छोटा नागपुर या हीरा सोना नागपुर?

"अगर छोटानागपुर (झारखंड) क्षेत्र में मिशनरीज नहीं आते तो यहाँ के जनजातियों का क्या हाल होता ?? ... गरीबी,भुखमरी,अशिक्षा से अगर किसी ने जनजातियों को उबरने में मदद की सहायता की तो वो केवल मिशनरीज ही थे/है! .. हमें इनका शुक्रगुजार होना चाहिए.. आज हमारी जो भी स्तिथि दिखाई पड़ती है वो केवल और केवल मिशनरियों के कारण ही है! .. कभी फुर्सत से सोचिएगा कि मिशनरी नहीं आते तो यहाँ के आदिवासियों का क्या हाल होता!!?"

ये सोच, धारणा केवल कन्वर्ट हुए हलेलुइया बुद्धिजीवियों और सामान्य पढ़े-लिखे हलेलुइया वालों का ही नहीं है बल्कि इसपे लगभग सभी अपना प्रमाणित ठप्पा मारते चलते हैं। .. सच्ची में यार अगर मिशनरीज नहीं आते तो हमारा अस्तित्व ही खत्म हो जाना था।

लेकिन क्या ये सच है??? .. क्या हम इतने ही गरीब और लाचार लोग थे ?? हम भुखमरी में जी रहे थे?? अनपढ़-गंवार थे ?? अगर अंग्रेज नहीं आते तो क्या हमारा वजूद मिट गया होता ?? क्या अपना कुछ भी नहीं था ?? हम अंग्रेज/मिशनरीज के आने के पूर्व तक बस ऐरे-गैरे थे ??

छोटानागपुर प्लेटो में दुनिया के सबसे लंबे राजवंश में से एक का इतिहास रहा है। ... इससे भी पहले यही थे, लेकिन नाम बदल गया। सन 83 ई. से लेकर 1951 तक छोटानागपुर में नागवंशी राजाओं का शासन रहा।... लगभग दो-हजार वर्ष तक राज करने वाले राजवंश में बुल्गारिया के 'दुलो' , इम्पीरियल जापान की सभा, और कोरिया के 'होंग-बैंग' राजवंश ही शामिल है।
मंदरा मुंडा के गोद लिया हुआ पुत्र फनीमुकुट राय से नागवंश के शासन की शुरुआत हुई। .. नागवंशियों के सामानांतर ही कुड़मियों की शासन व्यवस्था थी (पंचेत राज) .. फनीमुकुट राय का विवाह पंचेत राजा के पुत्री से हुआ रहा।

खैर ये सामान्य सा परिचय हो गया।
अब आते है मुख्य बात पे!!

0 AD से लेकर 1500 ई. तक भारत का विश्व जीडीपी में अकेले का योगदान एक तिहाई (33-36%) होता था.. वहीं अंग्रेज आने के बाद 1750 ई. तक विश्व जीडीपी का एक चौथाई (24-25%) योगदान रहा वहीं उस वक्त पूरे यूरोप और अमेरिका केवल 2% के शेयरहोल्डर थे।
लेकिन 1900 ई. तक आते-आते ब्रिटन अमेरिका की 43% हो गई और भारत की मात्र 2% हो गई।

क्यों भला भाई ?? .. ऐसी क्या घट गई रही कि इतना ड्रेस्टिकली चेंजेज हो गया ??? ( इसके ऊपर डिटेल पोस्ट लिख चुका हूँ 'पेबैक' करके)
खैर पूरे भारत का छोड़ के थोड़ा सिमटते है।
क्या इतनी सारी जीडीपी में छोटानागपुर का कोई योगदान नहीं रहा होगा ??
छोटानागपुर तो अब छोटानागपुर कहला रहा है, उससे पहले क्या कहलाता था?? ... उससे पहले हीरानागपुर कहलाता था.. जी 'हीरा'नागपुर !! .. क्यों भला?? .. हीरों(Diamonds) की प्रचुरता के कारण!! .. शंख नदी के किनारे इनके खान हुआ करते थे... यहाँ के हीरे खूब प्रसिद्ध थे... पूरे भारतवर्ष में हीरे के सबसे बेजोड़ जोहरी यहीं के हुआ करते थे।.. कहीं भी हीरे से सम्बंधित कोई चीज हो यहीं के लोग जाया करते उनकी टेस्टिंग हेतु। .. कोहिनूर हीरा गोलकुंडा(आंध्र) के निकट कोलुर खान में से बरामद किया गया था ! संभव हो यहीं के लोग खनन किये हो और टेस्टिंग भी । ... नागवंशी हीरों की पहचान के लिए विख्यात थे। .. हीरों का सफल व्यापार करते थे।
यहाँ की वैभवता से आकर्षित हो कर ही कोई पहला हमला करने वाला मुग़ल शासक थे और उनमें से भी अकबर। .. अकबर ने अपने विश्वस्त शाहबाज खान तुरबानी को कोखरा (छोटानागपुर के नागवंशी राजाओं की तत्कालीन राजधानी ) पर हमला करने के आदेश दिया.. उस समय राजा मधु सिंह  42 वीं नागवंशी राजा के रूप में कोखरा पर राज कर रहे थे .. दोंनो पक्षों से लम्बे समय तक संघर्ष जरी रहा और अंत में नागवंशियों ने जान और माल की भारी नुक्सान के कारण प्रजाहित को देखते हुए सुलह कर ली और छह हजार रुपए की राशि मुगलों को वार्षिक राजस्व के  रूप में देय तय की गई .. इतिहास में पहली बार ऐसे साक्ष्य मिले कि नागवंशी राजाओं को छोटानागपुर पे राज करते वक़्त किसी के अधीन रहना पड़ा।

जहांगीर के वक़्त यहाँ के राजा हुए दुर्जन शाल!! .. ये 'हीरा राजा' के नाम से जाने जाते थे।.. इनके जैसा हीरा जोहरी उस वक़्त भारत में कोई नहीं था!! ... इन्होंने मुगलों को कर देना मना कर दिया... विद्रोह किया... लेकिन गद्दारों की वजह से युद्ध खत्म होने के पूर्व ही इन्हें कैद कर लिया गया.. इब्राहिम खान ने यहां के सारे हीरे लूटकर उसे मुग़ल दरबार में भेज दिया और यहाँ से 24 हाथी भी बादशाह को भेजा गया।
दुर्जन शाल को पहले दिल्ली फिर बाद में ग्वालियर में कैद कर के रखा गया। .. बारह वर्षों तक राजा दुर्जन शाल बंदी-गृह में रहे।

इसी बीच क्या हुआ कि जहांगीर के दरबार में दो बड़े हीरे आये... जहांगीर को शक हुआ कि इनमें से एक हीरा नकली है।... उसके दरबारियों और तमाम कारीगरों में ये कुव्वत न हुई कि ये बता सके कि इनमें से कौन नकली है और कौन असली??? ... फिर सभी ने सुझाव दिया कि इसकी पहचान तो केवल हीरा-राजा दुर्जन शाल ही कर सकते हैं! .. फिर उन्हें ग्वालियर से दिल्ली लाया गया.. और उन्होंने तुरंत बता दिया कि कौन नकली है!! .. विश्वास दिलाने हेतु दो तगड़े भेड़ जुगाड़ किये गए.. दोनों के मुंडी में हीरा बाँध दिया गया फिर उन्हें लड़ने को छोड़ दिया गया... जबरदस्त आपसी टकराहट से नकली हीरा टूट गया वहीं असली हीरे को खरोंच तक नहीं आई।
राजा दुर्जन शाल के इस कार्य से जहांगीर बहुत खुश हुआ.. और इन्हें आज़ाद कर इनका राज्य पुनः इनके हवाले कर दिया।
 दोबारा कोखरा की गद्दी मिलने पे दुर्जन साल को "महाराजा" की उपाधि दी गयी और उन्होंने अपने उपनाम में "शाह " जोड़ लिया .. इसके बाद के लगभग सभी कोखरा के नागवंशी राजाओं के उपनाम में शाह मिलता है।

ये हीरा-प्रदेश हीरा-नागपुर, सोना-नागपुर कभी भुखमरी में रहा होगा ??? हीरे के जौहरी अनपढ़ हुआ करते होंगे ??? (ज्ञानी और शिक्षित होने में बहुत अंतर है) ... मिशनरी प्रवेश के साथ ही सब गरीब-गुरुआ बन गए?? लाचार-असहाय बन गए???
छोटे-छोटे इंडस्ट्रीज जो भारत के जीडीपी का आधारस्तंभ था उन्हें अंग्रेजों ने तहस नहस कर दिया.. सबसे बड़े-बड़े और भयंकर अकाल अंग्रेजों के काल में ही क्यों हुए ?? 
ये प्राकृतिक अकाल नहीं थे.. बल्कि क्रिएट किये गये अकाल थे... दुनिया के इतिहास में सबसे बड़ा नर-संहार था... सड़कें-गलियां भूखी,नँगी,कंगाल के ढेर से पड़ी लाशें ही दिखाई पड़ती थी।

यहाँ के हीरे पहले मुग़ल लुटे फिर अंग्रेज कब्जा जमाए और आज बहुते बड़के रईस बनते फिरते हैं।.. मिशनरियों के माध्यम से पैसे भेजते हैं और जन्म-घुंटी पिलाई जाती कि बेटा अगर हम नहीं आये होते न तो तुम्हारा तो गेम ही ऑवर था.. टोटली फिनिश्ड!! .. अस्तित्व ही खत्म था या अस्तित्व से जूझ रहे होते .. समझे ?। .. और इसके करिया अंग्रेज बेटे लोग ढेर मेरचाय (मिर्ची) खिवल सुगा नियन टें-टें पें-पें करना शुरू कर देते हैं।

ताले गोरे अंग्रेज और इनके करिया अंग्रेज!! .. बात ही निराली है इन सब की।

जे हलेलुइया।

संघी गंगवा
खोपोली से।

Hr. deepak raj mirdha
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छोटा नागपुर या हीरा सोना नागपुर? छोटा नागपुर या हीरा सोना नागपुर? Reviewed by deepakrajsimple on January 15, 2018 Rating: 5

1 comment:

  1. *छोटा नागपुर पठार /राड़ सभ्यता * सम्लित बिहार ,बंगाल, उडीसा के लोग | कबिलाई जीवन की शुरूआत हुआ |ये लोग गोंडवाना लैड़ के कोलारियन खेरवाल वंश के है और यही लोग प्राकृत धर्म मानते हैं |इनका अपना रिचुवल है जो अब भी कायम है |इनलोगो का राज परिवार हुए जो आज भी देखने को मिलता है मगर इनका इतिहास को गढा़ गया है |गजेटियर के हिसाब से मुण्डाओं का प्रवेश छोटानागपुर में 600ई0 हुआ रीशा मुंडा के नेतृत्व में |रीशा मुंडा के बाद मदरा मुंडा राजा बने |

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