक राजपूत राजाओं के सहयोग से .पर हालत यह थी कि केवल बंगाल में थोड़ी सत्ता आते ही वे कोलकाता में भारत का सर्वोच्च न्यायालय ब्घोषित कर चुके थे .ऐसे गप्पियों के वारिस भी बढ़ चढ़ कर घोषणा करें ,यह स्वाभाविक है . भारतीय राजा इसकी जगह अति गंभीर थे .
( क्रमशः जारी ११ पर )
ये लेखमाला अभी तक इतनी ही लिखी गई है। लेकिन एक नई लेखमाला मुझे अच्छी लगी -
जाति , जातिवाद, राष्ट्र , राष्ट्रवाद , देह ,देहवाद
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व्यक्तियों ,समूहों ,समाजों के जीवन में विवेक और भ्रांतियों आते जाते रहते हैं . विवेक के लिए तो सजग प्रयास करना होता है .
बात उठी थी किसी समय २० वीं शताब्दी में ब्रिटिश क्षेत्र में कि जातिवाद समाप्त करें और राष्ट्र की भक्ति करें , यह तो सार्वभौमिक आवश्यकता है .
ये बात किसने उठाई थी ? उन राष्ट्र भक्तों ने जिन्हें भारत माता साक्षात् जगदम्बा का रूप विशेष दिखती थीं और इनकी महानता ,भव्यता . दिव्यता प्रत्यक्ष सत्य दिखती थीं , अपने से भी बड़ा सत्य .
आधे भारत में शासन अंग्रेजों का था और उन्होंने यानी उनके समाजके बड़े लोगों ने बहुत परिश्रम किया कि उनकी ज्ञान परंपरा में यहाँ के मेधावी युवक युवतियां दीक्षित हो जाएँ जिसके लिए उनकी प्रशंसा करनी चाहिए और सच्ची प्रशंसा तब है जब आप उसका अनुसरण करें तो हमें उनसे सीखना चाहिए .जो आज तक नहीं सीखा है क्योंकि अपनी सनातन धर्म की ज्ञान परंपरा में उन्हें दीक्षित करने का प्रयास तो छोडिये ,स्वयम की संततियों को ही दीक्षित करने का कोई प्रयास हमारा अभी का बड़ा आदमी नहीं कर रहा है
तो उनके द्वारा दीक्षित युवकों में एक छोटा समूह उनका ही हो गया और उसके लाभ समझ गया . ..
तो सत्ता हस्तान्तरण के बाद उसने उनकी कूट नीति अपना ली.इसकी शुरुआत तो अंग्रेजों ने ही शासन शक्ति के दुरूपयोग द्वारा कर दी थी और गाँधी जी , डॉ आंबेडकर जी ,नेहरु जी आदि उसमे उत्साह से आगे थे . बाद मे नेहरू जी ने इसमें कम्युनिज्म की विधि से भयंकर विस्तार किया .वह यह कि जाति और जातिवाद को एक प्रचारित करने लगे .
ऐसे भटकाव आते रहते हैं , शरीर और शरीरवाद का भेद भूलते तो हम अनेक अच्छे लोगों को देखते ही हैं ,तीव्र संवेग से यह हो जाता है .कई तपस्वी सज्जन हैं जो शरीर वाद से जुगुप्सा पालते पालते शरीर से ही पाल लेते हैं .
यूरोप में किसी समय अनेक निष्ठावान ईसाई स्त्रियाँ अपने लार्ड ( यीशु ) की पीड़ा भरी याद में स्वयं काँटों का मुकुट पहन लेती थीं और अपने हाथ पैर में ( क्रॉस में टंगे यीशु की तरह फैला कर )कीलें ठुन्कवाती थीं.. जिसे डायटिंग कहते हैं ,वह शुरू यीशु की याद में ही हुयी कि लार्ड को बड़ा कष्ट हुआ तो हम भी देह को कष्ट देंगी . बाद में उसकी महिमा गा दी गयी और भारत में अच्छी हृष्ट पुष्ट बहनें स्वयं को अति निर्बल ,दुबली ,पतली दिखने की होड़ में लग गयीं
तो ऐसे भटकाव आते रहते हैं
(जारी २ पर )
जाति ,जातिवाद -----------२
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शासन का क्या प्रभाव होताहै ,इसे सब से ज्यादा अनुभव हिन्दुओं को करना चाहिए पर शिक्षित हिन्दू यह भूल चुके हैं . वे भूल गए कि मुस्लिम शासंन जहाँ था वहां कैसे आनन् फानन में मंदिर तोड़ डाले जाते हैं ,अंग्रेज जहाँ थे वहाँ कैसे भारतीय शिक्षा जड़ मूल से नष्ट कर दी गयी और नेहरु शासन जैसे ही आया ,हिन्दू धर्म पर कैसे सुनियोजित चोट पर चोट पड़ने लगी , सब भूल गए ,स्वयं भाजपा भूल गयी , ब्राह्मण भूल गए .सब भूल गए
तो एक और खुद अंग्रेज अफसर रिपोर्ट छापते हैं कि१८ वीं शताब्दी तक भारत में हर जाति के शिक्षक और हर जाति के विद्यार्थी विशाल संख्या में पढ़ते थे . यह काम किया अफसरों के एक वर्ग ने . उधर जिन्हें शासन के लिए शासित समूह में हीनता का प्रचार आवश्यक लगा , उन्होंने शुरू किया शताब्दियों से घोर अन्याय का प्रचार . दोनों साथ साथ .
पहली जनगणना में अछूत नमक एक वर्ग रखकर अलग गणना हुयी तो निकला कि भारत में कुल अढाई प्रतिशत अछूत हैं . यह संख्या प्रचार के लिए बहुत कम लगी तो एक लिस्ट बनायीं कि हाशिए पर और कौन जातियां शामिल की जा सकती हैं , इसे नाम दिया अनुसूचित जातियां .. बड़े जोड़ तोड़ से ये हुए १४ प्रतिशत , आ ज राजनैतिक गणित वाले इस १४ प्रतिशत को बहुजन कहते हैं . हो तेरा क्या कहना !
फिर अंग्रेजों में जो कमीने थे , उन्हें लगा कि और झ्हूठ रचो फैलाओं तो उन्होंने किस फैलाया कि यहाँ के मूल निवासी तो गोंड, संथाल मिज़ो ,मैती, खैरवार आदि२ हैं . इस प्रचार से घबराकर कांग्रेस ने १९३७ में एक और सूची बनवाई अनुसूचित जन जाति की .उनका कुल प्रति त था साढ़े सात प्रतिशत ..
इसके आगे की प्रक्रिया का सार तो सत्ता हस्तांतरण की प्रक्रिया के क्रम ११ से १४ में पढियेगा . यहाँ सीधे वर्तमान स्थिति पर आते हैं .:
१. राजनैतिक रूप से तथाकथि उच्च जातियों वाले लोग ( बुरा मत मानियेगा) आश्चर्यजनक मूरख सिद्ध हुए हैं क्योंकि उन्होंने अपनी ही जातियों में जन्मे पर यूरंड पंथी बन चुके बड़े पद वालों पर गजब का प्रेम रखा जो भाव स्तर पर सुन्दर है पर बुद्धि की दृष्टि से महा मोह तंम पुंज है .
२ राजनैतिक दृष्टि से जो सूचियाँ युरंदों ने बनायीं थी , उसके सच्चे हितैषी और संरक्षक बने उच्च जाती के यूरंड नेता और इनको निरंतर उकसाकर हिन्दू समाज और उच्च ( ?) जातियों के विरुद्ध उभडा ताकि वे दबते जाएँ क्योंकिउन्हे प्रतिस्पर्धा उनसे ही दिखती थी ,तथाकथित निम्न जाती को अपने कब्जे में मानते थे .
३ इसमें भारत विरोधी ३ शक्तियों की निर्णायक भूमिका थी : १. उग्र इस्लामवाद , २. ख्रिस्त विस्तारवाद और ३ अंतर्राष्ट्रीय कम्युनिज्म .
इनमे से तीसरा निष्प्राण है ,उसे भारत में कांग्रेस और प्रथम दोनों शक्तिया अपनी सेवा में लिए हैं अतः उनकी उपेक्षा आवश्यक है . वे निरीह हैं ,दयनीय हैं ,निराश्रित है ,उनका पोषण भाजपा के कुछ लोग और कांग्रेसी भी कर रहे हैं तथा कुछ लोग जो ७० वर्ष उनके आतंक में जिए ,वे उन पर ध्यान दे दे कर उनका महत्त्व बढ़ाये हैं अनजाने ही , उन्हें उपेक्षित छोड़ दिया जाये तो मर जायेंगे . उन पर इतनी गालियों की जरूरत नहीं . आप उनसे सम्वाद एकदम बंद कर दीजिये ,उन्हें पागल कुत्ते की तरह मानकर उनसे दूरी बनाइये , ,देखिये वे किस दशा में पहुँचते हैं पर उन्हें महत्त्व इस समय भाजपा के लोग ही दे रहे हैं शायद अपना महत्व बढ़ाने के लिए .दिनेश शर्मा जैसे उप मुख्य मंत्री उत्तर प्रदेश में और कई मुख्य मंत्री अन्य प्रदेशों में अपने प्रिय अफसरों को इशारा कर communists को पोस रहे हैं . आज भी ..
(क्रमशः ३ पर )
साभार
रामेश्वर मिश्रा पंकज
Hr. deepak raj mirdha
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सत्ता हस्तांतरण की प्रक्रिया :१०
Reviewed by deepakrajsimple
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February 19, 2018
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