छन्दशास्त्र


छन्दशास्त्र -- एक उदाहरण :
हिन्दी के कवि अब छन्दशास्त्र नहीं पढ़ते | छन्दशास्त्र के प्रवर्तक पिंगल ऋषि हैं, किन्तु उनका ग्रन्थ अब पढ़ाया नहीं जाता क्योंकि सेक्युलर हिन्दी कवि भी अब मुल्लों से ही छन्दशास्त्र सीखते हैं |
छन्द दो किस्म के होते हैं, जिनमें मात्राओं का मेल बिठाया जाता है उसे "जाति" कहते हैं और जिनमें अक्षरों का मेल बिठाया जाता है उन्हें "वृत्त" कहते हैं | वेदों में वृत्त नाम के छन्द का प्रयोग होता है जबकि आधुनिक हिन्दी में मात्रा पर आधारित "जाति" छन्द का प्रयोग प्रचलित है | गायत्री जैसे छन्द वृत्त में हैं | वृत्त के हिसाब से निम्नोक्त वृत्त में चार पाद हैं जिनमें अक्षरों की संख्या है  14-15-13-16 :--
तेरे बाप की नहीं वह मिट्टी बाँट ली, समय आया उसका हिसाब करने का |
बहुत खून गिरा यहाँ की मिट्टी में , अब मिजाज है सबकुछ साफ़ करने का ||
इस प्रकार के चार पाद वाले छन्द को "विषमवृत्त" छन्द कहते हैं | अब यदि इस विषमवृत्त छन्द को समवृत्त छन्द में बदलना चाहें तो ऐसा बनेगा :--
तेरे बाप की नहीं वह मिट्टी बाँट ली, वक्त आया उसका हिसाब करने का |
बहुत खून गिराया यहाँ की मिट्टी में , अब मिजाज है सब साफ़ करने का ||
इसमें 14-14-14-14 अक्षरों के चार पाद हैं | चौदह वर्णों के वृत्त वाले छन्द को "शक्वरी" कहते हैं | गणों के हिसाब से शक्वरी के कई भेद होते हैं |
16 के बना दिए जाएँ तो संस्कृत साहित्य का प्रचलित श्लोक बन जाएगा | गणों के बन्धन से मुक्त श्लोक होता है जिसमें संस्कृत के सारे महाकाव्य और पुराण एवं अधिकांश काव्य रचे गए हैं | 
यह है संस्कृत साहित्य का प्रसिद्ध "श्लोक" जो 8-8-8-8 (16-16) अक्षरों का छन्द है --
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तेरे बाप की नहीं वह मेरी मिट्टी बाँट ली,
वक्त आया उसका अब हिसाब करने का ||
बहुत खून गिराया तूने यहाँ की मिट्टी में ,
अब मिजाज है सबकुछ साफ़ करने का ||
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इसमें भी गणों का हिसाब शुद्ध रखना पड़ता है तब जाकर संस्कृत का शुद्ध वृत्त नाम का छन्द बनता है | गण की गिनती मात्रा के आधार पर होती है |
उर्दू काव्य संस्कृत छन्दों का ही भौंडा विकृतीकरण है, जो मुख्यतः श्लोक और पंक्ति के सरलीकरण हैं |
"पंक्ति" छन्द में दस अक्षर होते हैं | दो-दो के पाँच समूह वाली पंक्ति को अंग्रेजी में  "iambic pentameter"  कहते हैं जिसमें शेक्सपियर के अधिकाँश काव्य लिखे गए |
आधुनिक युग में वर्ण और अक्षर में अन्तर समझने वाले लोग नहीं मिलते, बड़े बड़े पण्डित भी दोनों को एक ही समझ लेते हैं | वर्णमाला के चिह्नों को वर्ण कहते हैं | किन्तु बोलते समय न्यूनतम खण्ड को अक्षर कहते हैं जिसका और भी क्षरण उच्चारण में सम्भव न हो | अक्षर को अंग्रेजी में syllable कहते हैं | उदाहरणार्थ गायत्री को लें जिनमें 23 अक्षर हैं (7-8-8) :--
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तत् स वि तुर् व रे ण्यम्
भर् गो दे व स्य धी म ही 
धि यो यो न: प्र चो द यात् 
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जब 8-8-8- अक्षर हों तब "गायत्री छन्द" बनता है, किन्तु एक अक्षर न्यून हो (7-8-8) तब "निचृद्-गायत्री छन्द" बनता है | आजकल कई मूर्ख पण्डित हैं जो "वरेण्यम्" को "वरेणीयम्" पढ़कर 24 अक्षर बनाते हैं, इससे न केवल व्याकरण की टांग टूटती है बल्कि वैदिक मन्त्र का विनियोग भी अशुद्ध हो जाता है, क्योंकि मन्त्र का प्रयोग करते समय सबसे पहले विनियोग किया जाता है जिसमें गायत्री मन्त्र का छन्द "निचृद्-गायत्री" है ऐसा पाठ करना पड़ता है वरना मन्त्र निष्फल हो जाता है |
आज से सहस्र वर्ष पूर्व के काव्यशास्त्रीय ग्रन्थों में छ अक्षरों वाले छन्द (6-6-6-6) को गायत्री कहा जाता था, किन्तु वेदों में आठ अक्षरों के तीन पाद (8-8-8) को गायत्री मानते हैं | वेदों और लौकिक छन्दों में आठ अक्षरों के एक पाद को अनुष्टुभ मानते हैं | दो पाद एकसाथ हो तो अर्थात सोलह अक्षर का छन्द हो तो "अष्टि" छन्द बनता है | चार पाद हों, अथवा सोलह के दो पाद हों तो श्लोक बनता है |
आजकल ऐसे ही कवि भरे पड़ें हैं जो "कवि" का अर्थ भी नहीं जानते | वेद में कवि का अर्थ है जिसके काव्य में वह शक्ति हो कि सुनकर स्नेहवश पितर अपने निमित्त अर्पित कव्य ग्रहण करने चले आयें ! जो देवों को अर्पित हो वह हव्य है और जो पितरों को अर्पित किया जाय वह कव्य है | कव्य के साथ जो पाठ किया जाय वह काव्य है | काव्य शुद्ध हो तो पितर प्रसन्न होते हैं और तब उनके आशीर्वाद से वंश सुखपूर्वक चलता है |
बहुतों ने सुना होगा -- "जहाँ न पँहुचे रवि वहाँ पँहुचे कवि" | इसका प्राचीन अर्थ कितनों को पता  है ? पितृलोक है चन्द्रलोक का पृथ्वी से नहीं दिखने वाला दूसरी ओर का भाग | उधर एक पक्ष का दिन और एक पक्ष की रात होती है, अतः एक चान्द्रमास पितरों का एक अहोरात्र (दिनरात) है | जब पितरों की रात होती है तब सूर्य की किरणें पितृलोक में नहीं पँहुचती, किन्तु काव्य के साथ कव्य पितरों को विधिपूर्वक अर्पित किया जाय तो पँहुचता है | रवि नहीं पँहुचता किन्तु कवि पँहुचता है |
गायत्री यजु: को व्याहृति युक्त करने से सावित्री मन्त्र बनता है जिसका जप प्राणायाम काल में होना चाहिए | जिनको वेद की अनुमति नहीं है वे अन्य मन्त्र का जप कर सकते हैं, जैसे कि "ॐ नम: शिवाय" | "ॐ नम: शिवाय" का चार बार पाठ करने से चौबीस अक्षर बन जायेंगे और गायत्री छन्द के बराबर काल लगेगा | "ॐ नम: शिवाय" के तीन पाठ के बराबर "ॐ भू ॐ भुवः .." आदि व्याहृति हैं | अतः सावित्री के स्थान पर प्राणायाम के एक पाद (अर्थात पूरक या अन्त:-कुंभक या रेचक या बाह्य-कुंभक)  में सात बार "ॐ नम: शिवाय" जप करसकते हैं -- एक प्राणायाम में 28 बार "ॐ नम: शिवाय" ! है न कठिन ? फिर भी वह लाभ नहीं होगा जो गायत्री से होगा | किन्तु गायत्री हेतु अत्यधिक शुद्धि चाहिए, वरना शाप लगता है | शाप गायत्री को नहीं है, अशुद्ध साधक को है |
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जिसे कुछ लोग छन्द-विहीन कविता समझने की भूल करते हैं वह तथाकथित मुक्तछन्द भी अतुकान्त छन्द ही है | "तुक" का छन्द से कोई सम्बन्ध ही नहीं है, तुक तो अलंकार का एक भेद है, और अलंकार होना या न होना कविता का अनिवार्य लक्षण नहीं है, अतिरिक्त लक्षण है | जैसे कि कोई मनुष्य अलंकार धारण न करे तो क्या मनुष्य नहीं रहेगा ? वेद में कहीं भी तुकबन्दी नहीं है, किन्तु छन्द है, "छन्द" शब्द ही वेद का पर्याय माना जाता है | छन्द के बिना संसार की किसी भी भाषा में कविता का अस्तित्व सम्भव ही नहीं है | अक्षरों को गिनते हुए कविता लिखने वाले मूर्ख होते हैं, जिनके हृदय में कवि का वास है उसकी लेखनी से छन्द में स्वभावतः कविता निकलती है | रामायण, महाभारत, पुराण, आदि में श्लोकबद्ध कविता है किन्तु तुकबन्दी कहीं नहीं है | उर्दू का शेर भी छन्द का ही भेद है | संसार के सारे काव्य छन्द ही हैं, छन्दों के हज़ारों भेद हैं और तुक होना या न होना इसमें गिना ही नहीं जाता |
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पिंगल ऋषि का छन्दशास्त्र छ वेदांगों में से एक है जिसके बिना वेदाध्ययन अधूरा है,और अग्निपुराण में इसका वर्णन व्यासजी ने भी किया है | 

साभार  विनय झा
Hr. deepak raj mirdha
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छन्दशास्त्र छन्दशास्त्र Reviewed by deepakrajsimple on November 09, 2017 Rating: 5

1 comment:

  1. Aapke dwara rachi gayi koi bhi kavitaa ya geet zaroor mujhe mail kijiye, main ek guitar vadak hun. Dhanyawaad.

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