अपने समय को पहले जाने

अपने समय को पहले जाने 

१ सदा ही सर्व प्रथम अपने समय को जानना चाहिये 
२ सर्वप्रथम अपने समय की व्यवस्था .
३ वर्तमान में भारत में एक राज्य व्यवस्था है .
४ यह विश्व की सब राज्य व्यवस्थाओं से अलग है 
५ यह भारत की समस्त परम्पराओं से अलग है . यह कुछ कुछ सोविएत संघ की व्यवस्था जो थी ,उस से प्रेरित है .
६ इसमें राज्य एक मात्र सर्वोपरि है ,
७  यह राज्य जिन कानूनों से शासित संचालित है वे अंग्रेजों ने बनाये थे .
८ राज्यकर्ताओं का दावा है किउन्होंने अंग्रेजो से युद्ध कर उन्हें बाहर वापस भेजा .
९ उनका ही यह भी दावा है कि यह वस्तुतः सत्ता का हस्तान्तारण ब्रिटिश संसद के आदेश से  हुआ .
१० शासक ब्रिटिश राजनय में ही दीक्षित थे .
११ उन्होंने उसके २ जबरदस्त प्रयोग प्रारंभ में किये : 
क  १९५० में संविधान अपनाकर भारत को . संप्रभु गणराज्य घोषित कर दिया तदनुसार पूर्व की सभी संधियाँ आदि 'REPELLED"हो गयी जिनका हिंदी में अर्थ है , वे सब अस्वीकृत ,अपवारित , निवारित  हो गयीं . यह उनसे सीखे राजनय का अति सुन्दर उपयोग था 
ख सरदार पटेल ने देश के राजाओं में से देशभक्तों की इच्छानुसार सब को गणराज्य में मिला लिया ( ५०० से अधिक ) और जो थोड़े से अलग रहना चाह  रहे .थे ,उन पर एक और से जनता का और दूसरी और से सेना का दबाव बना कर उन्हें गणराज्य में मिला लिया .
ये  दो काम बहुत अच्छे किये .

१२  इसके बाद एक काम अति भयंकर किया : जो अंग्रेजी राजके नियम और कानून आधे भारत में १५ अगस्त १९४७ तक थे ,उन्हें किसी से पूछे बिना समस्त  देश में लागू  कर दिया जो भयंकर छल था क्योंकि ३०० से अधिक हिदू राज्य सनातन धर्म में प्रतिपादित राजधर्म के सिद्धांत पर चल रहे थे ,सब नष्ट कर दिया 

१४ हिन्दुओं को यह धोखा दिया (गाँधी जी की महिमा गा गाकर )कि तुम्हारा रामराज्य लायेंगे  और वस्तुतः अंग्रेजी में दक्ष (युरंड)प्रशासकों का एकाधिकारी राज्य ले आये जिसकी बारीकियों का ज्ञान केवल उन्हें था जबकि देशी राज्यों की प्रजा परम्परगत कानूनों और परम्पराओं से हजारों साल से परिचित थी और नए कानून उसके लिए अबूझ थे . 
१५ देशी न्याय संस्थाएं झटके से REDUNDANT बना दीं : जाति  पंचायतें , खाप आदि सब अब  विधिक स्तर पर अवैध हो गयीं और यह देशी लोगों की समझ में ५० वर्ष बाद स्पष्ट हुआ अर्थात जैसा छल अंग्रेजों ने किया था भारत से  ,वही छल युरंदियों ने किया शेष भारत से .

(क्रमशः जारी २ पर )

अपने समय को पहले जाने -----२
----------------------------------------
१६ अंग्रेजों ने कई भयंकर कानून बनाये थे जिनका सबका अंग्रेजी पढ़े लिखे ये लोग  जो नये शासक अब  बने , तब  भीषण  विरोध कर देशी लोगों को उनकी भयंकरता बताकर उनसे आत्मीयता प्राप्त करते थे .अब उन सब भीषण कानूनों का अपने लिए उपयोग ये स्वयं करने लगे .
१७ अंग्रेज बाहरी थे और लोग सोचते थे कि ये भीषण कानून बस चंद दिनों के लिए हैं ,नए शासक भी पहले उन्हें यही भरोसा देते थे अतः उन कानूनों को अजीब अजनबी पाकर भी वक्ती चीज समझकर आशान्वित थे . वे अपनी सामानांतर व्यवस्था चलाते थे : खान पान ,विवाह , संतान पालन , जाति  स्तर के विवादों का निपटारा आदि  स्वयं करते थे . हिन्दू कोड बिल , हिन्दुओं की सम्पति सम्बन्धी नियम आदि बने तो पहले पर समाज में संपत्ति सम्बन्धी मान्यताएं चल रही थीं और अंग्रेज केवल अपना राजस्व  निश्चित  करने में विशेष कडाई करते थे . अब नए शासक इन सब विषयों में अपने पंथ की चलाने लगे , समाज  हतप्रभ  था क्योंकि कल तक तो ये  उनके बच्चे बालक बनकर विनय भाव से जाते थे तो ये भीतर से इतने क्रूर हैं और एकदम पराये हो गए हैं यह अब तक लोग जान ही नहीं पाए . क्योंकि पैर छूने आदि शिष्टाचारों की नौटंकी तो ये खूब  करते थे ,करते हैं 
१८ वन कानून जिनसे वनवासियों के अधिकार छीन लिए गए आधे भारत  में लागू थे अब पूरे भारत में लागू हो गए ,रियासतों मे बहुत अधिकार प्राप्त थे और कई रियासतें तो इन्ही वनवासियों की ही थीं .
१९ राज्य के सब संसाधन राज्य के स्वामित्व में हैं ,यह व्यवस्था आधे भारत में अंग्रेजों ने की थी ,देसी राज्यों में ऐसा नहीं था , अब समस्त भारत में यह स्थापित हो गया . 
२० देसी हिन्दू राज्यों में संपत्ति का स्वामित्व धर्मशास्त्रों और परम्पराओं के अनुसार था ,अब वह राज्य के स्वामित्व में हो गया . संविधान में सम्पति का अधिकार मौलिक अधिकार रखा गया ,कांग्रेस उसे खा गयी ,भाजपा उसके सुख भोग रही है 
२१ परंपरा से कुल .परिवार , गोत्र , गाँव  आदि संपत्ति और संस्कार संस्कृति की सर्वमान्य इकाइयाँ थीं , खाप पंचायतें आदि सर्वमान्य थीं , अब आयकर के लिए परिवार को विधिक मान्यता दी गयी पर जीवन के शेष सब व्यापार यानी क्रियाओं के लिए केवल व्यक्ति मूल इकाई मान्य  है .
२२ अधिकतर लोग इसका अर्थ नहीं समझते और पुरानी  बातें करते रहते हैं जो वस्तुतः विदूषक दीखते हैं ,यह उन्हें ज्ञात नहीं.;  यहाँ थोड़े से दृष्टान्त :
क स्वामी दयानंद जी के प्रभाव से पश्चिमी उत्तर प्रदेश ,हरयाणा ,पंजाब आदि के किसानों ने आर्य समाज अपनाया तो पूरी खाप की खाप आर्य समाजी हो गयी , आज यह असंभव था क्योंकि खाप के पास कोई अधिकार नहीं , बेटा बेटी परिवार के अधीन नहीं है , शिक्षा के बहाने सरकार,बाज़ार और संचार साधनों के अधीन है. बेटा बाप से स्वतंत्र पंथ अपना सकता है पूजा व्यक्तिगत विषय घोषित है और शादी व्याह भी ,यह ज़माने की हवा नहीं है जैसा मूढ़ता वश कहा जाता है ,यह शासकों द्वारा कानून बनाकर लाया गया ज़माना है  आज एक एक बच्चे को अलग अलग आर्य समाजी बनाना पड़ता . इलाका का इलाका नहीं बन जाता . 
आर्य समाज तो उदहारण है , सभी उन  पंथों के लिए यह लागू  होता है जो विगत १०० -२०० वर्षों मे बने उभरे हैं .
ख पहले यह संभव था कि लोग सामूहिक रूप में मान लें कि जाति या वर्ण जन्म से नहीं ,कर्म से होता है , आज इसका कोई अर्थ नहीं सिवाय जीभ चलाने के . क्योंकि अनुसूचित जाति ,अनुसूचित जन जाति ,अन्य पिछड़ा वर्ग की जाति  सहित सभी जातियां जन्म के ही आधार पर चिन्हित होंगी,यह विधिक व्यवस्था है आप किसी अन्य जाति  का प्रमाण पत्र दोगे तो जेल जाओगे .

( क्रमशः जारी)
साभार
रामेश्वर मिश्रा पंकज

अपने समय को पहले जाने अपने समय को पहले जाने Reviewed by deepakrajsimple on February 25, 2018 Rating: 5

No comments:

Powered by Blogger.