* ब्रह्मा के प्रमुख पुत्र :- 1. मरीचि, 2. अत्रि, 3. अंगिरस, 4. पुलस्त्य, 5. पुलह, 6. कृतु, 7. भृगु, 8. वशिष्ठ, 9. दक्ष, 10. कर्दम, 11. नारद, 12. सनक, 13. सनन्दन, 14. सनातन, 15. सनतकुमार, 16. स्वायम्भुव मनु और शतरुपा, 17. चित्रगुप्त, 18. रुचि, 19. प्रचेता 20. अंगिरा आदि।

* ब्रह्मा की प्रमुख पुत्रियां :- 1. सावित्री, 2. गायत्री, 3. श्रद्धा, 4. मेधा और 5. सरस्वती हैं।

* 10 प्रजापति : ब्रह्मा के 59 पुत्रों में से 10 पुत्र प्रजापति बने- 1. मरीचि, 2. अत्रि, 3. अंगिरा, 4. पुलस्त्य, 5. पुलह, 6. कृतु, 7. भृगु, 8. वशिष्ठ, 9. दक्ष और 10. कर्दम।

1. मरीचि : मरीचि ने ब्रह्मा पुत्र कर्दम की पुत्री कला से विवाह किया था। 

ब्रह्मा के पहले पुत्र मरीचि का कुल

2. अत्रि : अत्रि ने ब्रह्मा पुत्र कर्दम की पुत्री अनुसूया से विवाह किया था। अनुसूया की माता का नाम देवहूति था। अत्रि को अनुसूया से एक पुत्र जन्मा जिसका नाम दत्तात्रेय था। अत्रि-दंपति की तपस्या और त्रिदेवों की प्रसन्नता के फलस्वरूप विष्णु के अंश से महायोगी दत्तात्रेय, ब्रह्मा के अंश से चन्द्रमा तथा शंकर के अंश से महामुनि दुर्वासा, महर्षि अत्रि एवं देवी अनुसूया के पुत्र रूप में आविर्भूत हुए। इनके ब्रह्मावादिनी नाम की कन्या भी थी।

अत्रि पुत्र चन्द्रमा ने बृहस्पति की पत्नी तारा से विवाह किया जिससे उसे बुध नाम का पुत्र उत्पन्न हुआ, जो बाद में क्षत्रियों के चंद्रवंश का प्रवर्तक हुआ। इस वंश के राजा खुद को चंद्रवंशी कहते थे। चूंकि चंद्र अत्रि ऋषि की संतान थे इसलिए आत्रेय भी चंद्रवंशी ही हुए। ब्राह्मणों में एक उपनाम होता है आत्रेय अर्थात अत्रि से संबंधित या अत्रि की संतान।

चंद्रवंश के प्रथम राजा का नाम भी सोम माना जाता है जिसका प्रयाग पर शासन था। अत्रि से चंद्रमा, चंद्रमा से बुध, बुध से पुरुरवा, पुरुरवा से आयु, आयु से नहुष, नहुष से यति, ययाति, संयाति, आयति, वियाति और कृति नामक छः महाबल-विक्रमशाली पुत्र हुए।

नहुष के बड़े पुत्र यति थे, जो संन्यासी हो गए इसलिए उनके दुसरे पुत्र ययाति राजा हुए। ययाति के पुत्रों से ही समस्त वंश चले। ययाति के 5 पुत्र थे। देवयानी से यदु और तर्वासु तथा शर्मिष्ठा से द्रुह्मु, अनु एवं पुरु हुए। तर्वासु से भोन (यवन), द्रुह्म से मलेच्छ (मिस्र-अरबी) तथा पुरु से सबसे प्रतापी पुरुवंश चला। अनु का वंश ज्यादा नहीं चला।

* ययाति के 5 पुत्र थे- 1. पुरु, 2. यदु, 3. तुर्वस, 4. अनु और 5. द्रुह्मु।

ययाति ने दक्षिण-पूर्व दिशा में तुर्वसु को (पंजाब से उत्तरप्रदेश तक), पश्चिम में द्रुह्मु को, दक्षिण में यदु को (आज का सिंध प्रांत) और उत्तर में अनु को माण्डलिक पद पर नियुक्त किया तथा पुरु को संपूर्ण भूमंडल के राज्य पर अभिषिक्त कर स्वयं वन को चले गए। हालांकि पुरु के राज्य में संपूर्ण कश्मीर और जम्मू सहित हिमालय और तिब्बत का क्षेत्र था। यरुशलम से काशी तक इन 5 कुल का ही शासन था।

1. पुरु का वंश : पुरु वंश में कई प्रतापी राजा हुए उनमें से एक थे भरत और सुदास। इसी वंश में शांतनु हुए जिनके पुत्र थे भीष्म। पुरु के वंश में ही अर्जुन पुत्र अभिमन्यु हुए। इसी वंश में आगे चलकर परीक्षित हुए जिनके पुत्र थे जन्मजेय।

2. यदु का वंश : यदु के कुल में भगवान कृष्ण हुए। 
यदु के चार पुत्र थे- सहस्त्रजित, क्रोष्टा, नल और रिपुं। सहस्त्रजित से शतजित का जन्म हुआ। शतजित के तीन पुत्र थे- महाहय, वेणुहय और हैहय। हैहय से धर्म, धर्म से नेत्र, नेत्र से कुन्ति, कुन्ति से सोहंजि, सोहंजि से महिष्मान और महिष्मान से भद्रसेन का जन्म हुआ।

भद्रसेन के दो पुत्र थे- दुर्मद और धनक। धनक के चार पुत्र हुए- कृतवीर्य कृताग्नि, कृतवर्मा व कृतौजा। कृतवीर्य का पुत्र अर्जुन था। अजुर्न ख्यातिप्रात एकछत्र सम्राट था। वह सातों द्वीप का एकछत्र सम्राट था। उसे कार्तवीर्य अर्जुन और सहस्त्रबाहु अर्जुन कहते थे।

सहस्त्रबाहु अर्जुन के हजारों पुत्रों में से केवल पांच ही जीवित रहे। शेष सब परशुराम जी की क्रोधाग्नि में भस्म हो गए। बचे हुए पुत्रों के नाम थे- जयध्वज, शूरसेन, वृषभ, मधु, और ऊर्जित। 

जयध्वज के पुत्र का नाम था तालजंघ। तालजंघ के सौ पुत्र हुए। वे 'तालजंघ' नामक क्षत्रिय कहलाए। महर्षि और्व की शक्ति से राजा सगर ने उनका संहार कर डाला। उन सौ पुत्रों में सबसे बड़ा था वीतिहोत्र। वीतिहोत्र का पुत्र मधु हुआ।

मधु के सौ पुत्र थे। उनमें सबसे बड़ा था वृष्णि। परीक्षित। इन्हीं मधु, वृष्णि और यदु के कारण यह वंश माधव, वार्ष्णेय और यादव के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

यदुनन्दन क्रोष्टु के पुत्र का नाम था वृजिनवान। वृजिनवान का पुत्र श्वाहि, श्वाहि का रूशेकु, रूशेकु का चित्ररथ और चित्ररथ के पुत्र का नाम था शशबिन्दु। शशविंदु चक्रवर्ती और युद्ध में अजेय था।

शशविंदु के दस हजार पत्नियां थीं। उनमें से एक-एक के लाख-लाख सन्तान हुई थीं। इस प्रकार उसके सौ करोड़- एक अरब सन्तानें उत्पन्न हुईं। उनमें पृथुश्रवा आदि छ: पुत्र प्रधान थे। पृथुश्रवा के पुत्र का नाम था धर्म। धर्म का पुत्र उशना हुआ। उशना का पुत्र हुआ रूचक।

रूचक के पांच पुत्र हुए, उनके नाम थे- पुरूजित, रूक्म, रूक्मेषु, पृथु और ज्यामघ। ज्यामघ से विदर्भ का जन्म हुआ।

सहस्त्रबाहु अर्जुन के पांच पुत्रों में से उक्त वंश जयध्वज और मथ के थे। शूरसेन, वृषभ, और ऊर्जित के भी वंश आगे चले।

शूरसेन की पीढ़ी में ही वासुदेव और कुंति का जन्म हुआ। कुंति तो पांडु की पत्नी बनी जबकि वासुदेव से कृष्ण का जन्म हुआ। कृष्ण से प्रद्युन्न का और प्रद्युन्न से अनिरुद्ध का जन्म हुआ।

प्रद्युम्न के पुत्र तथा कृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध की पत्नी के रूप में उषा की ख्याति है। अनिरुद्ध की पत्नी उषा शोणितपुर के राजा वाणासुर की कन्या थी। अनिरुद्ध और उषा की प्रेम कहानी जग प्रसिद्ध है। भारतीय साहित्य में कदाचित यह एक अनोखी प्रेम-कथा है जिसमें एक प्रेमिका स्त्री द्वारा पुरुष का हरण वर्णित है।

3. तुर्वसु का वंश : तुर्वसु के वंश में भोज (यवन) हुए। ययाति के पुत्र तुर्वसु का वह्नि, वह्नि का भर्ग, भर्ग का भानुमान, भानुमान का त्रिभानु, त्रिभानु का उदारबुद्धि करंधम और करंधम का पुत्र हुआ मरूत। मरूत संतानहीन था इसलिए उसने पुरु वंशी दुष्यंत को अपना पुत्र बनाकर रखा था। परंतु दुष्यंत राज्य की कामना से अपने ही वंश में लौट गए।

महाभारत के अनुसार ययाति पुत्र तुर्वसु के वंशज यवन थे। पहले ये क्षत्रिय थे, पर ब्राह्मणों से द्वेष रखने के कारण इनकी गिनती शूद्रों में होने लगी। महाभारत युद्ध में ये कौरवों के साथ थे। इससे पूर्व दिग्विजय के समय नकुल और सहदेव ने इन्हें पराजित किया था।

4. अनु का वंश : अनु को ऋ‍ग्वेद में कहीं-कहीं आनव भी कहा गया है। कुछ इतिहासकारों के अनुसार यह कबीला परुष्णि नदी (रावी नदी) क्षेत्र में बसा हुआ था। आगे चलकर सौवीर, कैकेय और मद्र कबीले इन्हीं आनवों से उत्पन्न हुए थे।

5. द्रुह्मु का वंश : द्रुह्मु के वंश में राजा गांधार हुए। ये आर्यावर्त के मध्य में रहते थे बाद में द्रहुओं को इक्ष्वाकु कुल के राजा मंधातरी ने मध्य एशिया की ओर खदेड़ दिया गया। पुराणों में द्रुह्यु राजा प्रचेतस के बाद द्रुह्युओं का कोई उल्लेख नहीं मिलता। प्रचेतस के बारे में लिखा है कि उनके 100 बेटे अफगानिस्तान से उत्तर जाकर बस गए और 'म्लेच्छ' कहलाए।

ययाति के पुत्र द्रुह्यु से बभ्रु का जन्म हुआ। बभ्रु का सेतु, सेतु का आरब्ध, आरब्ध का गांधार, गांधार का धर्म, धर्म का धृत, धृत का दुर्मना और दुर्मना का पुत्र प्रचेता हुआ। प्रचेता के सौ पुत्र हुए, ये उत्तर दिशा में म्लेच्छों (अरबों) के राजा हुए।

* यदु और तुर्वस को दास कहा जाता था। यदु और तुर्वस के विषय में ऐसा माना जाता था कि इंद्र उन्हें बाद में लाए थे। सरस्वती दृषद्वती एवं आपया नदी के किनारे भरत कबीले के लोग बसते थे। सबसे महत्वपूर्ण कबीला भरत का था। इसके शासक वर्ग का नाम त्रित्सु था। संभवतः सृजन और क्रीवी कबीले भी उनसे संबद्ध थे। तुर्वस और द्रुह्म से ही यवन और मलेच्छों का ‍वंश चला। इस तरह यह इतिहास सिद्ध है कि ब्रह्मा के एक पु‍त्र अत्रि के वंशजों ने ही यहुदी, यवनी और पारसी धर्म की स्थापना की थी। इन्हीं में से ईसाई और इस्लाम धर्म का जन्म हुआ। यहुदियों के जो 10 कबीले थे उनका संबंध द्रुह्मु से ही था। हालांकि यह शोध का विषय है।

संदर्भ : वेद, पुराण, महाभार
Reviewed by deepakrajsimple on December 23, 2013 Rating: 5

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