प्राणायाम से दूर होते हैं ये रोग
योग के 8 अंगों में प्राणायाम का स्थान चौथे नंबर पर आता है। प्राणायाम को आयुर्वेद में मन, मस्तिष्क और शरीर की औषधि माना गया है। चरक ने वायु को मन का नियंता एवं प्रणेता माना है। आयुर्वेद अनुसार काया में उत्पन्न होने वाली वायु है उसके आयाम अर्थात निरोध करने को प्राणायाम कहते हैं। आओ जानते हैं कैसे करें प्राणायाम और कौन-सा रोग मिटेगा प्राणायाम से...
प्राणायाम के पांच फायदे जानना जरूरी
प्राणायाम की शुरुआत :
प्राणायाम करते समय 3 क्रियाएं करते हैं- 1.पूरक, 2.कुंभक और 3.रेचक। इसे ही हठयोगी अभ्यांतर वृत्ति, स्तम्भ वृत्ति और बाह्य वृत्ति कहते हैं।
(1) पूरक-
अर्थात नियंत्रित गति से श्वास अंदर लेने की क्रिया को पूरक कहते हैं। श्वास धीरे-धीरे या तेजी से दोनों ही तरीके से जब भीतर खींचते हैं तो उसमें लय और अनुपात का होना आवश्यक है।
(2) कुंभक-
अंदर की हुई श्वास को क्षमतानुसार रोककर रखने की क्रिया को कुंभक कहते हैं। श्वास को अंदर रोकने की क्रिया को आंतरिक कुंभक और श्वास को बाहर छोड़कर पुन: नहीं लेकर कुछ देर रुकने की क्रिया को बाहरी कुंभक कहते हैं। इसमें भी लय और अनुपात का होना आवश्यक है।
(3) रेचक-
अंदर ली हुई श्वास को नियंत्रित गति से छोड़ने की क्रिया को रेचक कहते हैं। श्वास धीरे-धीरे या तेजी से दोनों ही तरीके से जब छोड़ते हैं तो उसमें लय और अनुपात का होना आवश्यक है।
पूरक, कुंभक और रेचक की आवृत्ति को अच्छे से समझकर प्रतिदिन यह प्राणायाम करने से कुछ रोग दूर हो जाते हैं। इसके बाद आप भ्रस्त्रिका, कपालभाती, शीतली, शीतकारी और भ्रामरी प्राणायाम को एड कर लें।
योग सूत्र, योग दर्शन, योगोपनिषद, जबालदर्शनोपनिषद और योगकुडल्योपनिषद आदि योग से संबंधित ग्रंथों में इस बात की पुष्टि होती है कि प्राणायाम के नियमित अभ्यास से सभी तरह के रोगों से मुक्ति पाई जा सकती है।
योगकुडल्योपनिषद के अनुसार प्राणायाम से गुल्म, जलोदर, प्लीहा तथा पेट संबंध सभी रोग पूर्ण रूप से खत्म हो जाते हैं। प्राणायाम द्वारा 4 प्रकार के वात दोष और कृमि दोष को भी नष्ट किया जा सकता है। इससे मस्तिष्क की गर्मी, गले के कफ संबंधी रोग, पित्त-ज्वर, प्यास का अधिक लगना आदि रोग भी दूर होते हैं।
नाड़ी शोधन के लाभ :
नाड़ी शोधन के नियमित अभ्यास से मस्तिष्क शांत रहता है और सभी तरह की चिंताएं दूर हो जाती हैं। 3 बार नाड़ी शोधन करने से रक्त संचार ठीक तरह से चलने लगता है। इसके नियमित अभ्यास से बधिरता और लकवा जैसे रोग भी मिट जाते हैं। इससे शरीर में ऑक्सीजन का लेवल बढ़ जाता है।
भस्त्रिका के लाभ :
प्रतिदिन 5 मिनट भस्त्रिका प्राणायाम करने से रक्त शुद्ध हो जाता है। सर्दी-जुकाम और एलर्जी दूर हो जाती है। मस्तिष्क को फिर से उर्जा प्राप्त होती है।
कपालभाती प्राणायाम :
कपालभाती से गैस, कब्ज, मधुमेह, मोटापा जैसे रोग दूर रहते हैं और मुखमंडल पर तेज कायम हो जाता है।
बाह्म प्राणायाम :
5 बार बाह्य प्राणायाम करने से मन की चंचलता दूर हो जाती है। इसके अलावा उदर रोग दूर होकर जठराग्नि प्रदीप्त हो जाती है।
अनुलोम-विलोम :
10 मिनट अनुलोम-विलोम करने से सिरदर्द ठीक हो जाता है। नकारात्मक चिंतन से चित्त दूर होकर आनंद और उत्साह बढ़ जाता है।
भ्रामरी प्राणायाम :
11 बार भ्रामरी करने से जहां तनाव दूर होता है वहीं रक्तचाप और हृदयरोग में लाभ मिलता है। इससे अनिद्रा रोग में भी लाभ मिलता है।
उज्जायी प्राणायाम :
5 बार उज्जायी करने से कफ का निदान होकर गला मधुर हो जाता है। सर्दी-जुकाम में भी यह लाभदायक है। इसके नियमित अभ्यास से हकलाना ठीक हो जाता है।
सीत्कारी :
11 बार सीत्कारी करने से पायरिया दूर हो जाता है और दांत का कोई भी रोग नहीं होता।
शीतली :
इस प्राणायाम से पित्त, कफ, अपच जैसी बीमारियां बहुत जल्द समाप्त हो जाती हैं। योग शास्त्र के अनुसार लंबे समय तक इस प्राणायाम के नियमित अभ्यास से व्यक्ति पर जहर का भी असर नहीं होता। 11 बार शीतली कर भूख-प्यास पर कंट्रोल किया जा सकता है और मुंह व गले के रोग सहित पित्त संबंधी रोग भी मिट जाते हैं। इससे शरीर शीतल बना रहता है।
योग के 8 अंगों में प्राणायाम का स्थान चौथे नंबर पर आता है। प्राणायाम को आयुर्वेद में मन, मस्तिष्क और शरीर की औषधि माना गया है। चरक ने वायु को मन का नियंता एवं प्रणेता माना है। आयुर्वेद अनुसार काया में उत्पन्न होने वाली वायु है उसके आयाम अर्थात निरोध करने को प्राणायाम कहते हैं। आओ जानते हैं कैसे करें प्राणायाम और कौन-सा रोग मिटेगा प्राणायाम से...
प्राणायाम के पांच फायदे जानना जरूरी
प्राणायाम की शुरुआत :
प्राणायाम करते समय 3 क्रियाएं करते हैं- 1.पूरक, 2.कुंभक और 3.रेचक। इसे ही हठयोगी अभ्यांतर वृत्ति, स्तम्भ वृत्ति और बाह्य वृत्ति कहते हैं।
(1) पूरक-
अर्थात नियंत्रित गति से श्वास अंदर लेने की क्रिया को पूरक कहते हैं। श्वास धीरे-धीरे या तेजी से दोनों ही तरीके से जब भीतर खींचते हैं तो उसमें लय और अनुपात का होना आवश्यक है।
(2) कुंभक-
अंदर की हुई श्वास को क्षमतानुसार रोककर रखने की क्रिया को कुंभक कहते हैं। श्वास को अंदर रोकने की क्रिया को आंतरिक कुंभक और श्वास को बाहर छोड़कर पुन: नहीं लेकर कुछ देर रुकने की क्रिया को बाहरी कुंभक कहते हैं। इसमें भी लय और अनुपात का होना आवश्यक है।
(3) रेचक-
अंदर ली हुई श्वास को नियंत्रित गति से छोड़ने की क्रिया को रेचक कहते हैं। श्वास धीरे-धीरे या तेजी से दोनों ही तरीके से जब छोड़ते हैं तो उसमें लय और अनुपात का होना आवश्यक है।
पूरक, कुंभक और रेचक की आवृत्ति को अच्छे से समझकर प्रतिदिन यह प्राणायाम करने से कुछ रोग दूर हो जाते हैं। इसके बाद आप भ्रस्त्रिका, कपालभाती, शीतली, शीतकारी और भ्रामरी प्राणायाम को एड कर लें।
योग सूत्र, योग दर्शन, योगोपनिषद, जबालदर्शनोपनिषद और योगकुडल्योपनिषद आदि योग से संबंधित ग्रंथों में इस बात की पुष्टि होती है कि प्राणायाम के नियमित अभ्यास से सभी तरह के रोगों से मुक्ति पाई जा सकती है।
योगकुडल्योपनिषद के अनुसार प्राणायाम से गुल्म, जलोदर, प्लीहा तथा पेट संबंध सभी रोग पूर्ण रूप से खत्म हो जाते हैं। प्राणायाम द्वारा 4 प्रकार के वात दोष और कृमि दोष को भी नष्ट किया जा सकता है। इससे मस्तिष्क की गर्मी, गले के कफ संबंधी रोग, पित्त-ज्वर, प्यास का अधिक लगना आदि रोग भी दूर होते हैं।
नाड़ी शोधन के लाभ :
नाड़ी शोधन के नियमित अभ्यास से मस्तिष्क शांत रहता है और सभी तरह की चिंताएं दूर हो जाती हैं। 3 बार नाड़ी शोधन करने से रक्त संचार ठीक तरह से चलने लगता है। इसके नियमित अभ्यास से बधिरता और लकवा जैसे रोग भी मिट जाते हैं। इससे शरीर में ऑक्सीजन का लेवल बढ़ जाता है।
भस्त्रिका के लाभ :
प्रतिदिन 5 मिनट भस्त्रिका प्राणायाम करने से रक्त शुद्ध हो जाता है। सर्दी-जुकाम और एलर्जी दूर हो जाती है। मस्तिष्क को फिर से उर्जा प्राप्त होती है।
कपालभाती प्राणायाम :
कपालभाती से गैस, कब्ज, मधुमेह, मोटापा जैसे रोग दूर रहते हैं और मुखमंडल पर तेज कायम हो जाता है।
बाह्म प्राणायाम :
5 बार बाह्य प्राणायाम करने से मन की चंचलता दूर हो जाती है। इसके अलावा उदर रोग दूर होकर जठराग्नि प्रदीप्त हो जाती है।
अनुलोम-विलोम :
10 मिनट अनुलोम-विलोम करने से सिरदर्द ठीक हो जाता है। नकारात्मक चिंतन से चित्त दूर होकर आनंद और उत्साह बढ़ जाता है।
भ्रामरी प्राणायाम :
11 बार भ्रामरी करने से जहां तनाव दूर होता है वहीं रक्तचाप और हृदयरोग में लाभ मिलता है। इससे अनिद्रा रोग में भी लाभ मिलता है।
उज्जायी प्राणायाम :
5 बार उज्जायी करने से कफ का निदान होकर गला मधुर हो जाता है। सर्दी-जुकाम में भी यह लाभदायक है। इसके नियमित अभ्यास से हकलाना ठीक हो जाता है।
सीत्कारी :
11 बार सीत्कारी करने से पायरिया दूर हो जाता है और दांत का कोई भी रोग नहीं होता।
शीतली :
इस प्राणायाम से पित्त, कफ, अपच जैसी बीमारियां बहुत जल्द समाप्त हो जाती हैं। योग शास्त्र के अनुसार लंबे समय तक इस प्राणायाम के नियमित अभ्यास से व्यक्ति पर जहर का भी असर नहीं होता। 11 बार शीतली कर भूख-प्यास पर कंट्रोल किया जा सकता है और मुंह व गले के रोग सहित पित्त संबंधी रोग भी मिट जाते हैं। इससे शरीर शीतल बना रहता है।
deepak raj mirdha
yog teacher , Acupressure therapist and blogger
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Reviewed by deepakrajsimple
on
October 21, 2017
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