सत्ता हस्तांतरण की प्रक्रिया :८


( मित्र गण ध्यान दें , यहाँ केवल संकेत हैं . पुस्तक में विस्तार होगा यद्यपि वह भी संक्षेप ही होगा क्योंकि वैसे तो कई हज़ार पन्ने हो जायेंगे और लोग पढ़ते नहीं )

६१..एक बार दुहरा लें :
क . कम्पनी के मामूली लोग व्यापार  की सेवा के लिए आये और हिन्दू मुस्लिम लड़ाइयों में नीचतम  लोगों को साध कर कई जगह कुछ जागीर बना ली , बाकी  जागीरदारों से संधि की .
ख वे किसी राष्ट्र के प्रतिनिधि नहीं थे क्योंकि तब तक इंग्लैंड एक राष्ट्र बना नहीं था ,बनने की प्रक्रिया में था .
ग यहाँ के मुलाज़िमों से अधिकाँश मालिक लन्दन  में  आशंकित रहते थे पर लूट का माल पाकर चुप रह जाते थे .
घ अंग्रेजों का बड़ा वर्ग इन कम्पनी वालों का विरोधी था ,कोई जलता था ,कोई अनैतिक मानता था ,कोई  अनिष्ट कारी मानता था .
च तत्कालीन अंग्रेज अत्यंत कलह रत  समूहों में  बंटे थे . हिन्दू समाज उस से लाख  गुना संगठित था  व  है . .
छ मुट्ठी भर लोग अपने काम को पुरे समाज का काम बताएं ,यह वहां चल रहा था और इन सब तथाकथित समाज वालों में परस्पर खुनी लड़ाइयाँ जम कर होती थीं . भारत की यह भाषा नहीं थी , अब भारत में भी यह भाषा हो गयी है 
६२ काम करते हैं मुट्ठी भर प्रचंड पुरुषार्थी अपने २ क्षेत्र में . पहले उसे धर्म अधर्म की कसौटी पर कसते थे , अब समाज और राष्ट्र बोलते हैं , यह मिथ्या प्रतिनिधित्व का सिद्धांत है जिसका सत्य से कोई सम्बन्ध नहीं है .
६३ २० राज्यों में बंटा था इंग्लैंड जो वर्तमान उत्तरप्रदेश का एक तिहाई से कम था अतः भारत का ३०० राज्यों में बंटा होना इंग्लैंड के जैसा ही था , संगठन के अभाव का रोना निपट अज्ञान है .
६४ उस समय भारत में कोई चक्रवर्ती सम्राट नहीं थे ,बस इतनी सी कमी थी . इसे सम्यक रूप में देखना चाहिए .
६५ इस दशा का मुख्य कारण भारतीयों के एक बड़े प्रभावी समूह का असीमित भोग और  क्रूरतम कर्मों के आकर्षण में इस्लाम अपना लेना था (यह राक्षस होने की परंपरा में समझना उचित होगा ).

६६ अतः समस्या पुन्य के क्षय और पापकर्म राजपुरुषों की भयावह वृद्धि है 
६७ इसे समाज के दोष की तरह प्रचारित करने वालों ने मुख्य अपराधियों और पापियों की अद्भुत सेवा की , जाने या अनजाने .दोषी को चिन्हित करने की जगह भीड़ को दोषी बनाने जैसा काम है यह .

६८ कंपनी के मर्भुक्खे बहुत लूट कर ले गए ,बहुत लूट कर ले गए पर देश की वास्तविक सम्पदा का वह शतांश भी नहीं था 
६९ कंपनी वालों ने छल बल से जो हथियाया , उसे तत्कालीन ब्रिटिश शासकों ने कतिपय भारतीय राजाओं रानियों से संधि कर छल से हड़प लिया , यह उस समाज की आपसी फूट का प्रमाण है .
७० इंग्लैंड की  महारानी ने अनेक भारतीय राजाओं से अलग अलग संधि की और उनके पूर्ण सहयोग से कम्पनी का क्षेत्र अपने कब्जे  में ले लिया .
७१ ये वही महारानी थीं जो लुटेरों और डकैतों से बाकायदे संधि कर माल के बदले में उन्हें सर ,लार्ड आदि  उपाधियाँ सहर्ष देती थीं ,यह सर्व विदित तथ्य है.

(क्रमशः जारी ९ पर )

सत्ता हस्तांतरण की प्रक्रिया :९
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७२ १८५८ में भारतीय राजाओं का अंग्रेज समर्थक वर्ग जीत गया . उधर स्वाधीनता के लिए अर्थात अंग्रेजों विधर्मियों को मार भागने के लिए  रॉयल बंगाल आर्मी ,( जिसमे ९० प्रतिशत अवध के और पूर्वी उत्तरप्रदेश के ब्राह्मण थे जो सब अत्यंत सात्विक भोजन करते थे ,स्व पा की थे और परम पराक्रमी थे यह स्वयं अंग्रेजों ने छापा है लिखकर )के ब्राह्मणों की प्रधान भूमिका से अति क्रुद्ध होकर अंग्रेज ब्राह्मणों को धोखेबाज ,कुटिल , अति नीच आदि कहने लगे और उन्हें शोषक प्रचारित किया जिस भाषा को आज लगभग सब वर्मान प्रमुख दल भारत में दुहरा रहे है (भाजपा के भी काफी लोग आपसी बात में यही कहते हैं क्योंकि पूर्णतः अनजान हैं  तथ्यों  से . आरक्षण का सारा दौर इसी झूठ पर टिका है )
७३ पराजित राजाओं के प्रति अवर्णनीय   क्रूरता कमीनों ने की .
७४.तब भी वे आततायी अंग्रेज  निरंतर भयभीत रहते थे कि कभी भी फेंक दिए जायेंगे.
७५. अपने क्षेत्र में तेजी से भयंकर कानून बनाते गए : शस्त्र अधिनियम१८५८, सोसाइटी रजिस्ट्रेशन एक्ट १८६० ,Indian Penal code 1860 ,लोक सेवा अधिनियम १८६१, Arms  Act 1878, Indian Council Act 1861 , Forest Act आदि आदि .
७६ ये सब भारत विध्वंसक कानून आज भी लागु हैं और पहले आधे देश में थे ,१९४७ से पूरे देश पर लागू हैं . , इसके बाद जो ये लोग कहते हैं कि हम अंग्रेजों से लडे, उनसे बड़ा झूठा कौन है दुनिया में ?ये तो अंग्रेजों के वारिस हैं साफ़ साफ़ .
७७ लड़ने वाले कोई और थे , भीख मांग कर पाने वाले कोई और हैं , दोनों को एक समझना तामसिक अभेद्वाद है और शासकों के प्रचार के प्रति मुग्धता है ..
७८ जो लडे ,वे विनष्ट कर डाले गए इन भिखमंगो के सहयोग से . आज उनके वंशधरों की दशा क्या है ? कभी कभी हम जान पाते हैं .
७९ इस पर चीखना चिल्लाना व्यर्थ है ,यह राजनैतिक प्रक्रिया है ,यह ऐसी ही निर्मम होती है . अगर  आप में दम है तो बुद्धि बल से आप भी सत्ता को धर्म मय बना लो ,अभी तो सत्ता धर्म निरपेक्ष है .यदि आप अभी के शासकों को अपना मानते हैं तो आप का भविष्य भी उन्ही के साथ है . आनंद कीजिये .( रोना भी नाटक के रूप में आनंदकारी होता है )
८० विकराल सत्ता तंत्र के द्वारा भयंकर दमन चलाकर अपनों को पुरस्कृत और विरोधियों को विनष्ट किया अंग्रेज शासकों ने , यहाँ भी और इंग्लैंड में भी यही किया . उन्हें एक समाज मानना हास्यास्पद अज्ञान है .
८१ १८५८ केबाद  भी एक दिन धर्मनिष्ठ भारतीय शांत नहीं रहे .
८२ जब आप कहते हैं ,हम गुलाम हो गए ,हम ये हो गए ,वे हो गए तब आप अंग्रेजों के वारिसों से स्वयं को एकात्म करते हैं : ज्ञान से या अज्ञान से . 
८३ जिसमे भेद  विवेक नहीं है ,वह अविकसित है .
८४ आपका अज्ञान वारिसों की शक्ति है . 
८५ अब वस्तुतः अपने पक्ष पर एक नजर  डालते हैं 
८६ १८२४ में ही स्वामी दयानंद सरस्वती का जन्म हो गया था श्यामजी कृष्ण वर्मा का १८५७ ईस्वी में ही जन्म हुआ. बाल गंगाधर तिलक १८५६ में , बिपिन चन्द्र पाल १८५८ में और लाला लाजपत राय १८६५ में जन्मे .
८७   १८६३ ईस्वी (अभी सुविधा के लिए ईस्वी सन ही लिखते हैं )में दो अति   महान भारतीय विभूतियाँ जन्मी : नरेन्द्रनाथ दत्त (स्वामी विवेकानंद ) और पंडित दीनदयालु शर्मा .
८८  इसके  २७ वर्ष पूर्व भारत सूर्य परम पुज्य श्री रामकृष्ण परमहंस १८३६ में जन्म ले चुके थे और  २ वर्ष पूर्व ही १८६१ में महामना पंडित मदनमोहन मालवीय  जन्म ले चुके थे . 
८९  १८७२ में श्री अरविन्द अवतरित हुए   अन्य सैकड़ों महापुरुषों का अभी नाम नहीं ले पा  रहे यहाँ ..(जवाहरलाल नेहरु १८८९ में  और मोहनदास करमचंद गाँधी (महात्मा गाँधी)उनसे २० वर्ष पूर्व पैदा हुए ). वीर विनायक दामोदर सावरकर १८८३ में , डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार १८८९ में (जवाहर भाई वाले वर्ष में ),  रामप्रसाद बिस्मिल १८९७ में और चंद्रशेखर आज़ाद १९०६ में भारत की पुण्य भूमि में पधारेऔर भगत सिंह १९०७ में .
९० १० हज़ार   से अधिक वीर युवक युवतियां २० वीं शताब्दी इसवी के प्रारम्भ में भारत में जन्मे और प्रचंड  क्रान्तिकारिता की .
९१. कूका आन्दोलन से १९ वीं शताब्दी के अंत में ही अंग्रेज थर्राने लगे .गुरु राम सिंह  जी को काला पानी भेजा गया अंग्रेजों द्वारा जबरन.    जहाँ १८८५ में उनका निधन हो गया .  १८८६ में पंडित दींन  दयालु शर्मा ने कनखल में गौ वर्णाश्रम हितैषिणी गंगा सभा स्थापित की . इस सभा ने जाति  भेद वाली अश्पृश्यता  के विरुद्ध उद्घोष किया तब तक गाँधी जी कहीं दूर दूर तक नहीं थे ,  विद्यार्थी थे .
९२  १८९० से १९१० तक प्रचंड  गौ रक्षा आन्दोलन चले जिनसे  अंग्रेज कांप गए और खुपिया रिपोर्टें गयीं कि कभी भी हम पर आक्रमण शुरू हो सकते हैं ( देखें मेरी पुस्तक :सांस्कृतिक अस्मिता की प्रतीक गोमाता :)
९३ १८९७ में श्री रामकृष्ण मिशन की स्थापना स्वामी विवेकानंद ने की जिसने भारतीयों में हीनता जगाने के अंग्रेजी प्रयासों की जड़ों में मट्ठा ड़ाल दिया .
९४ १९०२ में  करांची, सिंध ,हैदराबाद(सिंध), सक्खर , क्वेटा(सब पाकिस्तान अब ) ,चमन (बलोचिस्तान)आदि में पंडित दीनदयालु शर्मा ने सनातन धर्म सभाओं की सशक्त शाखाएं खोलीं जो नेहरु आदि की मुस्लिम भक्ति से १९४७ में खत्म कर दी गयीं मुसलामानों द्वारा. 
९५ १९०५ में बंगाल का विभाजन किया गया जिसके विरुद्ध देश व्यापी देश भक्ति प्रबल हो धधकने लगी , श्री अरविन्द की प्रतिभा का प्रकाश  प्रकट हुआ , चारो और वन्दे मातरम का उद्घोष (बंकिम रचित)देश में छ गया ,अंग्रेजों को कदम वापस लेना पड़ा जो बाद में नेहरु गाँधी की सह्मति  से १९४७  में पुनः सफल  किया गया  अंग्रेजों की विजय में नेहरु गाँधी जी का अद्वितीय योगदान इतिहास का तथ्य है 
९६  अंग्रेजी योजना से मुस्लिम लीग १९०६ में बनी १९०७ में गांधीजी ने अचानक बिना किसी सन्दर्भ के क्रांतिकारियों का प्रबल विरोध शुरू कर  दिया , हिन्द स्वराज नामक परचा लिखा जिसे गोखले ने कागज़ का रद्दी टुकड़ा करार दिया 
९७ स्वदेशी आन्दोलन जो १८४० से यानी कंपनी के रहते ही ,उसकी काट के लिए , गोपाल राव देशमुख  लोक हित वादी जी ने  शुरू किया था ,वह बंग भंग के विरोध  में धधक उठा . सूरत कांग्रेस(१९०७)  में नरम दल वालों की लाल बाल पाल समर्थकों ने  जूते  चप्पलों से ठीक से धुनाई  की 
 ९८ .लोकमान्य तिलक के आह्वान पर विदेशी वस्त्रों और वस्तुओं का बहिष्कार का आन्दोलन देश में प्रबल हुआ, गोखले जी ने भी उसका समर्थन किया . गांधीजी अभी  एक सामान्य वकील का काम दक्षिण अफ्रीका में करने पहुंचे थे और लिखित तथा मौखिक दोनों रूप में स्वयं को ब्रिटिश साम्राज्य का सबसे वफादार सेवक कह रहे थे (प्रधान सेवक !)
९९. १८९३ में एक दिन हिन्दुओं का एक धार्मिक जुलूस भजन  गाते हुए  मुम्बई की एक मस्जिद  के सामने से निकला तो मुसलामानों की भीड़ ने उस पर प्प्राण घातक आक्रमण  कर दिया जिस से मिल में कार्यरत हिन्दू इकट्ठे हो गए और दंगाइयों की जमकर धुनाई की .
१०० अंग्रेजी संकेत से केवल हिन्दुओं का दमन हुआ जिसके विरुद्ध लोकमान्य तिलक ने केसरी में केसरी गर्जना की और देश में  अंग्रेजों को उखाड फँकने की कोशिश ने नया जोर पकड़ा .इस से अंग्रेजों ने ब्राह्मण विरोधो प्रचार और  तेज कर दिया . 
(क्रमशः......जारी १० पर)

✍🏻
रामेश्वर मिश्रा पंकज

सत्ता हस्तांतरण की प्रक्रिया :८ सत्ता हस्तांतरण की प्रक्रिया :८ Reviewed by deepakrajsimple on February 18, 2018 Rating: 5

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