इन्द्रियों के गुलाम नहीं, स्वामी बनिए!
जो आदमी केवल इंद्रिय-सुखों और शारीरिक वासनाओं की तृप्ति के लिए जीवित है और जिसके जीवन का उद्देश्य 'खाओ, पीओ, मौज उड़ाओ' है, निस्संदेह वह आदमी परमात्मा की इस सुंदर पृथ्वी पर एक कलंक है, भार है, क्योंकि उसमें सभी परमात्मीय गुण होते हुए भी वह एक पशु के समान नीच वृत्तियों में फॅसा हुआ है। जिस आदमी में ईश्वरीय-अंश विद्यमान है, वही अपने मुख से हमें अपने पतित जीवन की दु:ख भरी गाथा सुनाता है।
वास्तव में आदर्श मनुष्य वही है तो समस्त पाशविक वृत्तियों तथा विषय-वासनाओं को दूर रखता हुआ भी उनके ऊपर अपने सुसंयमित तथा सुशासक मन से राज्य करता है, जो अपने शरीर का स्वामी है, जो अपनी समस्त विषय-वासनाओं की लगाम को अपनी दृढ़ तथा धैर्य युक्त हाथों को पकड़कर अपनी प्रत्येक इंद्रिय से कहता है कि तुम्हें मेरी सेवा करनी होगी, न कि मालिकी। मैं तुम्हारा सदुपयोग करूँगा, दुरुपयोग नहीं। ऐसे ही मनुष्य अपनी समस्त पाशविक वृत्तियों तथा वासनाओं की शक्तियों को देवत्व में परिणत कर सकते हैं। विलासिता मृत्यु है और संयम जीवन है। सच्चा रसायनशास्त्री वही है जो विषय-वासनाओं के लोहे को आध्यात्मिक तथा मानसिक शक्तियों के स्वर्ण में परिवर्तित कर देता है। उसे हर एक वस्तु तथा परिस्थिति में आनंद की झाँकी होने लगती है।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
-अखण्ड ज्योति- दिसंबर 1945 पृष्ठ 1
http://literature.awgp.org/magazine/AkhandjyotiHindi/1945/December.1
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Reviewed by deepakrajsimple on April 16, 2015 Rating: 5

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