यमराज-नचिकेता संवाद

नचिकेता की कथा

 हमारे धर्म ग्रंथो में मृत्यु के देव यमराज से जुड़े दो ऐसे प्रसंग आते है जब यमराज को इंसान के हठ के आगे मजबूर होना पड़ा था। पहला प्रसंग सावित्री से सम्बंधित है, जहाँ यमराज को सावित्री के हठ पर मजबूर होकर उसके पति सत्यवान को पुनः जीवित करना पड़ा। 

जबकि दूसरा प्रसंग एक बालक नचिकेता से सम्बंधित है, जहाँ यमराज को एक बालक की जिद के आगे मजबूर होकर उसे मृत्यु से जुड़े गूढ़ रहस्य बताने पढ़े। आज हम जानेंगे यमराज और नचिकेता से जुड़े प्रसंग को और उनके बीच हुए संवाद को।

शाम का समय था। पक्षी अपने-अपने घोसले की ओर लौट रहे थे, पर वह बढ़ा जा रहा था, बिना किसी थकान और पछतावे के। उसे अपनी मंजिल तक पहुंचना ही था। यही उसके पिता की आज्ञा थी। उसका लक्ष्य था यमपुरी। वही यमपुरी, जहां यमराज निवास करते थे। उसे यमराज से ही मिलना था। यही उसके पिता का आदेश था।

लगातार तीन पहर तक चलने के बाद वह यमपुरी के द्वार पर जा पहुंचा। वहां पर दो यमदूत पहरा दे रहे थे।

उन्होंने जब उस बालक को देखा तो आश्चर्यचकित रह गए। कौन है यह बालक, जो मौत के मुंह में चला आया? दोनों सोचने लगे। उसमें से एक यमदूत ने गरजती आवाज में उससे पूछा- 'हे बालक, तू कौन है और यहां क्या करने आया है?'

मेरा नाम नचिकेता है और मैं अपने पिता की आज्ञा से यमराजजी के पास आया हूं।' उस बालक ने धीरता के साथ उत्तर दिया।

'लेकिन क्यों मिलना चाहते हो तुम यमराज से?' दूसरे यमदूत ने प्रश्न किया।

'क्योंकि मेरे पिताश्री ने उन्हें मेरा दान कर दिया है।'

नचिकेता की बात सुनकर दोनों यमदूत हैरान रह गए। ये कैसा अजीब बालक है। इसे मृत्यु का भय नहीं। यमराज से मिलने चला आया। उन्होंने उसे डराना चाहा, पर नचिकेता अपने निर्णय के आगे सूई की नोंक भर भी न डिगा। वह बराबर यमराज से मिलने की इच्‍छा प्रकट करता रहा।

इस पर एक यमदूत बोला- 'वे इस समय यमपुरी में नहीं हैं। तीन दिन बाद लौटेंगे, तभी तुम आना।'

'कोई बात नहीं, मैं तीन दिन तक प्रतीक्षा कर लूंगा।' नचिकेता ने उत्तर दिया और वहीं द्वार के पास बैठ गया। सहसा उसकी आंखों के आगे बीती हुई एक-एक घटना चित्र की भांति घूमने लगी।

नचिकेता के पिता ऋषि वाजश्रवा ने एक बड़े यज्ञ का आयोजन किया था। विद्वानों, ऋषि-मुनियों और ब्राह्मणों को उसने यज्ञ में आमंत्रित किया। ब्राह्मणों को आशा थी कि यज्ञ की समाप्ति पर वाजश्रवा की ओर से उन्हें अच्छी दक्षिणा मिलेगी, लेकिन जब यज्ञ समाप्त हुआ और वाजश्रवा ने दक्षिणा देनी शुरू की तो सभी आश्चर्यचकित रह गए। दक्षिणा में वह उन गायों को दे रहा था, जो कि बूढ़ी हो चुकी थीं और दूध भी न देती थीं।

यज्ञ के प्रारंभ होने से पूर्व वाजश्रवा ने घोषणा की थी वह यज्ञ में अपनी समस्त सं‍पत्ति दान कर देगा। इसी कारण यज्ञ में कुछ ज्यादा ही लोग उपस्‍थित हुए थे। पर जब उन्होंने दान का स्तर देखा तो मन ही मन नाराज होकर रह गए। क्रोध तो उन्हें बहुत आया पर उनमें से कोई कुछ न कह सका।

वाजश्रवा के पुत्र नचिकेता से यह न देखा गया। संपत्ति के प्रति अपने पिता का यह मोह उसे बर्दाश्त न हुआ। वह अपने पिता के पास जाकर बोला- 'पिताजी, ये आप क्या कर रहे हैं?'

'देखते नहीं हो, मैं ब्राह्मणों को दान दे रहा हूं।' वाजश्रवा ने कहा।

'लेकिन ये गायें तो बूढ़ी हैं, जबकि आपको अच्छी गायें दान में देनी चाहिए।' नचिकेता ने विनम्रतापूर्वक कहा।

'क्या तुम मुझसे ज्यादा जानते हो कि कौनसी चीज दान में देनी चाहिए, कौनसी नहीं?' वाजश्रवा ने झल्लाकर प्रश्न किया।

'हां पिताजी।' नचिकेता ने कहा- 'दान में वह वस्तु दी जानी चाहिए, जो व्यक्ति को सबसे ज्यादा प्रिय हो और सबसे प्रिय तो आपको मैं हूं। आप मुझे किसको दान में देंगे?'

नचिकेता की इस बात का वाजश्रवा ने कोई उत्तर न दिया पर नचिकेता ने हठ पकड़ ली। वह बार-बार यही प्रश्न करता रहा कि पिताजी आप मुझे किसको दान में देंगे?'

काफी देर तक वाजश्रवा देखता रहा, पर जब नचिकेता न माना तो वह झल्लाकर बोला, 'जा, मैंने तुझे यमराज को दान में दिया।' लेकिन अगले ही पल वाजश्रवा ठिठका। ये उसने क्या कह दिया? अपने इकलौते पुत्र को यमराज को दान में दिया? पर अब क्या हो सकता था?

नचिकेता भी ठहरा दृढ़ निश्चयी। वह कहां पीछे रहने वाला था। पिता की बात सुनकर बोल पड़ा- 'मैं आपकी आज्ञा का पालन करूंगा पिताजी, आप बिलकुल चिंतित न हों।'

वाजश्रवा ने बहुतेरा समझाया, पर नचिकेता न माना। उसने सभी परिजनों से अंतिम भेंट की और यमराज से मिलने के लिए चल पड़ा। जिसने भी यह सुना आश्चर्यचकित हुए बिना न रह सका। सभी उसके साहस की प्रशंसा करने लगे।

यमपुरी के द्वार पर बैठा नचिकेता बीती बातें सोच रहा था। उसे इस बात का संतोष था कि वह पिता की आज्ञा का पालन कर रहा था। लगातार तीन दिन तक वह यमपुरी के बाहर बैठा यमराज की प्रतीक्षा करता रहा। तीसरे दिन जब यमराज आए तो वे नचिकेता को देखकर चौंके।

जब उन्हें उसके बारे में मालूम हुआ तो वे भी आश्चर्यचकित रह गए। अंत में उन्होंने नचिकेता को अपने कक्ष में बुला भेजा।

यमराज के कक्ष में पहुंचते ही नचिकेता ने उन्हें प्रणाम किया। उस समय उसके चेहरे पर अपूर्व तेज था। उसे देखकर यमराज बोले- 'वत्स, मैं तुम्हारी पितृभक्ति और दृढ़ निश्चय से बहुत प्रसन्न हुआ। तुम मुझसे कोई भी तीन वरदान मांग सकते हो।'

यह सुनकर नचिकेता की प्रसन्नता की सीमा न रही। वह बोला- 'पहला वरदान तो आप यह दें कि मेरे पिता क्रोध शांत हो जाएं और वे मुझे पहले कि तरह प्यार करें।'

'ऐसा ही होगा।'

यमराज बोले- 'दूसरा वरदान मांगो।' किंतु इस बार नचिकेता सोच में पड़ गया। अब वह क्या मांगे। उसे तो किसी चीज की इच्छा ही नहीं।

अचानक उसे ध्यान आया कि मेरे पिता ने यज्ञ स्वर्ग की प्राप्ति के लिए किया था। क्यों न मैं ही उसे मांगूं? यह सोचकर वह बोला- 'मुझे स्वर्ग की प्राप्ति किस प्रकार हो सकती है?'

यमराज चक्कर में पड़ गए, पर वचन दे चुके थे। इसलिए उन्होंने वह भी बता दिया और तीसरा व अंतिम वरदान मांगने के लिए कहा। नचिकेता कुछ समय तक सोच में डूबा रहा।

फिर बोला- 'आत्मा का रहस्य क्या है? कृपया समझाएं।'

नचिकेता के मुख से इस प्रश्न की आशा यमराज को बिलकुल न थी। उन्होंने उसे और कोई वरदान मांगने को कहा और बोले- 'यह विषय इतना गूढ़ है‍ कि हर कोई इसे नहीं समझ सकता।' पर नचिकेता अपनी बात पर अड़ा रहा और निर्णायक स्वर में बोला- 'अगर आपको कुछ देना ही है तो मेरे इस प्रश्न का उत्तर दें अन्यथा रहने दें, क्योंकि मुझे अन्य कोई भी वस्तु नहीं चाहिए।'

वे उसे आशीर्वाद देते हुए बोले- 'वत्स, ये ऐसा रहस्य है जो मैं भी नहीं जानता। पर यदि तुम ज्ञान प्राप्त करो और विद्या अध्ययन करो तो तुम्हें सिर्फ इसी प्रश्न का ही नहीं बल्कि संसार के सभी प्रश्नों का उत्तर प्राप्त हो सकता है, क्योंकि विद्या वह खजाना है जिसकी बराबरी संसार की कोई दूसरी वस्तु नहीं कर सकती।'

उसके बाद यमराज ने नचिकेता को आशीर्वाद देकर उसे उसके पिता के पास वापस भेज दिया।

वहां से लौटने के बाद नचिकेता अध्ययन में लग गया, क्योंकि जीवन की सही राह उसे प्राप्त हो चुकी थी। उसी राह पर चलकर वह एक बहुत बड़ा विद्वान बना और सारे संसार में उसका नाम अमर हो गया।

Hr. deepak raj mirdha
yog teacher , Acupressure therapist and blogger
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यमराज-नचिकेता संवाद यमराज-नचिकेता संवाद Reviewed by deepakrajsimple on October 28, 2017 Rating: 5

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