स्वामी विवेकानंद और मांस भक्षण


स्वामी विवेकानंद और मांस भक्षण

यदी भारत के लोग चाहते हैं की में मांसाहार न करूँ तो उनसे कहो की एक रसोइय्सा                                 भेज दें और पर्त्याप्त धन सामग्री।

स्वामी विवेकानंद

विवेकानंद साहित्य , भाग -4, पृष्ठ -344

इसी भारत में कभी  ऐसा भी   समय  था जब कोई ब्राहमण बिना गौ मांस                         खाए ब्राहमण नहीं रह पाता  था। वेद  पड़कर देखो कि किस तरह जब कोई        सन्यासी या राजा या बड़ा आदमी मकान में आता था तब सबसे पुष्ट बैल मारा             जाता था

स्वामी विवेकानंद (विवेकानंद साहित्य Vol 5 Pg 70)

अब देश के लोगों को मछली मांस खिलाकर  उद्यमशील बना डालना होगा जगाना        होगा  तत्पर बनाना होगा नहीं तो धीरे धीरे देश के सभी लोग पेड़ पत्थरों की तरह             जड़ बन जायेंगे। इसीलिये कह रहा था की मछली और मांस खूब खाना

स्वामी विवेकानंद

(विवेकानंद साहित्य भाग -6, पृष्ठ 144)

विवेकानंद द्वारा मांस भक्षण

विवेकानंद द्वारा वेदों में मांस भक्षण की मान्यता वैदिक ज्ञान के प्रति उनकी अज्ञानता , पाश्चात्य विद्वानों का उन पर प्रभाव के अतिरिक्त उनकी मांसाहार के प्रति लालायित्ता को प्रदर्शित करती है। ना केवल विवेकानंद मांस भक्षण किया करते थे अपितु इनके गुरु स्वामी राम कृष्ण परमहंस भी मांस भक्षण किया करते थे। स्वामी राम कृष्ण परम हंस को स्वामी विवेकानंद इश्वर का अवतार घोषित करते थे, लेकिन ये कैसी विडम्बना थी की वो  तथाकथित इश्वर अपने लिए स्वयं मांस का निर्माण करने में असमर्थ था और अपनी मांस खाने की लालसा को निरीह प्राणियों के जीवन लीला समाप्त करके पूरा किया करता था।वह शिष्य घोषित इश्वर जिसे हर वस्तु में काली माँ के दर्शन हुआ  करते थे उन निरीह मूक प्राणियों में  काली के दर्शन ना कर सका जिन्हें उन्होंने तथा उनकी आज्ञा अनुसार उनके शिष्यों ने रक्त पिपासा का ग्रास बना लिया । स्वामी विवेकानंद और स्वामी राम कृष्ण परमहंस शायद ये भूल गए की  जिस काली को  वे कण कण में देखते हें समस्त संसार को काली में ही व्याप्त मानते हैं वह आपकी काली मां इन प्राणियों में  भी तो वास करती  है I क्या इन निरीह प्राणियों में उस माँ का निवास नहीं है ?क्या ये प्राणी उस के बच्चे नहीं है? क्या कोई माँ अपने बच्चों पर इतनी निर्दयी हो सकती है को की वो उसके उत्तम कृति मनुष्य को दुसरे प्राणियों को मारने की आज्ञा दे दे? प्राय  यह देखा जाता है   कि  उत्तम संतान अपने से छोटे और असहाय का ध्यान रखते हैं उसी प्रकार इश्वर भी इसी नियम का पालन करता है  और मनुष्य के लिए भोजन पैदा करने से पहले वह पशुओं के लिए भोजन की व्यवस्था करता है। मनुष्य को अपने भोजन की व्यवस्था करने के लिए परिश्रम करना पड़ता है। अनाज उगाने के लिए भूमी का चयन करना पड़ता है फिर उसे खेती योग्य बनाना पड़ता है खेत को जोतकर पर्याप्त मात्र में उर्वरक और पाने देकर अनाज उगाया जाता है जबकी पशुओं को भोजन पाने  के लिए ये सब करने की आवश्यकता नहीं  होती है उनके लिए इश्वर खुद ही खाने की व्यवस्था करता है यहाँ तक की मनुष्य अपने लिए जिस अन्न को उगाता है उसमें भी इश्वर पशुओं का भाग पहले  ही निर्धारित कर देता है और पशुओं ने लिए खरपतवार स्वयं पैदा हो जाती है उसके लिए कोई परिश्रम नहीं करना पड़ता। जो इश्वर उन प्राणियों के प्रति इतना दयालु है उसी ईश्वर के स्वघोषित भक्त उन्हीं  प्राणियों को अपनी भूख  शांत करने का साधन बनाते रहे और उन्हें इश्वर की ये दया दिखाई नहीं दी

स्वामी विवेकानंद को  मांस भक्षण में  होने  वाली बर्बरता और क्रूरता का पूर्ण ज्ञान था लेकिन फिर भी वो मांस भक्षण किया करते थे ये उनकी मांस खाने के लिए ललक को ही प्रदर्शित करता है जिसके लिए वो सारे सिद्धांतों  एवम संस्कारों को तिलाजंली देने को तत्पर रहा करते थे। प्राणियों को अपना बंधुगण बताते हुए स्वामी विवेकानंद कहते हें की मुझे पता है की ये गलत है कि अपने स्वार्थ के लिए किसी  के प्राण लिए लिए जाएँ लेकिन में इसके लिए विवश हो जाता हूँ।

स्वामी विवेकानंद द्वारा पशु बलि Sister Christine को बेलुरे मठ हावड़ा से 12th November 1901 को Sister Christine
को लिखे अपने पत्र में लिखते हैं की हमने काली मां की पूजा की और बकरे की बली दी। स्वामी जी जहाँ वैदिक धर्म पर बली का आरोप जड़ते हैं वही खुद वो ही निंदनीय कर्म करने मे संलग्न होते हैं।
We had an image, too, and sacrificed a
goat and burned a lot of fireworks.
The complete work of Swamee Vivekanand,
Vol – 9- Pg169

Mrs Ole Bull को Alambazar Math
Calcutta (Darjelling ) से 26 TH March
1897 को लिखे अपने पत्र में अपनी बीमारी से ग्रस्त होने को बयां करते हुए स्वामी विवेकानंद लिखते हैं की केवल मांस खाना ही लम्बी आयु का राज है Admitting about the diabetes problem he
said that Eating only meat and drinking no
water seems to be the only way to prolong
life
-The complete work of Swamee
Vivekanand, Vol – 9- Pg 9

Marry की 28 TH April 1897 को अपने स्वास्थय के बारे में लिखते हुए स्वामी विवेकानंद लिखते हें की मेरे बाल भूरे हो गए हें चहरे पर झुर्रियां पड़ने लगी हैं और में अपनी उम्र से 20 वर्ष ज्यादा का दिखने लगा हूँ। मेरा शरीर कमजोर हो रहा है। में मांस खाने के लिए ही बना हूँ ना रोटी ना आलू ना राइस ना ही शक्कर My hair is turning grey in bundles, and my
face is getting wrinkled up all over; that
losing of flesh has given me twenty years
of age more. And now I am losing flesh
rapidly, because I am made to live upon
meat and meat alone — no bread, no rice,
no potatoes, not even a lump of sugar in
my coffee!! I
-The complete work of Swamee
Vivekanand, Vol – 6- Pg 391



vol 4 , page 344 , page 1732 on ebook
If the people in India
want me to keep strictly to my Hindu diet, please tell them to send me a cook and money enough to keep him. This silly bossism without a mite of real help makes me laugh.

विवेकानंद आपके आदर्श क्यों है ?ज्यादातर हिन्दुओ के लिए विवेकानंद बहुत बड़े आदर्श है | उन्होंने इसवी संवत १८९३ में चिकागो में विश्व धर्मं सम्मेल्लन में हिन्दू धर्मं का प्रतिनिधित्व किया |पर उनके निजी विचार जान कर उनके रहन-सहन खान पान को जान कर मुझे कही भी नहीं लगा येसंत है या हिन्दू है |बल्कि इनके अनुयायी रामकृष्ण वालो ने तो स्वंम को हिन्दू ना कहेलाए जाने के लिए कोर्ट में आवेदन भी किया था, पर आश्चर्य तोइस बात का है की हिन्दू उन्हें सर आँखों पर चड़ा कर रखते है बिना जाने के किस कारण से वो इसके अधिकारी है |मै रामकृष्ण जो की विवेकानंद के गुरु थे और विवेकानंद के बारे में रामकृष्ण की ही पुस्तकों से प्रमाण दे कर उनके विचारो को आपके सामने रखने जा रहा हु |बहुत से लोग जो भावनात्मक रूप से जुड़े है उनको दुःख होगा पर मेरा निवेदन है की बजायमुझे बुरा भला कहेने के उन किताबो के पन्ने पलटिये जिनके मै प्रमाण दे रहा हु | रामकृष्ण या विवेकानंदा साहित्य मैंने तो नहीं लिखा मै सिर्फ उन्ही बात को आप तक पंहुचा रहा हु |आइये जानते है विवेकानंद और उनके गुरु रामकृष्ण के विचारो के बारे में........................१. राष्ट्र के स्वतंत्रता आन्दोलन व सामाजिक सुधारो पर उनके विचारदेश के स्वाधीनता संग्राम में उनका कोई योगदान नहीं है देखिये"The policy of Ramkrishna mission has always been faithful to (its founder) swami Vivekanand's intention. In the early twenties when India's struggle with England had become intense and bitter, the mission has has harshly criticised for refusing to allow its members to take part in the freedom struggle."- Teachings of Swami Vivekanand, P.38उनके जीवनीकार उलट ही लिखते है -"Ramkrishna & Vivekanand were the first awakeners of India's National Consciousness. They were India's first nationalist leaders in the true sense of the term. The Movement for India's liberation started from Dakshineswar."-Bio. 231पर इस बात का खंडन इसी पुस्तक में अंगे स्वं विवेकानंद के शब्दों में देखिये"Let no political significance ever be attached falsely to my writings. What nonsense! " He said as early as September 1894. A year later he wrote :" I do not believe in Politics. God and truth are the only politics in the world. All else is trash." -बिओ. 232अब जब स्वयं स्वामी विवेकानंद ही ये लिख रहे है के उनका राजनीती में कोई रुझान नहीं तो वे स्वंतंत्रता आन्दोलन के अग्रदूत कैसे हो सकते है ?२. रामकृष्ण ने स्वयं को राम और कृष्ण का अवतार घोषित कियाComplete works of Swami Vivekananda (Vol. I, P.66-67)"Two days before the death of Ramkrishna, Narendra (Vivekanand) was studying by the bedside of the master when a stangre thought flashed into his mind. Was the master (R.K) trulyan incarnation of God? He said to himself that he would accept shri R.K.'s divinity if the Master declared himself tobe an incarnation. He stood looking intendedly at the master's face. Slowly Shri R.K.'s lips parted and he said in a clear voice - " O my Narendra ! Ae you still not convinced? He who in the past was born as Ram and Krishna is now in his body as R.K.". This R.K. put himself into the category of Ram and Krishna who are recognised by the Hindus as Avtars or incarnations of God."पौराणिक मान्यता को माने तो भी दसवे अवतार कल्कि है तो अब या तो राम कृष्ण को ही कल्कि मानते होंगे | मुझे तो ये बात कहीसे हजम नहीं हुई |३. विवेकानंद के मूर्ति पूजा के सम्बन्ध में विचार"God is eternal, without any form, omnipresent. To think of him as possessing any form, blasphemy/".-VII, 411अब ये मुझे याद दिलाता है हमारे कट्टरपंथी मुस्लिम भाइयो की, ईश्वर निराकार है ये तो समझ में आता है पर एश्निन्दा इस प्रकार है ये तो muslimकट्टरपन्थियो वाली बात हुई |वैदिकयुग में प्रतिमापुजन का अस्तित्व नहीं था | उस समाया लोगो की येहे धरना थी की ईश्वर सर्वत्र विराजमान है, किन्तु बुधके प्रचार के कारन हम जगत श्रस्ता तथा अपने सखा स्वरुप ईश्वर को खो बैठे और उसकीप्रतिक्रिया स्वरुप मूर्तिपूजा की उत्पत्ति हुयी | लोगो ने बुद्ध की मूर्ति बनाकर उसे पूजना आरंभ किया | (देववाणी ७५)"पहले बौध चैत्य, फिर बौध स्तूप और उससे बुद्ध देव का मंदिर बना | इन बौध मंदिरों से हिन्दू मंदिरों की उत्पत्ति हुई | -विवेकानंद से वार्तालाप ११०"External worship, material worship", say the scriptures, "is the lowest stage to rise high." -I, 16और सुनिए क्या कहते है"Idolatory is the attempt of undevelopedminds to grasp spiritual truths." -Teachings of Swami Vivekananda, P.142इतने कड़े शब्दों में तो सिर्फ आचार्य चाणक्य ने ही मूर्तिपूजा की निंदा की है"..... उन्होंने कहा है मुर्ख मूर्ति पूजा करते है " पर जब उन्होंने कहा था उस वक़्त मूर्ति पूजा की शुरुआत थी | पर विवेकानंद के समय तक तो बहुत हिन्दू थे जो मूर्ति पूजा करते थे बल्कि हिन्दू धर्मं में मूर्ति पूजा अभिन अंग की तरह ले लिया गया था बिना वेदों का अध्यन किये | और स्वंम विवेकानंद के गुरु मूर्ति पूजक थे उनका क्या करे |इतना पढने के बाद विवेकानंद के विपरीत विचार देखिये"यदि मूर्तिपूजा में नाना प्रकार के कुत्सित विचार भी प्रविष्ट तो भी मई उसकी निंदा नहीं करूँगा" -(विवेकानंद चरित, पृष्ठ १४६ )अरे भाई इतना कहे चुके है क्या वह निंदा नहीं | क्या कहू इनको ......और विरोधाभाष देखिये"When miss noble came to India in January 1898 to work for education of India, he gave her the name of Sister Nivedita. At first he taught her to worship Shiva and then made the wholeceremony eliminate in an offering the feet of Buddha." -Vivekanand A Biography by Swami Nikhilanand, P.260अब बताइए कहा है इनका विवेक | क्या है इनकीमान्यता कौन समझेगा४. विवेकानंदा का हिन्दू धर्मं से अरुचि और रामकृष्ण का इस्लाम पंथ से प्रभावित होके मुस्लिम होने को हां करनाकलि जी पर बलि देना तो सबको पता है पर स्वयं विवेकानंद कितना समर्थन करते थे इनबलि के नाम पर होने वाली हत्यायो का देखिये |"One day in the Kali temple of calcutta a western lady shuddered at the sight of blood of Goats, sacrificed before the mighty, and exclaimed - 'why is there somuch blood before the Godess?' Quicklythe Swami (Vivekanand) replied - why not a little blood to complete the picture?" -Vivekanand A Biography by Swami Nikhilanand, P.261bade bade samaj sudharko ne devi devtao ko to bali se dur rakha hai bhale hi ve swamm mans bakshan karte ho par vivekanand apvaad theस्वामी विवेकानंद की फ्रेंच भाषा में प्रकाशित जीवनी के लेखक रोम्य रोल्ला के अनुसार रामकृष्ण एक मुस्लमान से प्रभावित होकर अपना धर्मंपरिवर्तन करने और गोमांस खाने के लिए तैयार हो गए थे | इस प्रसंग में माक्स मुलर ने लिखा है - " For long days he (Ramkrishna) subjected himself to various kinds of discipline to realise the Mohammadon idea of all powerful Allah. He let his beard grow, hefed himself on Muslim diet, he completely repeated the Quran." A Real Mahatman P.३५कहे सकते है की इसी कारन स्वामी विवेकानंद इस्लाम का गीत गाते रहे है उसका प्रमाण हम आगे देंगे५. रामकृष्ण मिशन का हिन्दू ना होने के पक्ष में तर्क देनारामकृष्ण मिशन ने अपने हिन्दू न होने के पक्ष में कल्कुत्ता उच्च न्यायालय में जोतर्क दिए थे उनका अंश अहमदाबाद से प्रकाशित होने वाले समाचार पत्र "टाइमस ऑफ़ इंडिया" के २३ जनवरी १८८६ के अंक से यहाँ उध्रत किया जा रहा है -" During his practice of Islam he repeated the name of Allah and said Namaz thrice daily. During this while he dressed and ate like Muslim. Another biographical work 'Ramkrishna Panth' by Akshoy Sen, provides some more details. A muslim cook was brought who instructed the Brahman cook how to wear lungi and cook like muslim way. We are also told that at this time Ramkrishna felt a great urge to take beef. However, this urge could not be satisfied openly. But one day as he sat on the bank of Ganges, a carcase of cow was floating by. He entered the body of a dog astrally and tasted the flesh of the cow. His muslim sadhana was not completed.All this is highly comic but it holds an important position in the mission. The lawyers in the mission did not forget to argue in the court that Ramkrishna was on the verge of eating beef. This was meant to prove that he was indifferent hindu and not far from being a devout muslim." The mission won the case.ऐसे गुरु को विवेकानंद ईश्वर का अवतार मानते थे यानि अवतार जो मुस्लिम हो जाए | आइये आगे पड़ते है"Though Thousands of Years the lives of the great prophets of yore came down to us, and yet, none stands so high in brilliance as the the life of Ramkrishna Paramhansa." II, ३१२"भगवन रामकृष्ण ईश्वर का अवतार थे इसमें मुझे तनिक भी संदेहे नहीं है | भगवान श्री कृष्ण का जन्मा हुआ ही था, यह हम निश्चित रूप से नहीं कहे सकते और बुद्ध चैतन्य - जैसे अवतार पुराने है, पर रामकृष्ण सबकी अपेक्षा आधुनिक और पूर्ण है |" (पत्रावली २, ५६)ये तो कोम्मुनिस्तो वाली बात हुई कृष्ण को ही नकार दिया | जैसे एक सामान बेचने वाला अपने माल को अच्हा और दुसरो के माल को घटिया कहता है वैसे ही कुछ यह स्वामी विवेकानंद करते दिख रहे है |"उनकी (रामकृष्ण की) पवित्रता प्रेम और ऐश्वर्या का कण मात्र प्रकाश ही राम, कृष्ण, बुद्ध aadi में था | -पत्रावली भाग १ ,१८७और सुनिए पर हसियेगा मत"सत्ययुग का आरंभ रामकृष्ण के अवतार की जन्मतिथि से हुआ |" -पत्रावली भाग १,१८८6. विवेकानंदा और दोहरा चरित्रअब तक तो स्वयं आप देख चुके होंगे की विवेकानंद का मस्तिष्क या तो अस्थिर था यह वह जान बुझ कर विरोधाभाषी बात करते थे कारण साफ है मौके का फायदा उठाना और आप को कोई बुरा ना कहेगा | सबकी प्रशंशा करो सत्य को हांड़ी पे चड़ा दो | स्वयं 'Teachings of Vivekanand' के संपादक पुस्तक की भूमिका में लिखते है -"Vivekanand was the last person to worry about formal consistency. He almost always spoke extempore, fired by the circumstances of the moment, addressing himself to the condition of aparticular group of hearers, reacting to the intent of a certain question. That was his nature- he was supremly indifferent if his words of today seems to contradict those of yesterday".ऐसे व्यक्ति को अवसरवादी कहते है | सत्यवादी ऐसा व्यक्ति कैसे हो सकता है क्यों की या तो कल की बात सही होगी या आज की | क्या एक संत को सत्य वादी न होना चाहिए ?7. विवेकानंद का खान पानगोमांस खाने का विरोध करने पर हिन्दुओ को कैसा बेहूदा तर्क देते है स्वामी विवेकानंद जरा देखिये"To the accusation from some Hindus that the Swami was eating forbidden food, he retorted- if the people of India want me to keep strictly to Hindu diet, please tell them to send me a cook and money enough to keep him"Vivekanand - A biography by Swami Nikhilanand Saraswati Pg 129अरे लानत है उन हिन्दुओ पर जो अब भी ऐसे व्यक्ति को आदर्श माने | ये अमेरिकियो के रंग में रंगे नहीं तो और क्या है |हिन्दुओ का प्रतिबंधित भोजन गोमांस ही होता है इस में किसी को शक नहीं होना चाहिए |आज के कमुनिस्तो इतिहासकार ब्राहमणों को गोमांस खाने वाला लिखते है कही वो विवेकानंद से ही तो प्रेरित नहीं |"Orthodox Brahmans regarded with abhorrance the habit of animal food. The swami told them the habit of beef eating by Brahamans in Vedic times".Vivekanand - A biography by Swami Nikhilanand Saraswati Pg 260दुःख की बात ये है के वही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ वाले विवेकानंद को आदर्श बताते है और कमुनिस्तो का विरोध करते है हिन्दू विरोधी बता के जबकि कमुनिस्तो का प्रेरणाश्रोत तो यही दिख रहे है | ऐसे स्वामी ने शाश्त्रों का कितना अध्यन किया होगा इसकाअनुमान तो आप स्वयं ही लगा सकते है |"He advocated animal food for the Hindus, if they were to cope at all with the rest of the world and find a place among the great nation".Vivekanand - Abiography by Swami Nikhilanand Saraswati Pg 96वहा जी वहा दुनिया का मुकाबला करना है तो मांस खाने लग जाये हमारे चक्रवर्ती राजाओने दसियों बार विश्व विजय शाकाहारी सेनाओके साथ की और इनका जन्म हुआ है हमे मांसाहार सिखाने के लिए |आज भी शक्ति के मापक के तौर पर शाकाहारी घोड़े की शक्ति को ही प्रधानता दी जाती है और " Horse Power" कहा जाता है ना की"Lion Power" .एक भक्त ने स्वामीजी से पुचा - "मांस तथा मचली खाना क्या उचित और आवश्यक है ?" स्वामी जी ने उतर दिया " खूब खाओ भाई, इससे जो पाप होगा , वहा मेरा होगा .....वैदिक तथा मनु के धर्मं में मचली और मांस खाने का विधान है |..... घास-पात खाकर पेट -रोग से पीड़ित बाबा जी के दल से देश भर गया है.... अतः अब देश के लोगो को मचली , मांस खिला कर उधाम्शील बनाना होगा |" - विवेकानंद के संग में, 267-70इतने घटिया विचार तो वही व्यक्ति रख सकता है जिसने न वेद का और ना मनुस्मृति का अध्यन किया हो|८. विवेकानंद के इस्लाम पर विचारइनका फिर वही दोहरा रवैया | दो मुहि बाते देखिये"The vast majority of perverts to Islam and Christanity are perverts by the swords or descendents of those." - Teachings of Swami Vivekanand Pg 13"The Mohammadon religion allows Mohammdons to kill all those who are not of their religion. It is clearly stated inKoran- 'Kill the infidels if they do not accept Islam. They must be put to fire and sword" -Teachings of Swami Vivekanand Pg 180"The Mohammadon came upon the people of India always killing and slaughtering. Slaughtering and killing they over ran them". Teachings of Swami Vivekanand Pg 151देखिये उनकी विरोधाभास बाते"It is the followers of Islam and Islam alone who look upon and behave towards all mankind as their own soul"-A biography by Swami Nikhilanand Saraswati Pg 254"Without the help of Islam and the theories of Vedant however fine and wonderful they may be, are entirely valueless."-A biography by Swami Nikhilanand Saraswati Pg 255The spirit of democracy and equality in Islam appealed to Narendra's (Vivekanand's mind and he wanted to create a new India with Vedantic brain and Islamic body."A biography by Swami Nikhilanand Saraswati Pg 79स्वामी विवेकानन्द इस्लाम के बड़े प्रशंसक और इसके भाईचारा के सिद्धांत से अभिभूत थे। वेदान्ती मस्तिष्क और इस्लामी शरीर को वह भारत की मुक्ति का मार्ग मानते थे। अल्मोड़ा से दिनांक 10 जून 1898 को अपने एक मित्र नैनीताल के मुहम्मद सरफ़राज़ हुसैन को भेजे पत्र मेंउन्होंने लिखा कि''अपने अनुभव से हमने यह जाना है कि व्यावहारिक दैनिक जीवन के स्तर पर यदि किसी धर्म के अनुयायियों ने समानता के सिद्धांत को प्रशंसनीय मात्र में अपनाया है तो वह केवल इस्लाम है। इस्लाम समस्त मनुष्य जाति को एक समान देखता और बर्ताव करता है। यही अद्वैत है। इसलिए हमारा यह विश्वास है कि व्यावहारिक इस्लाम की सहायता के बिना, अद्वैत का सिद्धांत चाहे वह कितना ही उत्तम और चमत्कारी हो विशाल मानव-समाज के लए बिल्कुल अर्थहीन है।''विवेकानन्द साहित्य, जिल्द 5, पेज 415स्वामी जी ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि''भारत में इस्लाम की ओर धर्म परिवर्तन तलवार (बल प्रयोग) या धोखाधड़ी या भौतिक साधन देकर नहीं हुआ था।''विवेकानन्द साहित्य, जिल्द 8, पेज 330"मुस्लमान सार्वजानिक भ्रत्भव का शोर मचाते है, kintu vastvik bhraat भाव se kitne dur है | जो मुस्लमान नहीं है वो उनकेभ्रत्संघ में शामिल नहीं हो सकते है | उनके गले कटे जाने की ही अधिक सम्भावना है| -धर्मराहस्य, प्रष्ट 43"For our own motherland a junction of two great religious systems- Hinduism and Islam - is the only hope."A biography by Swami Nikhilanand Saraswati Pg 218also on-Teachings of Swami Vivekanand Pg 255निर्णय आपके हाथ में है ।

स्वामी दयानन्द और स्वामी विवेकानन्द में क्या भेद है ? 
स्वामी दयानन्द के गुण :-
(1) वेदों और ऋषियों के आर्ष ग्रंथों को राष्ट्र के लिए सर्वोत्तम मानते थे ।
(2) ब्रह्मचारी थे । स्त्री दर्शन और भाषण से सर्वथा पृथक रहते थे । इनके ब्रह्मचर्य के तेज से ही प्रभावित होकर बहुत से लोग इनके दर्शन करने आते थे ।
(3) निर्व्यसनी थे जीवन पर्यन्त किसी अभक्ष्य पदार्थ का सेवन नहीं किया था । और लोगों के दुर्व्यसन छुड़ाते थे ।
(4) पूर्णतया शाकाहारी थे । और लोगों को शाकाहारी बनने की प्रेरणा सदा दिया करते थे । 
(5) गौरक्षा के लिए प्रबल आन्दोलन किया था जिस हेतु 'गोकरुणानिधी' नामक पुस्तक भी लिखी । कई अंग्रेज़ों को पत्र भी लिखे कि गौहत्या पर प्रतिबन्ध लगे ।
(6) स्वराज्य के प्रथम उदघोष कर्ता थे । जो मानते थे कि आर्यों को अपनी गरिमा को पुनः प्राप्त करने के लिए चक्रवर्ती राज्य के लिए प्रयत्न करना होगा ।
(7) स्वदेशीय गुरुकुल शिक्षा के पक्षधर थे और उसके लिए जीवन पर्यन्त संघर्ष करते रहे ।
(8) निर्भीक सत्यवादी थे । जो मत पंथों का तार्किक खंडन भीड़ के बीच में खड़े होकर करते थे । मुसलमानों को सामने इस्लाम का, ईसाईयों के सामने बाईबल का, पौराणिकों के सामने पुराणों का खंडन खुल्ले आम करते थे ।
(9) संस्कृत भाषा और आर्यभाषा ( हिंदी ) को पूरे भारत की राष्ट्र भाषा बनाने के लिए संकल्पित थे । और संस्कृत भाषण ही यदा कदा किया करते थे ।
(10) स्त्री और दलितों की शिक्षा के लिए संघर्ष करते थे । बहुत से स्त्रीयों और दलितों को यज्ञोपवीत ( जनेऊ ) पहनाया और शिक्षा का अधिकार दिलाया ।
(11) विधर्मियों ( मुसलमानों और ईसाईयों ) को शुद्ध करके वैदिक थर्म में सम्मिलित करने के लिए अनेकों प्रयास किए । जिसके परिणाम स्वरूप बहुत से मुसलमान और ईसाई शुद्ध होकर वैदिक धर्मी बने । 
(12) अपने सत्य भाषण के कारण 17 बार इनको विष दिया जाता रहा । और पत्थर-ईंटें इनपर फेंकी जाती रहीं ।

विवेकानन्द के गुण :- 
(1) वेदों की बात तक नहीं करते थे । बस वेदान्त और स्कूली कान्वेंट शिक्षा को सर्वोपरी मानते थे ।
(2) सिस्टर निवेदिता से अनैतिक सम्बन्ध रखते थे । और उनको साथ लेकर घूमा करते थे ।
(3) रोज़ सिगरट पीते थे और लम्बे-लम्बे कश लगाते हुए पार्क में टहलते थे ।
(4) पक्के मांसाहारी थे और रामकृष्ण मठ में आज भी माँस पकता है ।
(5) गौरक्षा के लिए कुछ नहीं किया उलटा देशवासीयों को गाँय का माँस खाकर शारीरिक उन्नति करने की का सुझाव देते थे ।
(6) स्वतन्त्रता के लिए कुछ नहीं किया था बल्कि अंग्रेजों को भारत के लिए वरदान मानते थे । और जब हमारे क्रांतिकारी रामकृष्ण मठ वालों के आज़ादी के लिए सहायता माँगने गए तो उन्होंने क्रांति में भाग लेने से स्पष्ट मना कर दिया था ।
(7) अंग्रेज़ी शिक्षा की वकालत करते थे और सदा ही वेदान्त के साथ साथ अंग्रेज़ी कान्वेंट शिक्षी को प्रचलित रखने के पक्षधर थे ।
(8) डरपोक होने के कारण सैक्युलर थे । मुसलमानों की सभा में इस्लाम की बढ़ाई करते थे और ईसाईयों की सभा में ईसाईयों की बढ़ाई करते थे । सत्य बोलने का साहस नहीं जुटा पाते थे ।
(9) भाषा स्वाभिमान से रहित थे और अधिकतर अंग्रेज़ी में ही बात किया करते थे । 
(10) स्त्रीयों और दलितों के उत्थान के लिए कोई कार्य नहीं किया । न उनकी समाजिक दशा सुधारने का प्रयास किया न ही उनकी शिक्षा के लिए कोई कार्य किया ।
(11) विधर्मियों को शुद्ध करना तो दूर रहा । जब दक्षिण भारत में अनेकों सनातन धर्मी मुसलमान और ईसाई बन रहे थे । तब ये मूँह ताकते रह गए थे । 
(12) कभी कोई कष्ट नहीं सहा था । क्योंकि जो जाती का सच्चा हितैशी होता है वही कष्ट झेलता है । जो ड्रामेबाज और जाती की आँखों में धूल झोंकता है उसे कभी कोई कष्ट नहीं होता । 

{ हमारे बहुत से मित्र शायद हमपर क्रोधित होंगे । परंतु हम मानते हैं कि सरल झूठ से अच्छा कठिन सत्य कह देना उचित ही है । सदा से हिंदु जाती को गुमराह करके उनको उनके सच्चे हितैशीयों से दूर रखने का षडयन्त्र होता रहा है । ऋषि दयानन्द के कारण जो हिंदू के रक्त में उबाल आ रहा था । उसे ठंडा करने के लिए विदेशियों ने विवेकानन्द जैसे बहरूपिये को खड़ा किया तांकि हिंदू का रुख क्रांति से हटाकर सैक्युलरिज़म नामक नपुंसकता की ओर मोड़ा जाए । और इसमें बहुत सीमा तक वे सफल भी हुए । जिसके कारण बहुत से हिंदु युवा बिना अनवेषण किए विवेकानंद जैसे निकृष्ट व्यक्ति को जाति उद्धारक मानते हैं । जिसने कि अमरीका में भाषम देने के सिवा हिंदू जाती के उत्थान के लिए कुछ नहीं किया है । ये प्रवृत्ति हिंदुओं में आ गई है कि यदि कोई भी व्यक्ति मंच पर हिंदुत्व के लिए अच्छा सा भाषण दे दे तो ये हिंदु उसके पीछे दिवाने हो जाते हैं । चाहे उसने जमीनी स्तर पर कुछ भी न किया हो । परंतु उस महापुरुष की अहवेलना की जाती है जिसने जमीनी स्तर पर कार्य करके हिंदू हित में कार्य किया हो और उसका नाम गौण सा रहता है । ऐसा नहीं है कि केवल दयानंद के आगे ही विवेकानंद जैसे निकृष्ट व्यक्ति को खड़ा किया गया हो । बल्कि सरदार पटेल, सुभाषचन्द्र बोस आदि के सामने दोगले और निकृष्ट नेहरू को खड़ा किया गया । उसी प्रकार भगत सिंह, चन्द्रशेखर आज़ाद आदि के सम्मुख गाँधी जैसे निकृष्ट व्यक्ति को खड़ा किया गया । आप स्वयं जानते हैं कि जितने गर्म दल के नेता जैसे सुभाषचन्द्र, भगत सिंह, बिस्मिल्ल आदि नेताओं ने कितने कष्ट सहे । परंतु दूसरी ओर गंदे संस्कारों की पैदाईश नर्म दलीय नेहरू, गाँधी, जिन्हा आदि को एक लाठी भी नहीं खानी पड़ी । और आज भी मोदी जैसे राष्ट्र भक्त के आगे वामपंथी केजरीवाल को खड़ा किया गया है । तो ये समय समय पर हमारे सच्चे क्रांतिकारियों को दबाने के लिए अत्यन्त नीच लोगों को हमारे नेता के रूप में दर्शाया जाता है । जो कि सुनहरे भाषणों की आड़ में जाति का नाश करते रहते हैं । यद्यपि राष्ट्र का सच्चा सुख चाहो तो इन बहरूपियों को त्यागकर सच्चे हितैशियों की ओर आओ । दयानन्द जी को पढ़ें उनके कार्यों की समीक्षा करें और अपना आदर्श बनाएँ । } 
*एक हिन्दू सन्यासी जिसने धर्म का विनाश किया और हम आज सत्य जाने बिना उन्हें अपना आदर्श मानते है*

सार्वभौमिक सत्य-- जो भी जाती अपने सिद्धान्तों और मूल्यों के प्रति सहनशील हो जाती है उसका पतन निश्चित है ।

आज हिन्दू यही सहनशीलता करता चला आ रहा है

जिन विदेशियो ने हमें लुटा , 
हमारी नारियो को अरब के चौराहों पर बेचा,
हमारे मंदिरो और गुरुकुलों को नष्ट किया, 
छोटे छोटे बच्चों को भालो की नोको पर उछाल कर मारा, 
जिनकी वजह से हज़ारी स्त्रियों ने आग में कूद कर जौहर किया 

जिनकी खुनी किताबी शिक्षाये उन्हें 1500 साल से आतंक , व्याभिचार और लूट की शिक्षा देती चली आ रही है 
जिनके आतंक से पूरी दुनिया दहशत में है 

जिनके धोखो, दोगलेपन झूठ फरेब के किस्से इतिहास में दर्ज है और इसी कारण गुरु गोविंद सिंग पंथ प्रकाश में कहते है मुसलमान अगर कुरआन की कसम भी खाए तो भी विशवास मत करना

ऐसे धर्म के बारे में हिन्दुओ के एक आदर्श सन्यासी अंतरराष्ट्रीय मंच से कहते है 

*हम विश्व के सभी धर्मों को सत्य के रूप में स्वीकार करते हैं*

*जिस तरह अलग-अलग स्त्रोतों से निकली विभिन्न नदियां अंत में समुद में जाकर मिलती हैं, उसी तरह सभी धर्म देखने में भले ही सीधे या टेढ़े-मेढ़े लगें, पर सभी भगवान तक ही जाते हैं*

में आपसे पूछना चाहता हूँ , क्या वैदिक धर्म जो गाय की रक्षा करता है और इस्लाम जो गाय की कुर्बानी करता है क्या दोनों भगवान तक जाते है ??

वैदिक धर्म जो स्त्री को देवी कहता है और इस्लाम जो उन्हें पुरषो की खेती कहता है , क्या दोनों रास्ते भगवान की और जाते है ???

वैदिक धर्म जो कहता है मनुर्भव अर्थात मननशील बनो , विचारवान बनो और इस्लाम जो कहता है मोहमद ने जो भी कहा उस पर शक मत कर , प्रश्न मत उठा, शंका मत कर और सभी गैर इस्लामिओ को मार डाल
क्या दोनों रास्ते भगवान की और जाते है ???

क्या इस्लाम को सत्य रूप में स्वीकार किया जा सकता है ??? 

*पर देखो इस मुर्ख सन्यासी की मूर्खता  , इसने कभी कुरआन नही पढ़ी , कभी बाइबिल नही पढ़ी और सभी धर्मों के सम्मान की बात धर्म सभा में कह दी ।*

आज वही मठ ईसा और मोहम्मद को महान बता कर उनकी जीवनी  छापता है 

यह मठ उस स्वामी के सभी व्याख्यान और खतो को छापता है जिनसे पता चलता है ये स्वामी मांसाहारी, गौमांस का समर्थक, पशुबलि करने वाला, और सिगरेट पीने का शौकीन था 

Dr nnarendra


*इस सन्यासी का नाम है विवेकानंद *




Hr. deepak raj mirdha
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स्वामी विवेकानंद और मांस भक्षण स्वामी विवेकानंद और मांस भक्षण Reviewed by deepakrajsimple on October 28, 2017 Rating: 5

5 comments:

  1. Bhai mere adarsh swami Satan and sarsvati hai mai to Bhai unhi ko hi mantra hu Bhai apka bhi thank you

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  2. काश! विवेकानंद जी में विवेक होता तो गोमांस का समर्थन नहीं करते!

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  3. Ram krishna Paramhans ne Kanchan aur Kamini se door rahne ke liya kaha is par bhi ek lekh likh lo.

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