अपना सुधार संसार की सबसे बड़ी सेवा

आमतौर से लोग किसी काम को आरंभ करते हैं और उसे बिना पूरी तरह समाप्त किए ही अधूरा छोड़ देते हैं। पुस्तक पढ़ेंगे तो उसे समाप्त करके यथास्थान रखने की अपेक्षा जहाँ की तहाँ पड़ी छोड़कर चल देंगे। कपड़े उतारेंगे तो उन्हें झाड़कर तह बनाकर यथास्थान रखने की बजाए चाहे जहाँ उतार कर फेंक देंगे। पानी पिएँगे तो खाली गिलास को उसके नियत स्थान पर रखकर तब अन्य काम करने की बजाए उसे जहाँ का तहाँ पटककर और काम में लग जाएँगे। काम को पूरी तरह समाप्त किए बिना उसे अधूरा छोड़कर चल देना स्वभाव का एक बड़ा भारी दोष है। इसका प्रभाव जीवन के हर क्षेत्र पर पड़ता है और उनके सभी कार्य प्राय: अधूरे पड़े रहते हैं। व्यवस्था के साथ सफलता का अटूट संबंध है। इस बात को मन महोदय मान लें तो समझना चाहिए कि हारी बाजी जीत ली। अपनी प्रत्येक वस्तु को सुंदर, कलात्मक, सुव्यवस्थित रखने के लिए मन की सौंदर्य भावना विकसित होनी चाहिए। उसी सौंदर्य में व्यक्तित्त्व का सम्मान छिपा हुआ है।

मधुरता, नम्रता और उदारता किसी व्यक्ति की महानता का अधिकृत चिन्ह है। जिसके हृदय में दूसरों के प्रति आदर , प्रेम और सद्भाव है, वह निश्चय ही उसके साथ सज्जनता का व्यवहार करेगा। इसमें यदि थोड़ा समय लगता हो या खर्च बढ़ता हो तो भी वह उसे प्रसन्नतापूर्वक सहन करेगा। बहुत करके तो विनम्र मुस्कराहट के साथ मधुर शब्दों में वार्तालाप करने से काम चल जाता है।

शिष्टाचार का ध्यान रखना, अपने कार्य दूसरों से कराने की अपेक्षा औरों के ही छोटे-मोटे काम कर देना ,यह मामूली-सी बात है, पर इससे हमारी सज्जनता की छाप दूसरों पर पड़ती है। दूसरों की कड़ुई बात को भी सह लेना, दूसरों के अनुदार व्यवहार को भी पचा जाना और बदले में अपनी ओर से सज्जनता का ही परिचय देना, अपनी वाणी या व्यवहार में अहंकार या उच्छृंखलता की दुर्गन्ध न आने देना सत्पुरुषों का मान्य लक्षण है। अपना स्वभाव ऐसा ही बनाने के लिए यदि मन को साध लिया जाए तो मनुष्य अजातशत्रु बन सकता है। इस प्यार की मार से उसके सभी शत्रु मूर्च्छित और मृतक हो सकते हैं। मित्र तो उनके चारों ओर इसी प्रकार घिरे रह सकते हैं। जैसे खिले हुए कमल के आस-पास भौंरे मँडराते रहते हैं। यह सिद्धि जीवन की सफलता के लिए कम महत्त्वपूर्ण नहीं है, पर मिलती उसे ही जिसने मन के देवता को इसके लिए तैयार कर लिया है।

पं श्रीराम शर्मा आचार्य 
अपना सुधार संसार की सबसे बड़ी सेवा पृष्ठ 6

Reviewed by deepakrajsimple on April 01, 2015 Rating: 5

No comments:

Powered by Blogger.