गिरिको हिण्डुको
गिरिकः हिण्डुकः
महाभारत शान्तिपर्व में दक्ष द्वारा शिवस्तुति किये जाने में शिव को प्रदान किये गये कुछ नामों में
#हिण्डुक है। हिण्डुक का अर्थ है जो हिण्डन क्रिया करता है।
आप जानते ही हैं कि हिण्डी दुर्गाजी का एक नाम है।
कन्नड़ में #हिण्दु का अर्थ 'गण'
है।
णोनः पाणिनिसूत्रेण णत्व नत्व विधीयते। यथा णम् नम् ।
हिण्डु-हिण्दु-हिन्दु ।
चीनी भाषा में यिन् दु / यिन् तु
पुराकाल से है।
Yindu जिला Henan प्रान्त में है।
हिन्दू
भिन्दुः = हिन्दुः
कैसे?
नाट्यशास्त्र में उच्चारण की इस प्रवृत्ति का उल्लेख हुआ है।
ख, घ, थ, ध और भ महाप्राण ध्वनियों को 'ह' आदेश होता है।
प्राकृत भाषा में ख, घ, थ, ध और भ को हकारादेश होने पर मुख का मुह, मेघ का मेह, कथा का कहा, वधू का बहु, प्रभूत का पहुअ हो जाता है ।
इसी प्रकार भिन्दुः {भेत्ता, भेदन करने वाला} हिन्दुः कहा जाता है।
वेदमन्त्र में इन्द्र को भिन्दुः कहा गया है।
खधथधभा उण हत्तं उर्वेति अत्थं अ मुंचंता ॥
उप्परहुत्तरआरो हेटाहुत्तो अ पाअए णत्थि ।
मोत्तूण भद्रचोद्रह पद्रह्वदचन्द्रजाई स ॥ खधथधभाण हआरो मुहमेहकहावहूपह्वएसु । कगतदयवाण णिच्चं वीयम्मि ठिओ सरो होई ॥
#अयथातथादिकेषु_तु_भकारवर्णो व्रजीत
सस्कृत के शिक्षकाें से प्रधान मन्त्री जी काे ज्ञापनपत्र देने की सूचना मिली है । वस्तुतः संस्कृतशिक्षा में जान भरने के लिए भारतवर्षीय धर्मसंस्कृतिसंस्कृतप्रेमी जन हमारी ''संस्कृतशिक्षा के विकास विस्तार तथा सुदृढीकरण का मार्ग'' इस शीर्षक की अथवा ''संस्कृतशिक्षाया विकासाय विस्ताराय सुदृढीकरणाय चाsनुसरणीयाे मार्गः'' इस शीर्षक की प्रस्तुति(पाेष्ट्) देखकर विचार करें अाैर भारतवर्षीय शिक्षा के विषय में याेजना अाैर पाठ्यक्रम बनाते समय अत्यन्त विचारणीय बाताें में ध्यान दें । भारतवर्ष में संस्कृतमूलक शिक्षा ही शिक्षा की प्रधान धारा हाेनी चाहिए इस बात में मुख्यतया ध्यान दें। अन्यथा संस्कृत विश्वविद्यालयाें के स्तरवृद्धि से क्या हाेगा? इतने संस्कृत विश्वविद्यालय हैं, उसमें अच्छा ही वेतन पाने वाले अध्यापक हैं, संस्कृतज्ञानाभ्यास का स्तर घटता ही जा रहा दिखार्इ दे रहा है, समाज में संकृतप्रेम घटता ही जा रहा दिखार्इ दे रहा है, लाेग पाश्चात्त्य खान पान परिधान अाचरण व्यवहरण की अाेर ही अागे बढ रहे दिखार्इ दे रहे हैं, भारतवर्षीय धर्म संस्कृति परिधान अाचरण व्यवहरण का अादर्श पीछे ही पडता जा रहा दिखार्इ देरहा है, अात्मगाैरवानुभव घटता ही जा रहा दिखार्इ दे रहा है, अच्छा वेतन पाने वाले संस्कृतज्ञाें के घर में ही संस्कृत का अाैर भारतवर्षीय शास्त्रधर्मसंस्कृति का सफाया हाे रहा दिखार्इ दे रहा है , संस्कृतशिक्षाविचारक महानुभाव हमारी उक्त प्रस्तुतियां देखें अाैर गम्भीरता से विचार करें । प्रभानमन्त्री माेदी जी से भारतवर्षीय शास्त्रधर्मसंस्कृति गाैरवानुभूति के पक्ष में काम हाेने की सम्भावना का भरपूर उपयाेग करें ।
समुद्रा स्तत्र चत्वारो दर्विणा आहृताः पुरा ।
(वामनपुराणम् ४१)
लोमहर्षण बता रहे हैं कि प्राचीनकाल में ऋषि #दर्वि वहाँ(सरस्वती-अरुणा संगम के निकट) चार समुद्रों को ले आये थे।
दर्वि शब्द पर विचार करने से अनुमान होता है कि दारु(लकड़ी) से निर्मित दार्वि, दार्वी, दर्वि शब्द निष्पन्न होते हैं।
दर्वी का सामान्यतः करछुल अर्थ लिया जाता है।
दर्वि का समुद्र से सम्बन्ध कहे जाने से समुद्रतटवर्ती क्षेत्र दर्विड या द्रविड होगा। द्राविडी भाषा में रेफ का विपर्यय प्रधान है।
भारत भूमि का दक्षिणी भाग भी दर्वी समान ही है। करछुल से आलोडन किया जाता है, भारत का दक्षिणी भूभाग अथाह समुद्र रूपी कड़ाही में करछुल की भाँति पड़ा हुआ दीखता है।
हिन्दी का डब्बी शब्द दर्वी का ही देशज रूप है।
कुछ पश्चिमी ऐतिहासिकों ने
यह अवधारणा प्रस्तुत की कि
Qin वंश का शासन 216 ई.पू.
में हुआ , तभी से इस देश को
चिन या चीन नाम से पुकारा
जाने लगा .
किन्तु कौटिलीय अर्थशास्त्र में
चीन शब्द का प्रयोग है ।
तया कौशेयं चीन-पट्टाश्च चीन-भूमिजा व्याख्याताः ।। ०२.११.११४ ।।
कौटिल्य इस Qin से लगभग
150 वर्ष पूर्व हुआ ।
अब यह सर्वविदित है कि इस देश को चीन नाम से भारतवासियों ने ही पुकारा था
इसी कारण पर्शियन भी इसे चीन
कहते थे ।
पर्शियनों से योरुप में यह नाम पहुँचा .
इस देश का नामकरण हमने (भारतीयों ने ) किया ।
चीन
के निवासी अपनी भाषा में अपने
देश को 'चंगक्यूह' कहते हैं ।
और सबसे
प्रचलित और आम नाम है झोंग्गुओ
(中國), जिसका अर्थ है "केंद्रीय
राष्ट्र", या "मध्य साम्राज्य"।
ये चीनी हमारे देश भारत को
यिन-तू कहते थे ।
यिन- तू हिन् दू
आभार अत्रि विक्रमार्क अन्तर्वेदी
'मुझे तुम्हारे इतिहास की अवधारणा पर हंसी आती है । तुम जानते तो हो लेकिन मानना नहीं चाहते । ये बड़ा अजीब सा भी है ।'
'मेरे ख्याल से तुम्हें अचरज होना भी चाहिए । ऐसा इसलिए है क्योंकि तुमने भारत में कला के विषयों में पढाई की । राजनीति शास्त्र, समाज विज्ञान, भूगोल और ना जाने क्या क्या । इनकी पढाई में तुम्हें रट्टा मारना ही सिखाया जाता है । तर्क के लिए कोई स्थान नहीं था । प्रश्न उठते ही नहीं । जो उठे भी वो दबा दिए जाते थे ।
इसके उलट मेरा विषय विज्ञानं और गणित रहा है । प्रमेयों को गलत या सही सिद्ध कर पाने की क्षमता ही हमारे लिए उन्नति का मार्ग है ।'
'प्रश्न हमारे पास नहीं होते ऐसा नहीं है, दरअसल हमारे लिए प्रयाप्त साक्ष्य नहीं होते । या कभी कभी उन्हें जुटाना श्रमसाध्य या फिर लम्बा समय लेने वाला काम होता है ।'
'तो क्या प्रश्नों पर चर्चा होती है ? जैसे मान लो मैं गणित के एक प्रश्न को हल करते समय एक प्रमेय के आधार पर हल तो करूँ, पांच या छह चरण तक जाऊं लेकिन उत्तर लिखना छोड़ दूँ तो भी लगभग पूरे नंबर तो परीक्षक देगा ! लेकिन अगर तुम उत्तर को अधूरा छोड़ो तो क्या होगा ?'
'मानता हूँ मुझे कम मिलेंगे । इस से प्रश्न करने और उत्तर अपने हिसाब से निकलने को प्रोत्साहन तो नहीं ही मिलता । मगर इनसे तुम सिद्ध क्या करना चाहते हो ।'
'शिक्षा व्यवस्था कि एक बड़ी सी खामी पर ध्यान दिलाया है । असल में इस से ही सम्बंधित एक दूसरी बात याद आ गई थी इसलिए !'
'अच्छा शिक्षा से जुड़ा इतिहास का मुद्दा ? सीधा क्यों नहीं कहते कि स्त्रियों और शूद्रों की शिक्षा के ना होने पर बात करनी है ।'
'वो चर्चा तो तुम अपने राजनैतिक हित के लिए करते ही हो । मैं तो तुम्हारा ध्यान यात्रा की तरफ ले जाना चाहता था ।'
'सफर से ! यात्रा से शिक्षा का सम्बन्ध ?'
'हां, विदेशों में तो अभी भी छात्रों के लिए कोई Gap Year होता है, कामकाजी लोगों के लिए Sabbatical लेने की सुविधा होती है । तुम भारत में ऐसी व्यवस्था के बारे में सुनकर शायद इसलिए चकराए क्योंकि भारत से इसे सदियों पहले ही गायब कर दिया गया था । चे की मोटरसाइकिल डायरीज ऐसे ही गैप ईयर का सफ़रनामा ही तो है न ? पढ़ी होगी तुमने !'
'भारत में यात्रियों का आना पढ़ा तो है ।'
'सिर्फ यात्री या छात्र भी ? जरा ये भी तो याद करो कि वो आते क्यों और कैसे थे ? चलो हम एक तथाकथित मिथक के राम को देखते हैं । कहाँ अयोध्या आज के उत्तर प्रदेश में, कहाँ बक्सर यानि बिहार में विश्वामित्र का आश्रम, कहाँ वशिष्ठ आश्रम गौहाटी के पास असम में । लभग ऐसा ही किस्सा एक विंध्य पर्वत का भी तो है । कहते हैं जब वो ऊँचा होने लगा और हिमालय से ऊँचा होने वाला था तो गुरु अगस्त उसके पास पहुंचे । वो दक्षिण भारत जा रहे थे और उन्होंने विंध्य से निवेदन किया कि उनके वापिस लौटने तक विंध्यांचल अपनी ऊंचाई बढ़ाना स्थगित रखे । वरना वो लौटते समय इसे पार कैसे करेंगे ? इस तरह विन्ध्याचल की ऊंचाई बढ़नी बंद हुई । उधर अगस्त कभी दक्षिण से लौटे ही नहीं तो पहाड़ हिमालय से छोटा ही रह गया ।'
'ये तो यात्रा की मिथकीय कहानियां है । इनका शिक्षा से क्या लेना ?'
'लेना-देना इसलिए है क्योंकि अगस्त को ही दक्षिण भारत के कलारीपयट्टु का भी प्रणेता माना जाता है । कालांतर में परशुराम ने इसी विधा में नए हथियार भी जोड़े । आगे ये बौद्ध मत के साथ चीन और जापान कोरिया की तरफ भी बढ़ा । यात्रा के दौरान छात्रों को चोर डाकुओं से निपटना पड़ सकता है इसलिए लम्बे समय से अहिंसक बौद्ध भिक्षुओं को इसका अभ्यास करवाया जाता रहा है । यात्रा के कारण ही तो ये नया विषय जुड़ा है ना ?'
'यहाँ तुम लगता है कि इतिहास और मिथक में कुछ घालमेल कर रहे हो । यहाँ प्रभाव तो दीखता है मगर कारण पर विश्वास करने का मन नहीं करता ।'
'चलो थोड़े नए दौर में आते हैं । नालंदा या फिर तक्षशिला के विश्वविद्यालयों में दूर दूर से छात्रों का आना तो तथ्य है न ? इन दोनों में दूरी कितनी थी ? पास पास थे क्या ?'
'नहीं, पास तो नहीं । परन्तु अध्ययन के लिए ही इस दूरी को तय करते थे !'
'उस ज़माने में छापाखाने तो होते नहीं थे । लोग अपने क्षेत्रों से आते और पुस्तकों कि हस्तलिखित प्रतियां अपने साथ ले जाते थे । इस काम के लिए तो कई छात्र सफ़र करते थे ।'
'हां इसमें सफर की महत्ता तो दिखती है ।'
'अब सोचो कि ये सफ़र की परंपरा बंद कैसे हुई । जहाँ चीनी यात्री ऐसे जहाजों से सफर पर निकलते थे जिनमें दो सौ से ज्यादा यात्री सफर करते थे वो अचानक बंद कैसे हो गए ? क्या वजह रही होगी ?'
'भारत में गांधी के समय तक तो विदेश यात्रा पर धार्मिक पाबन्दी लग चुकी थी ।'
'वैसे बड़े जहाजों के भारत में निर्माण पर प्रतिबन्ध कब लगा था ?'
'सन 1850 के आस पास ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारतीय तटों पर एक सीमा से बड़े जहाजों के निर्माण पर रोक लगा दी थी । युद्धक जहाज बंद हुए ही, 800 से 1000 टन ढोने लायक जहाज बनने भी बंद हो चुके थे ।'
'यानि कम भारतीय दुनियां देखेंगे, कम ही अंग्रेज़ों के मुकाबले के लायक बनेंगे इसका इंतज़ाम हो चुका था । शिक्षा तंत्र में से सिर्फ एक यात्रा को गायब कर देने के कारण आज विश्वविद्यालय का पीएचडी भारत के बारे में भी नहीं जानता । एक मामूली सी छेड़छाड़ के कैसे दूरगामी परिणाम हुए ये तो समझ गए होगे अब ?'
'ये हज़म करना जरा मुश्किल है । मुझे जरा समय दो, मैं इसपर बाद में चर्चा करता हूँ ।'
साभार आनंद कुमार
Hr. deepak raj mirdha
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हिन्दू शब्द और भारतवर्ष
Reviewed by deepakrajsimple
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November 10, 2017
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