भारत क़ुर अन्य देश के टैक्स की तुलना


यह पोस्ट यूके के एक भारतवंशी एनास्थीटिस्ट ने लिखी है, अवश्य पढ़िये।

यूके में मेरा वेतन 61000 पाउंड वार्षिक है। जो रुपयों में 48,80,000 होता है। मैं अपने वेतन में से 40 प्रतिशत आयकर देता हूँ अर्थात् 19,52,000 रु. देने के बाद मेरे पास 29,28,000 रु बचते हैं। 

मैं इनमें से 700 पाउंड मासिक मकान किराया, 140 पाउंड मासिक नगरपरिषद को टैक्स, लगभग 100 पाउंड मासिक गैस और बिजली के लिए, लगभग 500 पाउंड वार्षिक पानी के बिल, लगभग 1000 पाउंड वार्षिक कार बीमा और 250 पाउंड वार्षिक रोड टैक्स देता हूँ। (आप यूके में बीमा और रोड टैक्स के बिना कार नहीं चला सकते।) कुल हुआ लगभग 14000 पाउंड वार्षिक अर्थात् 12,80,000 रुपये। 

इनको घटाने के बाद मेरे पास बचे 29,28,000 - 12,80,000 अर्थात् रु. 16,48,000

ये सभी बिल अनिवार्य हैं और इनमें कोई छूट नहीं दी जा सकती। यूके में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति को ये बिल देने ही पड़ते हैं। यूके में लगभग 40 प्रतिशत लोग आयकर देते हैं। कुछ बिल जैसे गैस और बिजली उपयोग के अनुसार देने पड़ते हैं, पर देने सबको पड़ते हैं। 

इन बिलों में दैनिक उपभोग का खर्च जोड़ लीजिए, जैसे खाना, पेट्रोल, मोबाइल, वाइ-फाइ आदि। ये चीजें भी यहाँ भारत की तुलना में बहुत मँहगी हैं। 

अब आप समझ गये होंगे कि यूके क्यों विकसित है, यहाँ सड़कें अच्छी और साफ हैं, सरकारी स्कूल सर्वश्रेष्ठ हैं, 24 घंटे बिजली और पानी मिलता है। मैं केवल मौलिक खर्च बता रहा हूँ। कई उन्नत टैक्स जैसे प्राॅपर्टी टैक्स, कैपीटल गेन टैक्स आदि की चर्चा मैंने नहीं की है।

याद रखिये कि यूके में खाने-पीने, कपड़े, दैनिक उपयोग का सामान और पेट्रोल सब बाहर से आयात किया जाता है। यूके का आकार लगभग हमारे उत्तर प्रदेश के बराबर है और आबादी इसकी तिहाई (1/3) है। 

अब भारत को देखिये। 

यह प्राकृतिक संसाधनों के भरपूर विराट देश है। हमें खाना और कपड़ा आयात नहीं करना पड़ता। लेकिन 130 करोड़ की आबादी में केवल 4 करोड़ अर्थात् केवल 3 प्रतिशत लोग आयकर देते हैं। इनमें से अधिकांश नौकरीपेशा कर्मचारी हैं, जो अपनी आय को छिपा नहीं सकते। 

लेकिन सभी 130 करोड़ लोग सस्ती बिजली, पानी, अच्छे सरकारी स्कूल, अच्छी सड़कें और राजमार्ग, तथा सुपरफास्ट ट्रेन चाहते हैं। 

जरा सोचिये। खाने का सामान, दूध, मिठाई, कपड़े, मोबाइल और कम्प्यूटर की मरम्मत आदि खरीदारी करते समय आपको कितने दुकानदारों ने बिल दिया है? अपने आस-पास के व्यापारियों को देखिए, जो एक औसत वेतनभोगी कर्मचारी से कहीं अधिक कमा रहे हैं। 

अब करोल बाग, चावड़ी बाजार, सदर बाजार, दिल्ली के सभी व्यापारिक केन्द्रों, झावेरी बाजार आदि आदि के व्यापारियों के बारे में सोचिये या मुम्बई या भारत के किसी भी शहर के बाजारों के बारे में सोचिये। इन बाजारों में आपको कभी बिल नहीं दिया जाएगा। कम से कम पक्का बिल तो हरगिज नहीं। मकान खरीदने/बेचने पर कितने बिल दिये जाते हैं? 

लेकिन वे सभी अच्छी सड़कें, 24 घंटे बिजली और पानी की आपूर्ति, अच्छे स्कूल चाहते हैं। वे सरकार को खराब प्रशासन के लिए और कर्मचारियों को भ्रष्टाचार के लिए कोसेंगे। वे सरकार को ट्रेफिक जाम, टूटी सड़कों, देरी से चलने वाली रेलगाड़ियों और हवाई अड्डों पर अव्यवस्था के लिए गाली देंगे। पर अपना आयकर नहीं देंगे।

अब जब सरकार ने जीएसटी के रूप में टैक्स चोरी रोकने का सिस्टम शुरू किया है, तो ये सभी चीख और रो रहे हैं। ये ही वे लोग हैं जो सरकार विरोधी हर बात को फेसबुक जैसे सोशल मीडिया माध्यमों पर शेयर करते हैं। 

यह लोकतंत्र है। इसलिए इन सभी टैक्स चोरों, विपक्षी नेताओं और कुबुद्धिजीवियों को सरकार की आलोचना करने का पूरा अधिकार है। लेकिन जब आपको बिजली नहीं मिलती, जब समय पर कूड़ा नहीं उठाया जाता, जब आप ट्रैफिक जाम में फँस जाते हैं, जब सेना के पास पर्याप्त आधुनिक हथियार नहीं हैं, तो व्यवस्था या सरकार को गाली मत दीजिए। यह मत कहिए कि यूरोप में हाईवे सबसे अच्छे हैं। 

पहले यहाँ अपने टैक्स का भुगतान कीजिए, तब माँग कीजिए। 

और हाँ, इस पाखंड के विरुद्ध भी कुछ करिये।copyयह पोस्ट यूके के एक भारतवंशी एनास्थीटिस्ट ने लिखी है, अवश्य पढ़िये।

यूके में मेरा वेतन 61000 पाउंड वार्षिक है। जो रुपयों में 48,80,000 होता है। मैं अपने वेतन में से 40 प्रतिशत आयकर देता हूँ अर्थात् 19,52,000 रु. देने के बाद मेरे पास 29,28,000 रु बचते हैं। 

मैं इनमें से 700 पाउंड मासिक मकान किराया, 140 पाउंड मासिक नगरपरिषद को टैक्स, लगभग 100 पाउंड मासिक गैस और बिजली के लिए, लगभग 500 पाउंड वार्षिक पानी के बिल, लगभग 1000 पाउंड वार्षिक कार बीमा और 250 पाउंड वार्षिक रोड टैक्स देता हूँ। (आप यूके में बीमा और रोड टैक्स के बिना कार नहीं चला सकते।) कुल हुआ लगभग 14000 पाउंड वार्षिक अर्थात् 12,80,000 रुपये। 

इनको घटाने के बाद मेरे पास बचे 29,28,000 - 12,80,000 अर्थात् रु. 16,48,000

ये सभी बिल अनिवार्य हैं और इनमें कोई छूट नहीं दी जा सकती। यूके में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति को ये बिल देने ही पड़ते हैं। यूके में लगभग 40 प्रतिशत लोग आयकर देते हैं। कुछ बिल जैसे गैस और बिजली उपयोग के अनुसार देने पड़ते हैं, पर देने सबको पड़ते हैं। 

इन बिलों में दैनिक उपभोग का खर्च जोड़ लीजिए, जैसे खाना, पेट्रोल, मोबाइल, वाइ-फाइ आदि। ये चीजें भी यहाँ भारत की तुलना में बहुत मँहगी हैं। 

अब आप समझ गये होंगे कि यूके क्यों विकसित है, यहाँ सड़कें अच्छी और साफ हैं, सरकारी स्कूल सर्वश्रेष्ठ हैं, 24 घंटे बिजली और पानी मिलता है। मैं केवल मौलिक खर्च बता रहा हूँ। कई उन्नत टैक्स जैसे प्राॅपर्टी टैक्स, कैपीटल गेन टैक्स आदि की चर्चा मैंने नहीं की है।

याद रखिये कि यूके में खाने-पीने, कपड़े, दैनिक उपयोग का सामान और पेट्रोल सब बाहर से आयात किया जाता है। यूके का आकार लगभग हमारे उत्तर प्रदेश के बराबर है और आबादी इसकी तिहाई (1/3) है। 

अब भारत को देखिये। 

यह प्राकृतिक संसाधनों के भरपूर विराट देश है। हमें खाना और कपड़ा आयात नहीं करना पड़ता। लेकिन 130 करोड़ की आबादी में केवल 4 करोड़ अर्थात् केवल 3 प्रतिशत लोग आयकर देते हैं। इनमें से अधिकांश नौकरीपेशा कर्मचारी हैं, जो अपनी आय को छिपा नहीं सकते। 

लेकिन सभी 130 करोड़ लोग सस्ती बिजली, पानी, अच्छे सरकारी स्कूल, अच्छी सड़कें और राजमार्ग, तथा सुपरफास्ट ट्रेन चाहते हैं। 

जरा सोचिये। खाने का सामान, दूध, मिठाई, कपड़े, मोबाइल और कम्प्यूटर की मरम्मत आदि खरीदारी करते समय आपको कितने दुकानदारों ने बिल दिया है? अपने आस-पास के व्यापारियों को देखिए, जो एक औसत वेतनभोगी कर्मचारी से कहीं अधिक कमा रहे हैं। 

अब करोल बाग, चावड़ी बाजार, सदर बाजार, दिल्ली के सभी व्यापारिक केन्द्रों, झावेरी बाजार आदि आदि के व्यापारियों के बारे में सोचिये या मुम्बई या भारत के किसी भी शहर के बाजारों के बारे में सोचिये। इन बाजारों में आपको कभी बिल नहीं दिया जाएगा। कम से कम पक्का बिल तो हरगिज नहीं। मकान खरीदने/बेचने पर कितने बिल दिये जाते हैं? 

लेकिन वे सभी अच्छी सड़कें, 24 घंटे बिजली और पानी की आपूर्ति, अच्छे स्कूल चाहते हैं। वे सरकार को खराब प्रशासन के लिए और कर्मचारियों को भ्रष्टाचार के लिए कोसेंगे। वे सरकार को ट्रेफिक जाम, टूटी सड़कों, देरी से चलने वाली रेलगाड़ियों और हवाई अड्डों पर अव्यवस्था के लिए गाली देंगे। पर अपना आयकर नहीं देंगे।

अब जब सरकार ने जीएसटी के रूप में टैक्स चोरी रोकने का सिस्टम शुरू किया है, तो ये सभी चीख और रो रहे हैं। ये ही वे लोग हैं जो सरकार विरोधी हर बात को फेसबुक जैसे सोशल मीडिया माध्यमों पर शेयर करते हैं। 

यह लोकतंत्र है। इसलिए इन सभी टैक्स चोरों, विपक्षी नेताओं और कुबुद्धिजीवियों को सरकार की आलोचना करने का पूरा अधिकार है। लेकिन जब आपको बिजली नहीं मिलती, जब समय पर कूड़ा नहीं उठाया जाता, जब आप ट्रैफिक जाम में फँस जाते हैं, जब सेना के पास पर्याप्त आधुनिक हथियार नहीं हैं, तो व्यवस्था या सरकार को गाली मत दीजिए। यह मत कहिए कि यूरोप में हाईवे सबसे अच्छे हैं। 

पहले यहाँ अपने टैक्स का भुगतान कीजिए, तब माँग कीजिए। 

और हाँ, इस पाखंड के विरुद्ध भी कुछ करिये।copy


Hr. deepak raj mirdha
yog teacher , Acupressure therapist and blogger
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भारत क़ुर अन्य देश के टैक्स की तुलना भारत क़ुर अन्य देश के टैक्स की तुलना Reviewed by deepakrajsimple on November 10, 2017 Rating: 5

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