India_That_is_भारत
अनुवादों_की_समस्या : सांस्कृतिक साम्य या विरोध
पिछले 125 सालों में एक अवधारणा विकसित की गयी कि वेदों के रचना के बाद #दुष्ट और #लालची ब्राम्हणों ने अपनी श्रेष्ठता बनाये रखने के लिए Caste यानि जाति का निर्माण किया ।
ये बात किसने कही ?
ये बात कही सबसे पहले 20वी शताब्दी के अंत में एक पादरी ने , जो इस बात से परेशान् था कि भारतीय समाज इस व्यवस्था के कारण एक सीमेंट की तरह एक दूसरे से जुड़ा हुवा है । वो इस बात से फ्रुस्टेट था कि 150 साल की लूट खसोट और लोगों को दरिद्रता की खाइं में धकेलने के बाद भी वे इसाईं बनने को तैयार नही थे ।
उस पादरी का नाम था MA Sherring ।
इस बात को आधार बनाकर गौरांग प्रभुओं ने लाखों पन्नों का साहित्य सृजन किया ।
उनके जाने के बाद ये काम वामपंथी नेहरुविअन और मार्कसिये बौद्धिक बौनों के कन्धों पर आन् पड़ा।
वरना आज ब्राम्हण क्षत्रिय वैश्य एवम् शूद्र वर्णो के नाम है न् कि जातियों के ।
आप किसी सरकारी संस्थान में जाते है तो आपसे पूंछा जाता है कि आपका धर्म और जाति क्या है ?
आप लिखते हैं - फलाने पांडेय , धर्म हिंदू , जाति ब्राम्हण ।
खैर इसके पीछे का रहस्य समझें।
"ये है प्रतिउत्तर आपके उस कुतथ्य का जिसमे बौद्धिक बौने , वामिये और दलित चिंतक , सामजिक समरसता के हवाले से जाति को धर्म का byproduct बताते है ।
दरअसल मैकाले का भूत भारत के पढ़े लिखे तबके पर अभी भी सवार है ।
पिछले 150 वर्षों में अंग्रेजी ही भारत के पढ़े लिखे लोगों की एक मात्र भाषा रही है ।
स्वतंत्र भारत में जब् घोंचूँ लोग पढ़ने के लिए तख्ती सिलेट कलम दवात जैसे हथियारों से बख्तरबंद होकर चटाई और बोरे पर प्राथमिक शिक्षा प्राप्त कर उच्च शिक्षा लेने के लिए पहुंचे तो उनके सामने आंग्ल भाषा और गौरांग प्रभुओं के लेखनी के द्वारा लिखित ब्रम्हवाक्यों से भरे साहित्य का भंडार था ।
उन गौरांग प्रभुओं मार्क्स और जेम्स मिल आदि आदि को पढ़लिख कर जब् वे बड़े अकादमिक और सरकारी पदों पर आसीन हुए तो उनको आभास हुवा कि वे तो जाहिल और असभ्यों की वंसजें थे जिनको आंग्ल भाषी गौरंगों ने सभ्य बनाने का पुनीत रास्ता दिखाया था ।
उस आभार से उनके कंधे गौरांग प्रभुओं के चरण में ढीले पड़ गए ।
अब उनके शिथिल कंधों पर ये भार आ गया कि कैसे वे नई पीढ़ी को सभ्य और साक्षर बनाएं, जो अवधी , भोजपुरी , ब्रज बंगाली आदि देशज और गवारूं भाषाओं में संवाद करता है ?
तो इसका एक सहज उपाय निकाला उन्होंने ।
कि हर आंग्ल शब्द का देशज भाषा में अनुवाद किया जाय।
उसमे भी कुछ दिक्कतें आयीं कि जो सभ्यता संस्कृति और शब्द देशज भाषा में उपलब्ध न् हों तो उनका क्या किया जाय ?
तो उसका तोड़ भी खोज लिया ढीले कंधे वाले पढ़े लिखे मैकाले पुत्र बाबुओं ने ।
क्या ?
यदि देशज शब्द न् मिलें तो गौरांग प्रभुओं के पूर्व आये अल्लाह के बंदों की अरबी और पर्सियन भाषा से उनको उधार ले लिया जाय ।
अब उद्धरण :
पहले आंग्ल भाषी प्रभुओं की भाषा के शब्दों का -
रिलिजन - धर्म
Caste - जाति
Secularism - धर्मनिरपेक्षता
Sufficient - पर्याप्त
Insufficient - अपर्याप्त
अब अरबिक और फारसी शब्दों से उधार लिए शब्द -
रिलिजन - मजहब
Honesty - ईमानदारी
Dishonesty - बे ईमानी
Race - नश्ल
अभी इसमें और भी जोड़ूंगा ।
और अन्य मित्रों से भी बोलूंगा कि इसमें जोड़ें ।
जो लोग जाति यानि caste को भारतीय संस्कृति का मूल समझते हैं , उनसे एक प्रश्न है -
"यदि जाति यानि Caste धर्म का byproduct है तो आपसे आग्रह है कि #Half_Caste और #Quarter_Caste जैसे शब्दों की उत्पत्ति कहाँ और किस धर्म से हुयी है और ये शब्द आज भी प्रचलन में है ?
लेकिन दुनिया के किन् देशो में प्रचलित हैं ?
क्या धर्म की पहुँच वहां तक है जहाँ ये शब्द प्रचलन में हैं ।
कृपया गूगल की मदद लें ।"
बौद्धिक बौने अभी तक अंग्रेजी पारसी का हिंदी अनुवाद करते आये है।
अब जरा धारा का प्रवाह उल्टा करके देखें।
हिंदी को अंग्रेजी में अनुवाद करें तो ।
धर्म के कई उपादान होते है ।
उन्ही में एक होता है - मासिक धर्म ।
मानव सृष्टि की सनातन व्यवस्था चलती रहे । जननी की कोख से मनुष्य जन्मता रहे उसके लिए प्रकृति यानि ब्रम्ह के द्वारा बनाई गयी एक अद्भुत धर्म चक्र जिसको मासिक धर्म कहते हैं।
पशुओं और अन्य जीव जंतुओं में नहीं पाई जाती ।
अब इसका अंग्रेजी अनुवाद ( कोई फ़ारसी में करे तो मजहब् का उपादान भी समझ में आ जाय।
What is #Monthly_Religion ?
बौद्धिक विकलांग बौनों और गुलामो को समर्पित पोस्ट।
Sumant Bhattacharya के पोस्ट से प्रेरित।
ग्रंथ या ग्रंथालय जलाने की मानसिकता ही bigotry है:
बिगोट्री शब्द से बहुसंख्यक भारतीय परिचित नही है । इसको अरबी या फ़ारसी में क्या कहते है ये मुझे नहीं मालूम और उनको भी नही मालूम जो बिगोट्री का अनुवाद धर्मान्धता में करते हैं।
जो इस बिगोट्री शब्द का भारत के संदर्भ में, धर्मान्धता में अनुवाद करते और समझते है, उनके लिए सिर्फ यही कहा जा सकता है कि उनको मॉनसिक गुलामी ( Mental servitude) की बीमारी है, जो न उनको समझते है जिनकी पवित्र पुस्तकों में ये शब्द और सिद्धांत वर्णित है और न ही भारत को समझते हैं।
ये काफिरता का सिद्धांत ( Theology of Infidelism) है जो ये कहता है कि मेरा गॉड या अल्लाह ही सच्चा गॉड/ अल्लाह है, और मेरा रिलीजन या मजहब ही सच्चा रिलीजन/मजहब है। जो इस बात को स्वीकार नहीं करता वो काफ़िर (Infidels) है। और उसको इस धरती पर जीने का अधिकार नही है। इसलिए इनका कत्ल करके इनकी जर जोरू और जमीन पर कब्जा करना ही गॉड या अल्लाह के आदेश का पालन करना है। और इस सिद्धांत का पालनकरने वाला ही इन मजहबों का सच्चा बन्दा है।
2000 वर्षों से इसी सिद्धांत को अपनाते हुए पूरे विश्व मे कत्ले आम हुए। इसी सिद्धांत के तहत दूसरे विश्वयुद्ध में 60 लाख यहूदियों और 40 लाख जिप्सियों का कत्ल किया गया।
जेरुसलम और अरब के तीन टोलों ( ट्राइब्स) की मानसिकता को आधार बना कर पूरे विश्व में मानवता की हत्या करके उनके जर जोरू जमीन पर कब्जा किया गया। अमेरिका ऑस्ट्रेलिया इराक ईरान भारत सहित पूरा विश्व इस सिद्धांत का भुक्तभोगी है।
जर जोरू जमीन पे कब्जे के साथ साथ पुस्तको को जलाना भी इसी मानसिकता का परिचायक है।
हमको तो सिखाया जाता है कि पुस्तक यानी विद्या माई। गलतो से भी पुस्तक की तो बात ही छोड़िए, किसी कॉपी पर भी पैर पड़ जाय तो तुरंत उसको उठाकर माथे से लगाना और सरस्वती मां से क्षमा मांगना। हमने तो आज तक किसी की पुस्तक नहीं जलायी।
तो नालंदा का ग्रंथालय जलाने वाला चाहे बख्तियार ख़िलजी रहा हो या फिर मनुषमृति जलाने वाले डॉ अम्बेडकर, इतिहास दोनों का आकलन एक बिगोट के रूप में ही करेगा।
उन्होने कहा माइथोलॉजी।
हमने अनुवाद किया उसका - पौराणिक कहानियां ।
उन्होंने कहा Myth (मिथ) हमने उसका हिंदी अनुवाद किया - मिथक ।
अब पुराण चाहे पढ़ें हो या न पढ़ें हो , चाहे उसके बारे में रोंवा बराबर भी ज्ञान न हो - लेकिन वह झूठ प्रमाणित हो गया।
घुरहू कतवारू भी पुराण को झूंठ प्रमाणित करने लगे।
हिंदी बाजों से पूंछो कि मिथक शब्द की उत्पत्ति कहा से हुयी तो बोलेंगे कि - मिथ से।
उनको पता भी नहीं है कि ये मिथ किस भाषा का शब्द है।
कभी सोचने की न जहमत उठाई और न ही जरूरत समझी।
दरअसल हमारे अंदर एक बहुत भयानक क्षमता विकसित हुई पिछले 100 सालों में ।
किसी भी समाज के कचड़ा संस्कृति के शब्दों का समानार्थी हम अपने संस्कृति से कोई न कोई शब्द खोज ही लेते हैं । फिर धड़ल्ले से उसकी हिंदीबाजी शुरू हो जाती है ।
भारत के इन बुद्धि कुडीचों को मेरा अभिनन्दन ।
राजा सामंत #fuledal का अनुवाद नहीं है ।
क्योंकि fuedal शब्द आयातित शब्द है ।
ये लैटिन शब्द है। शब्द जहाँ रचा गया उसकी संस्कृति भी वही रही होगी। रोमन साम्राज्य से निकला ये शब्द है जहाँ के शासन सत्ता के बार्रे में अंगुस मैडिसन ने। 2000 AD में लिखा कि "It was based on slavery Plunder and Military Power" .
(जो लोग लाइक या कमेंट करें कृपया इस वाक्य का हिंदी अनुवाद कर दें )
अब राजा की जो परिकल्पना भारत में थी कि "वही राजा आदर सम्मान और लोकप्रिय होता था जो #प्रजावत्सल हो । यानि अपनी प्रजा को अपने वत्स अर्थात संतान की तरह समझे। अन्यथा अन्यायी राजशक्तियों प्रजा उखाड़ फेंकती थी। घनानंद के निरंकुश राजशाही को चाणक्य ने उखाड़ फेंका और चंद्रगुप्त मौर्य को राजा बनाया , जो इतिहासकारों के अनुसार भारत का स्वर्णिम युग था
तब बोला जाता था कि #यथा_राजा_तथा_प्रजा ।
लेकिन अब लोकतंत्र आ गया है
आपको राजा चुनने का अधिकार है
इसलिए नयी लोकोक्ति है #लोकतंत्र : #यथा_प्रजा_तथा_राजा
deepak raj mirdha
yog teacher , Acupressure therapist and blogger
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