#Revealing_Irrefutable #अकाट्य_सचाई
भारत को जीतने के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी के अनेक अधिकारियों ने भारत का 'इतिहास' लिखा। उन्होंने जगह-जगह लिखा कि भारत पर अंग्रेजों से पहले मुसलमानों का राज था। उन्होंने अपनी इस शरारत के जरिये मुसलमानों के दिमाग में एक गलत धारणा बैठा दी, जिसका नतीजा अंतत: यह निकला कि पहले से कट्टरपंथी और असहिष्णु अत्याचारी मुसलमान घमंड, हठधर्मिता और अदम्य महत्वाकांक्षा का मनमाफिक शिकार बन गए।
★ इतिहासकार सेतु माधवराव पागड़ी ने नवंबर,1974 में मराठी पत्रिका 'किर्लोस्कर' के दीपावली विशेषांक में इस ऐतिहासिक सच पर प्रकाश डाला था। उन्होंने लिखा: 'जब हम अपने स्कूली दिनों में भारतीय इतिहास पढ़ते थे, तो हमें एक बात को लेकर हमेशा उलझन होती थी। किताबों में इतिहास के तीन कालखंड बताए जाते थे-हिन्दू युग, मुस्लिम युग और ब्रिटिश युग। मेरी समझ में यह नहीं आता था कि हिन्दू युग और मुस्लिम युग तो ठीक, लेकिन ब्रिटिश युग को 'क्रिश्चियन युग' क्यों नहीं कहा गया..??
यदि हम तटस्थ इतिहास में जाएं तो पाएंगे कि मध्ययुग में चीजें अलग थीं। तब, जिन्होंने हुकूमत की, वे स्पष्टत: विदेशी थे। उन्होंने इस्लाम अपनाने वाले हिन्दुओं और भारत में बस गए व्यापारियों को 'हिन्दुस्तानी' कहा। शासकों ने खुद की पहचान तुर्क और पठान के रूप में ही स्थापित की और वे विदेशी धरती यानी हिन्दुस्तान पर हुकूमत करने में घमंड भी महसूस करते थे। यह सच उन हुक्मरानों के ज्यादा निकट है, जिन्होंने दिल्ली से हुकूमत की। हालांकि वे मजहब से मुसलमान जरूर थे, लेकिन नस्ल से तुर्क, पठान या अफगान थे। इसी वजह से आम बोलचाल में मुसलमानों का एक नाम-'तुर्क' भी प्रचलित हो गया । कन्नड़, तेलुगु और उर्दू भाषाओं में मुसलमानों को 'तुर्क' ही कहा गया है। मध्यकाल में हिन्दी भाषा में मुसलमानों को 'तुर्क' ही कहा जाता था। उदाहरण के लिए-'तुम तो निरे तुर्क भये'। इस तरह अस्वच्छ या आवारागर्दों को तुर्क का संबोधन देते हुए हिकारत से देखा जाता था।
★★ भारत के किसी भी भाग पर अरबों ने राज नहीं किया हालांकि सैकड़ों परिवार भारत आकर बस जरूर गए, हम उन्हें उनके नामों से आसानी से पहचान सकते हैं , उदाहरण के लिए, 'सय्यद' को लीजिए, पैगंबर मोहम्मद की बेटी फातिमा की शादी अली से हुई थी फातिमा ने दो बेटे जन्मे-हसन और हुसेन, उन्हीं के वंशज सय्यद कहलाते हैं।
प्रथम पेशवा बालाजी विश्वनाथ (1707-1720) के समय में हुए सय्यद बंधुओं, अलीगढ़ आंदोलन के प्रणेता, कांग्रेस से मुसलमानों की दूरी बनाने वाले और मुसलमानों के लिए अलग दर्जे की मांग करने वाले सर सय्यद अहमद खान, अब्दुल कलाम आजाद तथा कई सूफी संत सय्यद ही थे। हुसेन के उत्तराधिकारियों में दस गुरु हुए। उन्हें 'इमाम' कहा जाता था। उनके नाम थे-मूसा, रिज़ा, नकी, जफर आदि-आदि। आगे चलकर उनके नामों के आधार पर उपनाम बने-मुसाबी, रिज़वी, नकवी, जाफरी आदि-आदि। सय्यदों को मुसलमानों के बीच बहुत ज्यादा इज्जत हासिल थी, ठीक उसी तरह जैसे हिन्दू राजा ब्राह्मणों का सम्मान करते थे। तुर्क और पठान शासक भी सय्यदों की बेहद इज्जत करते थे। पैगंबर मुहम्मद का जन्म कुरेश कबीले में हुआ था। उसी के आधार पर कुरेशी उपनाम प्रचलित हुआ। वे व्यापारी हुआ करते थे, इस लिए हाशमी नाम चला। जब पैगंबर मोहम्मद की स्थिति मजबूत नहीं थी, तो उन्हें मक्का से खदेड़ दिया गया था और उन्हें मदीना में शरण लेनी पड़ी थी। उनके प्रति जिनका व्यवहार सद्भावपूर्ण था, वे अंसारी (यानी अरबों के मित्र) कहलाए। अली के कुछ वंशज अलवी कहलाए। खलीफा उमर के वंशज फारुखी और खलीफा अबू बकर के वंशज सिद्दिकी कहलाए। ये कुछ ऐसे परिवार थे, जो भारत में आकर बस गए। इस लिए अरबों के साथ ऐसा कुछ नहीं जुड़ा है, जिसपर वे शासक होने का घमंड कर सकें, अकाट्य एवं सच्चे भारतीय इतिहास में दो अपवादों को छोड़ दें तो भारत में कोई भी अरब शासक, सूबेदार या बड़ा सिपहसालार नहीं हुआ है।
#जिल्लेइल़ाही_उवाच्
अतैव विदेशी शासक तुर्क (मौजूदा टर्की से नहीं) थे, इस लिए उनके समय को 'तुर्की युग' कहना ज्यादा उचित होगा। ईरान, रूस और चीन के इतिहासों में उनके इतिहासकारों ने 'तुर्की युग' का इस्तेमाल किया है उन्होंने मुस्लिम युग कहीं नहीं कहा लेकिन भारत में तो अंगरेजों ने 'तुर्की युग' को इरादतन और शरारतन 'मुस्लिम युग' कह कर देश का नक्शा ही बदल डाला और बची खुची कसर जेएनयू छाप वामपंथी बुद्घिपिशाच इतिहासकारों और एएमयू के बुद्धिपिशाचों ने मनमाफिक, मनघडंत इतिहास लिख कर पूरी कर दी, काँग्रेस + वामपंथ + अंगरेजों की इसी शरारत के चलते भारतीय मुसलमान मुहम्मद गौरी, महमूद गजनवी और औरंगजेब के जुल्मोसितम पर खुश हुए और शिवाजी के हाथों अफजल खां की मौत पर शोकमग्न हुए। उन्हें तुर्की युग में न तो सम्मान मिला और न कोई अहमियत इसलिए कोई वजह नहीं कि मुसलमान लोग उस युग को लेकर व्यर्थ में इतराएं , यह सच हर समय ध्यान में रखा जाना चाहिए इससे मुसलमानों में खुद को अलग समझने की भावना कम होगी।
खेद है कि भारतीय राजनेताओं की दिलचस्पी तो केवल मुसलमानों को नित नई रियायतों की रेवडिय़ां बांटने में है सो यह बेहद जरूरी है कि भारतीय मुसलमानों को सही ढंग से भारत की शिक्षा दी जाए और सच्चे ऐतिहासिक तथ्यों से उन्हें अवगत कराया जाए, जरूरत इस बात की भी है कि वे महाराणा प्रताप, शिवाजी और विजयनगर साम्राज्य के राजाओं पर गर्व करना सीखें और अब संदेश भारत में पलते उन मुसलोईड्स के लिये जो जबरदस्ती "हमने राज किया, हमने राज किया" कह कर फोकट फौजदारी में इतराया करते हैं कि "ऐ बे'ईमानवालों, यहाँ जबरदस्ती इतराया मत ना करो , तुम तब भी नंगे पांव जूते सिर पर ले कर घूमते थे और आगे भी घूमते रहोगे ..तुम्हारे तो पल्ले अपना कुछ भी नहीं है।"
हिंदी हिंदू हिंदुस्तान, यही है हम सब की सही पहचान
वन्दे मातरम्
साभार डॉ सुधीर व्यास
Hr. deepak raj mirdha
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भारतीय इतिहास में मुस्लिमों का स्थान
Reviewed by deepakrajsimple
on
November 09, 2017
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