धातु दोष
गर्मी से वस्तुएं पिघलकर बहती हैं। धातु रोग में भी यही होता है। सुक्र गर्म होकर पिघल जाता है । अगर ये ठंडा रहे तो जमा हुआ रहेगा और ये रोग नही होगा। सुक्रकोष का तापमान 35 डिग्री होता है। सरीर का तापमान 37 डिग्री होता है। इस तरह सुक्रकोष सरीर की अपेक्षा ठंडा होता है। या एक तरह से फ्रिज का काम करता है। जैसे फ्रिज में ठंडा का बोतल रखा हो । पर जैसे ही ये बोतल बाहर निकलता है तो गर्म हो जाता है। इसका ढक्कन हल्का सा खोलते ही झाग के साथ सारा तरल बाहर आ जाता है। इसी तरह सुक्र भी बाहर आ जाता है। तो सरीर ठंडा रहे तो धातु दोष नही होगा।
ठंड को कंफ कहते हैं । अगर कंफ को मजबूत करना है तो पित और वात को कंट्रोल में रखना होगा। और ये वात पित का स्थान रोमकूप है। हमारे सरीर के रोये से ये कण्ट्रोल हो सकते हैं।
सुबह सूर्य उगने के पहले उठकर योग करना और सरीर में तेल लगाना जरूरी है। सुबह उठने से वात का समन होगा और तेल लगाने से पित्त का समन होगा।
गरम भोज्य पदार्थ का उपयोग नही करे । ये रक्त और पेट को गर्म करेंगी और सुक्रकोष(फ्रिज) का तापमान 35 डिग्री से ऊपर बढ़ा देंगी । सतावर और अश्वगंधा शुक्र को गाढ़ा बनाएंगी । दोनों को मिलाकर एक चमच्च और घी एक चमच्च को दूध में मिलाकर पीजिये।
Hr. deepak raj mirdha
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धातु दोष
Reviewed by deepakrajsimple
on
February 18, 2018
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