बाबासाहब द्वारा मनुस्मृति जलाये जाने के पीछे एक महान उद्देश्य था – छुआछूत की समाप्ति की घोषणा करना. उन्होंने "मनुस्मृति दहन" मीडिया कवरेज या वोट बटोरने के लिए नहीं किया था. उन्होंने आधे वर्गफुट और 6 इंच गहरी वेदी बनवा के चन्दन की लकड़ियों से उसे भरा और सात दलित साधुओं द्वारा मनुस्मृति दहन कराते हुए "अस्पृश्यता नष्ट हो" मन्त्र का उद्घोष किया. उनकी नक़ल कर आज के बहुजन , नवबौद्ध , या वामपंथी नेता अपने आप को बाबा साहब की बराबरी का समझने लगें हैं. इन नेताओं से यदि आप सिर्फ दो प्रश्न पूछ लें तो ये बगले झाँकने लगेंगे – स्मृति क्या हैं ? मनु कौन था ? इस लेख में मैं इन दोनो प्रश्नों का उत्तर देने का प्रयास करूंगा. स्मृति अर्थात "याद रखना". प्राचीन काल में लेखक अपनी याददाश्त से पुराने नियमों का संकलन कर देते थे, उसे ही स्मृति कहा जाता था. हिन्दू धर्म में ऐसी लगभग 40 स्मृतियाँ हैं, जिनमें से एक मनुस्मृति भी है. स्मृतियों का सिर्फ ऐतिहासिक महत्व है. मनुस्मृति के पूर्व पराशर, अत्रि, हरिस, उशनस, अंगिरस, यम, उमव्रत, कात्यान, व्यास, दक्ष, शरतातय, गार्गेय वगैरह की स्मृतियाँ भी प्राचीन भारत की सामाजिक और धार्मिक अवस्थाओं के बारे में बतलाती हैं. मनुस्मृति के अतिरिक्त विष्णु, याज्ञवल्क्य नारद, बृहस्पति, पराशर आदि की स्मृतियाँ प्रसिद्ध हैं. मनुस्मृति से, जिसकी रचना संभवतः दूसरी शताब्दी में की गयी है, उस काल की धार्मिक तथा सामाजिक अवस्थाओं का पता चलता है. नारद तथा बृहस्पति स्मृतियों से , जिनकी रचना करीब छठी सदी ई. के आस-पास हुई थी, राजा और प्रजा के बीच होने वाले उचित संबंधों और विधियों के विषय में जाना जा सकता है. इन सभी स्मृतियों में समाज की धर्ममर्यादा, वर्णधर्म, आश्रम-धर्म, राज-धर्म, साधारण धर्म, दैनिक कृत्य, स्त्री-पुरूष का कर्तव्य आदि का निरूपण किया गया है. मनुस्मृति ही क्यों जलायी जाती है, क्योकि इसमें शूद्रों और स्त्रियों के बारे में असम्मानजनक और अन्यायपूर्ण बाते लिखीं हैं. क्या मनुस्मृति का कोई महत्त्व है? यह असत्य प्रचार किया जाता है कि आज भी मनुस्मृति से देश की कानून व्यवस्था चलती है. मनुस्मृति जलाने वालों के अनुसार आज भी पुलिस थानों, कोर्ट कचेहरीयों में मनुस्मृति चलती है. सभी ब्राह्मण दिन रात मनुस्मृति पढ़ते हैं और उसी के अनुसार चलते हैं. आज यदि कोई दलित छात्र परीक्षा में फेल हो जाए या रोहित वेमुला आत्महत्या कर ले तो उसके लिए मनुस्मृति ही जिम्मेवार है. सभी क्षत्रिय , वैश्य , जैन , सिख, कायस्थ आदि मनुस्मृति ही मानते हैं. इस प्रकार झूठा प्रचार कर मनुस्मृति का हउआ खड़ा किया जाता है. जबकि वास्तविकता यह है कि मनुस्मृति किसी स्कूल कालेज में नहीं पढाई जाती. यहाँ तक की संस्कृत विश्वद्यालयों महाविद्यालयों गुरुकुलों में भी नहीं. शास्त्री और आचार्य पाठ्यक्रम में भी मनुस्मृति नहीं है. क्योकि श्रुति प्रमाणिक है , स्मृति नहीं. श्रुति अंतर्गत वेद पुराण उपनिषद दर्शन आदि आते हैं. आप्स्तंभ सूत्र के अनुसार श्रुति ईश्वरीय है, स्मृति मानुषीय है. 99 प्रतिशत ब्राह्मण भी मनुस्मृति न कभी देखें हैं और न कभी पढ़ें हैं. मनुस्मृति जलाने वालों से यह भी पूछ लो – मनुस्मृति तो जला दी आपने, अच्छा किया. बाकी 40 स्मृतियों को क्यों नहीं जलाते, क्या उनमें शूद्रों के लिए अच्छी बाते हैं? इस पर वे चुप लगा जायेंगे क्योकि 40 अन्य स्मृतियाँ तो छोड़िये, इन्होंने कभी मनुस्मृति भी नहीं पढ़ी.....



deepak raj mirdha
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