मजदूर का नग्रेजी संस्करण है -लेबर ।
इसका भारतीय संस्करण क्या है - श्रमिक?
लेकिन श्रमसाध्य और श्रम तो भारत मे समस्त प्राणियों का अनिवार्य कर्तव्य और जीवनचर्या है।
श्रम विहीन तो सिर्फ तामसी प्रमोदी आलसी हो सकते हैं - हरामखोर कहते हैं उनको - वो भी अरबी संस्कृति है।
बिहार आज से मात्र 250 वर्ष पूर्व विश्व का सबसे सम्पन्न इलाका था।
बिहार सम्पन्न था तो बिहारी भी सम्पन्न रहा होगा।
लेकिन मैन्युफैक्चरिंग और रोजगार की संभावनाओं को खत्म करने का सिलसिला शुरू किया नग्रेजो ने और सिलसिला आज भी जारी है।
लेकिन 1809 -1813 से 1901 के बीच मात्र मात्र पुरुलिया और भागलपुर के 50% लोगों को ट्रेडिशनल पेशे से डिस्प्लेस कर दिया गया जिनकी संख्या 5.5 लाख थी। - अमिय बागची।
अब इसको कोई स्टेटिस्टिक वाला व्यक्ति एक सैम्पल सर्वे मानकर पूरे भारत मे उन 150 वर्षो में बेरोजगार हुए होंगे, इस पर रिसर्च करे।
लेकिन न इसे इतिहास का विषय माना गया, न अर्थशास्त्र का और न ही सामाजिक विज्ञान का।
बिहार का धन लूटकर इंग्लैंड चला गया और बिहारी पूरे भारत और विश्व मे फैल गया।
इस विषय पर कोई बात नही करता ?
क्यों ?
दिल्ली बिहार की छावनी बन गयी है:
इस भाव के कई पोस्ट देखने को मिले। लोगों का विश्लेषण है नौकरी रोजगार शिंक्षा के तलाश में ऐसा हुवा है।
देश मे आने वाले आक्रांता एक समूह में रहने को बाध्य थे - जिसको शहर या सिटी कहा जाता है।जिसका प्रमुख कारण था निजी सुरक्षा।
जो बर्बर होते हैं वे सबसे ज्यादा कायर होते हैं। इसलिए अत्याचार करके अपने समूह में सिमट जाते हैं ठीक उसी तरह जैसे डकैत डकैती करके बीहड़ो में दुबके जाते हैं।
नग्रेजी में शायद इसको Ghetto कहते हैं। आज भी कुछ खास कौमें ghetto में रहना पसंद करती हैं। और यदि किसी शहर में ghetto न हुवा तो अपना ghetto बना लेते हैं। भारत के हर शहर और यहां तक कि लंदन आदि में भी आप ये Ghettoization देख सकते हैं।
खैर Nation of Shopkeeper से जब समुद्री डकैत ( विल दुरंत pirates लिखता है) भारत आये तो भारत की गांव गांव होने वाली हस्त शिल्प की मैन्युफैक्चरिंग को नष्ट किया और फिर क्रमशः मशीनी मैन्युफैक्चरिंग को उन Ghettoes में विकसित किया जो उन्होंने सुरक्षापूर्वक रहने के लिए विकसित किये थे । और भारत को लूटकर अपने देश मे मशीनी क्रांति किया और भारत के धन जन की सहायता से पूरे विश्व पर कब्जा। इस तरह भारत से लगभग 4 से 5 खरब पौंड, 1757 से 1947 के बीच मनी ड्रेन किया गया।
उसके बाद जब सत्ता BEIBs ( British Educated India Barristers) के हाँथ में आई और उन्होंने नौकरियों को तो हजारों साल से दमित वर्ग के लिए सुरक्षित किये, और गुरुकुल और हस्तशिल्प मैन्युफैक्चरिंग के नष्ट होने के कारण शिंक्षा और रोजगार शहरों की विरासत बन गयी।
तो रोजगार विहीन किया हुवा गवांर भारत, शिंक्षा और रोजगार हेतु भारतीय शहरों और अमेरिका इंग्लैंड आदि के शहरों की ओर भागा।
अर्थात मनी ड्रेन के परिणाम स्वरूप ब्रेन ड्रेन।
ये तो उनका एक्सप्लेनेशन जो उन्होंने लिखा है- दिल्ली के बिहारीकरण के बारे में।
एक और कारण है जिसकी ओर में ध्यानाकषर्ण चाहूँगा। बिहार में उसी हजारों साल के दमन को आधार बनाकर वामपंथियों ने वर्गसंघर्ष को जन्म दिया और नक्सलियों द्वारा तथाकथित अत्याचारी वर्ग ( सवर्णों) का कत्ले आम करवाया गया। और ये कत्लेआम इस कदर किय्या गया कि ज्यादातर संभ्रांत बिहारयों ने डर के मारे अपना टाइटल तक लिखना बन्द करके, सिर्फ कुमार से काम चलाना शुरू किया। बहुत से बिहारी इसी भय से अपनी खेत बारी बेंच कर दिल्ली चले गए। और इस तरह बुद्धिविहीन अनैतिक और बंजर बिहार का जन्म हुआ जहां घोसित चाराचोर का अनपढ़ पुत्र भी उप मुख्यमंत्री बन जाता है।
साभार डॉ त्रिभुवन सिंह
अभी भाई Anand shrma जी ने बताया
कुछ साल पहले तक बंगाल और उत्तर भारत में
पटनिया मिर्च की धूम थी।
पटनिया यानि पटना मण्डी
जहां बिहार भर के किसानों का मॉल बिकता था।
काफी धन कमाते थे तब बिहार के किसान।
आज गुंटूर मिर्च में राज कर रहा है
पटनिया मिर्च लापता सा हो चुका है।
किसने किया बरबाद इनको ?
कौन सा ब्राह्म्णवाद जिम्मेदार है इसके लिए ?
पटनिया मिर्च के बीजों का वजूद भी
बचा है, या नहीं
पता नहीं ?
बिहार के मित्र रौशनी डालें इस पर।
महाज्ञानी दलित चिंतक भी समझ दे सकते हेँ ।
वह भी एक दौर था जब बिहार के सीवान की काली
मिटटी के बर्तन रोम साम्राज्य में इतराते थे।
रोम के सम्राट और रानियां बावले थे
सीवान की काली मिट्टी के बर्तनों के!
व्ह दौर चाणक्य और चंद्रगुप्त मौर्य का युग था।
आज सिवान एक दुर्नाम बाहुबली
के लिए जाना जाता है।
"सन 1852 अल्बर्ट पेकाक की लिखी किताब
"मगध इन ग्रीस" से मिली जानकारी।
जल्द ही अगला पड़ाव सीवान।
जहाँ कबीरपंथी मठिया और कबीर समाज के साथ
मिलकर सीवान के प्राचीन गौरव
को फिर स्थापित करना है।
हुकूमत की मदद नहीं..
आप मित्रों का सहयोग चाहिए।
शायद बिहार निवासी भी अपनी इस
वैश्विक हड़क से अभी तक अनजान हों ?
बाकि भारत की बात क्या करूँ ?
आँध्रप्रदेश और..
महाराष्ट्र का किसान..
आत्महत्या करता है..
.
उत्तर प्रदेश और ...
बिहार का किसान..
आत्महत्या नहीं करता..
.
क्यों ?
.
बिहार और यूपी के किसान...
कर्जा लेकर खेती नहीं करते
और ज्यादातर किसानों के पास..
गाय और भैंस है...
बहुतायत कम में सँतुष्ट
और आड़े वक्त में
गाय और भैंस सँकट से...
उबार लेती है..
दूध से ..
गोबर से...
.
शहरी लोगो को मजाक लगै मैरी बात..
पर जो गाँवों जानते है..
समझेंगे मेरी बात
साभार सुमन्त भट्टाचार्य
Hr. deepak raj mirdha
yog teacher , Acupressure therapist and blogger
www.deepakrajsimple.blogspot.com
www.deepakrajsimple.in
deepakrajsimple@gmail.com
facebook.com/deepakrajsimple
facebook.com/swasthy.katha
twitter.com/@deepakrajsimple
call or whatsapp 8083299134, 7004782073
yog teacher , Acupressure therapist and blogger
www.deepakrajsimple.blogspot.com
www.deepakrajsimple.in
deepakrajsimple@gmail.com
facebook.com/deepakrajsimple
facebook.com/swasthy.katha
twitter.com/@deepakrajsimple
call or whatsapp 8083299134, 7004782073
लेबर और श्रमिक में अंतर
Reviewed by deepakrajsimple
on
November 09, 2017
Rating:
No comments: