सिर पर शिखा (चोटी) रखने का वैज्ञानिक कारण -
आधुनिक प्रयोगशालाओं में अनुसंधान किया गया तो, शिखा के विषय में बड़े ही महत्वपूर्ण ओर रोचक वैज्ञानिक तथ्य सामने आए। जिस स्थान पर शिखा यानि कि चोटी रखने की परंपरा है,वह सिर के बीचों-बीच सुषुम्ना नाड़ी का स्थान होता है तथा शरीर विज्ञान यह सिद्ध कर चुका है कि सुषुम्ना नाड़ी मनुष्य के हर तरह के विकास में बड़ी ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। शिखा ब्रह्माण्ड से आने वाले सकारात्मक तथा आध्यात्मिक विचारों को ग्रहण करने के साथ-साथ सुषुम्ना नाड़ी को हानिकारक प्रभावों से भी बचाती है, साथ ही जिस जगह शिखा (चोटी) रखी जाती है, यह शरीर के अंगों, बुद्धि और मन को नियंत्रित करने का स्थान भी है। शिखा एक धार्मिक प्रतीक तो है ही साथ ही मस्तिष्क के संतुलन का भी बहुत बड़ा कारक है। आधुनिक युवा इसे रुढ़ीवाद मानते हैं लेकिन असल में यह पूर्णत:वैज्ञानिक है। दरअसल, शिखा के कई रूप हैं। आधुनकि दौर में अब लोग सिर पर प्रतीकात्मक रूप से छोटी सी चोटी रख लेते हैं लेकिन इसका वास्तविक रूप यह नहीं है। हमारे सिर में बीचोंबीच सहस्राह चक्र होता है। इसका आकार गाय के खुर के बराबर ही माना गया है इसलिए वास्तव में शिखा का आकार गाय के पैर के खुर के बराबर होना चाहिए। शिखा रखने से इस सहस्राहचक्र को जागृत करने और शरीर, बुद्धि व मन पर नियंत्रण करने में सहायता मिलती है। शिखा का हल्का दबाव होने से रक्त प्रवाह भी तेज रहता है और मस्तिष्क को इसका लाभ मिलता है।
आधुनिक प्रयोगशालाओं में अनुसंधान किया गया तो, शिखा के विषय में बड़े ही महत्वपूर्ण ओर रोचक वैज्ञानिक तथ्य सामने आए। जिस स्थान पर शिखा यानि कि चोटी रखने की परंपरा है,वह सिर के बीचों-बीच सुषुम्ना नाड़ी का स्थान होता है तथा शरीर विज्ञान यह सिद्ध कर चुका है कि सुषुम्ना नाड़ी मनुष्य के हर तरह के विकास में बड़ी ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। शिखा ब्रह्माण्ड से आने वाले सकारात्मक तथा आध्यात्मिक विचारों को ग्रहण करने के साथ-साथ सुषुम्ना नाड़ी को हानिकारक प्रभावों से भी बचाती है, साथ ही जिस जगह शिखा (चोटी) रखी जाती है, यह शरीर के अंगों, बुद्धि और मन को नियंत्रित करने का स्थान भी है। शिखा एक धार्मिक प्रतीक तो है ही साथ ही मस्तिष्क के संतुलन का भी बहुत बड़ा कारक है। आधुनिक युवा इसे रुढ़ीवाद मानते हैं लेकिन असल में यह पूर्णत:वैज्ञानिक है। दरअसल, शिखा के कई रूप हैं। आधुनकि दौर में अब लोग सिर पर प्रतीकात्मक रूप से छोटी सी चोटी रख लेते हैं लेकिन इसका वास्तविक रूप यह नहीं है। हमारे सिर में बीचोंबीच सहस्राह चक्र होता है। इसका आकार गाय के खुर के बराबर ही माना गया है इसलिए वास्तव में शिखा का आकार गाय के पैर के खुर के बराबर होना चाहिए। शिखा रखने से इस सहस्राहचक्र को जागृत करने और शरीर, बुद्धि व मन पर नियंत्रण करने में सहायता मिलती है। शिखा का हल्का दबाव होने से रक्त प्रवाह भी तेज रहता है और मस्तिष्क को इसका लाभ मिलता है।
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