stories for young mind
MAN KI LAGAN
नार्वे शहर मेँ फलेरा नामक एक बहूत बड़ा रईस था। उस रईस के यहाँ एक नौकर काम किया करता था और उसका नाम था- एंटोनियो।
एंटोनियो जब भी अपनेँ काम से Free होता तो पास स्थित मुर्तियोँ की दुकान के बाहर खड़ा हो जाता और मुर्तियाँ बनते देखता। वह रोज ही ऐसा करता और अब तो उसे मुर्तियाँ बनते देख मुर्तियोँ की कुछ समझ भी आ गईँ थीँ। कई बार वह मुर्ति बनानेँ मेँ कारीगरोँ की मदद कर देता।
एक दिन अचानक मुर्तियोँ की दुकान वाले मालिक नेँ एंटोनियोँ से कहा, 'तुम यहाँ आकर फालतु मेँ अपना Time waste क्योँ करते हो?' एंटोनियो नेँ दुकानदार से कहा, 'sir मुझे मुर्तियाँ बनते देखना बहूत ही अच्छा लगता है।' और अब वह Continue वहाँ आने लगा।
एक दिन एंटोनियो के मालिक फलेरा ने कुछ लोगोँ को दावत दी। दावत स्थल की सजावत की जिम्मेदारी भी मुख्य बैरे का था लेकिन सजावट का काम भी मुख्य बैरे का था लेकिन उससे सजावट ठीक से नहीँ हो पा रही थी। मुख्य बैरे को परेशानी मेँ देखकर एंटोनियो नेँ कहा, 'आप कहेँ तो मैँ कोशिश करके देखुँ?'
बैरे नेँ परेशानी के चलते निराश मन से हामी भर दी। एंटोनियो नेँ कई किलो मक्खन मंगवाया और जमे हुये मक्खन से उसनेँ एक बहूत ही शानदार चीता बनाया और मेज पर सजा दिया। दावत मेँ आये सभी लोगोँ नेँ मुर्ति की काफी तारीफ की। मेहमानोँ की भीड़ मेँ एक मुर्तिकला विशेषज्ञ भी थे। जब उन्हेँ पता चला कि यह मुर्ति एक मामूली नौकर नेँ बनाई है तो उसनेँ हैरान होकर एंटोनियोँ से पुछा- कि आपनेँ यह कारीगरी कहाँ मेँ सीखी?
एंटोनियोँ ने कहा-' पास ही मेँ एक दुकान है वहाँ मुर्तियाँ बनते देखकर ही मैनेँ अपनी मन की प्रेरणा को जगाकर ही यह कला सीखी है।'
सभी उसकी इस बात से बहूत ही प्रभावित हूये।
Friends आपका लक्ष्य कुछ भी हो लेकिन आपके अंदर किसी चीज को सीखनेँ की लगन नहीँ तो फिर लक्ष्य सीमट कर रह जायेगा। Goal बनानेँ के लिये मन के सोये हुये लगन को जगाना बहूत ही आवश्यक है इसलिये दोस्तोँ जिस चीज मेँ आपकी रूचि है उसे पुरे लगन से सीखिये। आज नहीँ तो कल सफलता जरूर मिलेगी।
नार्वे शहर मेँ फलेरा नामक एक बहूत बड़ा रईस था। उस रईस के यहाँ एक नौकर काम किया करता था और उसका नाम था- एंटोनियो।
एंटोनियो जब भी अपनेँ काम से Free होता तो पास स्थित मुर्तियोँ की दुकान के बाहर खड़ा हो जाता और मुर्तियाँ बनते देखता। वह रोज ही ऐसा करता और अब तो उसे मुर्तियाँ बनते देख मुर्तियोँ की कुछ समझ भी आ गईँ थीँ। कई बार वह मुर्ति बनानेँ मेँ कारीगरोँ की मदद कर देता।
एक दिन अचानक मुर्तियोँ की दुकान वाले मालिक नेँ एंटोनियोँ से कहा, 'तुम यहाँ आकर फालतु मेँ अपना Time waste क्योँ करते हो?' एंटोनियो नेँ दुकानदार से कहा, 'sir मुझे मुर्तियाँ बनते देखना बहूत ही अच्छा लगता है।' और अब वह Continue वहाँ आने लगा।
एक दिन एंटोनियो के मालिक फलेरा ने कुछ लोगोँ को दावत दी। दावत स्थल की सजावत की जिम्मेदारी भी मुख्य बैरे का था लेकिन सजावट का काम भी मुख्य बैरे का था लेकिन उससे सजावट ठीक से नहीँ हो पा रही थी। मुख्य बैरे को परेशानी मेँ देखकर एंटोनियो नेँ कहा, 'आप कहेँ तो मैँ कोशिश करके देखुँ?'
बैरे नेँ परेशानी के चलते निराश मन से हामी भर दी। एंटोनियो नेँ कई किलो मक्खन मंगवाया और जमे हुये मक्खन से उसनेँ एक बहूत ही शानदार चीता बनाया और मेज पर सजा दिया। दावत मेँ आये सभी लोगोँ नेँ मुर्ति की काफी तारीफ की। मेहमानोँ की भीड़ मेँ एक मुर्तिकला विशेषज्ञ भी थे। जब उन्हेँ पता चला कि यह मुर्ति एक मामूली नौकर नेँ बनाई है तो उसनेँ हैरान होकर एंटोनियोँ से पुछा- कि आपनेँ यह कारीगरी कहाँ मेँ सीखी?
एंटोनियोँ ने कहा-' पास ही मेँ एक दुकान है वहाँ मुर्तियाँ बनते देखकर ही मैनेँ अपनी मन की प्रेरणा को जगाकर ही यह कला सीखी है।'
सभी उसकी इस बात से बहूत ही प्रभावित हूये।
Friends आपका लक्ष्य कुछ भी हो लेकिन आपके अंदर किसी चीज को सीखनेँ की लगन नहीँ तो फिर लक्ष्य सीमट कर रह जायेगा। Goal बनानेँ के लिये मन के सोये हुये लगन को जगाना बहूत ही आवश्यक है इसलिये दोस्तोँ जिस चीज मेँ आपकी रूचि है उसे पुरे लगन से सीखिये। आज नहीँ तो कल सफलता जरूर मिलेगी।
एक गिलहरी बार-बार नदी पर लोटकर अपनेँ शरीर पर रेत चिपका कर लाती थी।
अपनेँ शरीर मेँ लिपटी रेत को वह ढेर मेँ डाल देती थी।
वानरोँ नेँ यह किस्सा जाकर श्रीराम जी को बताया। श्रीराम नेँ गिलहरी को
बुलाया और कहा, यह क्या कर रही हो गिलहरी।
गिलहरी नेँ कहा- लंका पर विजय पानेँ की तैयारी।
श्रीराम नेँ कहा- तुम्हारे चंद रेत के कणोँ से क्या होगा? गिलहरी नेँ
कहा- माफ करेँ भगवान, रेत के कण कम हैँ या ज्यादा यह तो मैँ नहीँ जानती,
पर मैँ इतना जरूर जानती हूँ कि मेरी जितनी क्षमता है, मैँ पूरी ताकत
लगाकर अपना योगदान दे रही हूँ।
भगवान श्रीराम गिलहरी के उत्साह से धन्य हो गये। उन्होँनेँ प्यार से
गिलहरी के शरीर पर हाथ फेरा। कहते हैँ गिलहरी के शरीर पर जो धारियाँ हैँ,
वह भगवान श्रीराम के हाथ की छाप हैँ।
.......
उत्सास कभी, उम्र का, शारीरिक क्षमता का, धन सम्पत्ति की मोहताज नहीँ
होती है। उत्साह को हर समय आपके साथ रखिये क्योँकि यह ठण्ड के मौसम मेँ
आग, धुप, गरम कपड़ोँ की तरह काम करेगा।
......
अपनेँ कार्य के प्रति हमेशा उत्साहित रहेँ। यदि आप कामयाबी पाना चाहते
हैँ तो लोगोँ के भीड़ मेँ अलग नजर आयेँ। हतोत्साहित होकर किसी कार्य को
करनेँ से आपके हाथ कुछ भी नहीँ लगेगा, इसीलिये भरपूर उत्साह के साथ अपनेँ काम को करेँ।
एक बार एक संत, साधारण वेशभुषा मेँ एक नदी के किनारे खड़े होकर नाविक का इंतजार कर
रहे थे। उन्हेँ नदी के उस पार जाना था, पर नाविक यात्रियोँ को लेकर दुसरी
ओर गया हुआ था। इसी समय एक भभूतधारी साधु वहाँ पहूँचा और संत, जी
को व्यंग्य से देखता हुआ नदी के पानी पर ऐसा चल पड़ा जैसे पानी स्थल (जमीन) हो।
पानी पर चलना एक अचम्भा की बात है, एक विचित्र अजुबा भी, इसके बावजुद भी
संत जी नेँ उधर ध्यान नहीँ दिया। उचटती-सी नजर डाली और अपनी सोँच ही
मेँ निमग्न हो गये।
की इस विशेष उपलब्धि पर ध्यान ही नहीँ दिया, तो वह भभुतधारी साधु आया लौट आया और
संत जी के पास आकर बोला-" तुम इतनेँ बड़े संत हो, तत्वज्ञान की
बातेँ करते हो। मैँ तो एक साधारण साधु हूँ, पर फिर भी पानी पर चलना मेरे
लिए मामूली बात है। तुम कैसे साधक हो?"
उस संत जी नेँ मुस्कुराकर पूछा-" आपनेँ इस उपलब्धि को प्राप्त करनेँ
मेँ कितना समय लगाया महोदय?"
साधु नेँ गर्व से कहा-" तेरह वर्ष।"
संत नेँ भभुतधारी साधु से हँसते हुए कहा-" फिर तो आपनेँ अपनी जिंदगी के अमुल्य तेरह
वर्ष दो पैसे मेँ गँवा दिए। अभी नाविक आयेगा और वह दो पैसे लेकर मुझे नदी
पार करा देगा।
इतनी तुच्छ बात के लिए इतना समय नष्ट करना मुझे अज्ञानता लगी, इसलिए
मैनेँ इसके लिए प्रयत्न ही नहीँ किया।
भारत माता अज्ञानता, विपन्नता और रोग से ग्रसित है, परतंत्र है। इसके
गौरव को प्रतिष्ठित करना मुझे इन सबसे अधिक आवश्यक लगा, इसलिए मैँ दूसरी
बातोँ को ध्यान ही नहीँ दे सका।"
उस साधु का अहंकार एक पल मेँ नष्ट हो गया। उसनेँ संत जी के सामनेँ हाथ
जोड़ते हुए कहा-" आप सचमुच महान हैँ। आज मेरी समझ मेँ आया कि मैनेँ अपना
जीवन व्यर्थ की सिध्दियोँ मेँ गँवा दिया। जिस शक्ति से मैँ किसी का भला
नहीँ कर सकता, जो मेरे अंदर के मनुष्य को प्रकाशित नहीँ कर सकती, और
शक्ति का होना और न होना एक जैसा है।"
.............
Friends उपलब्धि अपनेँ आप मेँ महत्वपूर्ण नही होती है। महत्वपूर्ण है कि व्यक्ति
नेँ उसे कैसे प्राप्त किया है और उससे समाज और मानवता को क्या मिला है
ये जरूरी है कि आप क्या कर रहे हैँ लेकिन यह भी जरुरी है कि उससे दूसरोँ
का भी फायदा हो रहा है कि नहीँ।
सफलता का मतलब केवल भौतिक उपलब्धियोँ को प्राप्त कर लेना ही नही है। So friends हमेँशा ऐसा कार्य करनेँ की कोशिश करेँ जिससे स्वयं के अलावा, समाज, देश सबका हित हो सबका भला और कल्याण हो।
एक महान विद्वान से मिलनेँ के लिये एक दिन रोशनपुर के राजा आये।
राजा नेँ विद्वान से पुछा, 'क्या इस दुनिया मेँ ऐसा कोई व्यक्ति है जो बहूत
महान हो लेकिन उसे दुनिया वाले नहीँ जानते होँ?'
विद्वान नेँ राजा से विनम्र भाव से मुस्कुराते हुये कहा, 'हम दुनिया के
ज्यादातर महान लोगोँ को नहीँ जानते हैँ।' दुनिया मेँ ऐसे कई लोग हैँ जो
महान लोगोँ से भी कई गुना महान हैँ।
राजा नेँ विद्वान से कहा, 'ऐसे कैसे संभव है'।
विद्वान नेँ कहा, मैँ आपको ऐसे कई व्यक्तियोँ से मिलवाऊंगा।
इतना कहकर विद्वान, राजा को लेकर एक गांव की ओर चल पड़े। रास्ते मेँ कुछ
दुर पश्चात् पेड़ के नीचे एक बुढ़ा आदमी वहाँ उनको मिल गया। बुढ़े आदमी के
पास एक पानी का घड़ा और कुछ डबल रोटी थी। विद्वान और राजा नेँ उससे मांगकर
डबल रोटी खाई और पानी पिया।
जब राजा उस बूढ़े आदमी को डबल रोटी के दाम देनेँ लगा तो वह आदमी बोला, 'महोदय
मैँ कोई दुकानदार नहीँ हूँ। मैँ बस वही कर रहा हूँ जो मैँ इस उम्र मेँ
करनेँ योग्य हूँ। मेरे बेटे का डबल रोटी का व्यापार है, मेरा घर मेँ मन
नहीँ लगता इसलिये राहगिरोँ को ठंडा पानी पिलानेँ और डबल रोटी खिलानेँ आ
जाया करता हूँ। इससे मुझे बहुत खुशी मिलती है।
विद्वान नेँ राजा को इशारा देते हूये कहा कि देखो राजन् इस बुढ़े आदमी की इतनी अच्छी सोँच ही इसे महान बनाती है।
फिर इतना कहकर दोनोँ नेँ गाँव मेँ प्रवेश किया तब उन्हेँ एक स्कुल नजर आया। स्कुल मेँ उन्होँने एक शिक्षक से मुलाकात की और राजा नेँ उससे पुछा कि आप इतनेँ विद्यार्थियोँ को पढ़ाते हैँ तो आपको कितनी तनख्वाह मिलती है। उस शिक्षक नेँ राजा से कहा कि महाराज मैँ तनख्वाह के लिये नहीँ पढ़ा रहा हूँ यहाँ कोई शिक्षक नहीँ थे और विद्यार्थियोँ का भविष्य दाव पर था इस कारण मैँ उन्हेँ मुफ्त मेँ शिक्षा देनेँ आ रहा हूँ।
विद्वान नेँ राजा से कहा कि महाराज दुसरोँ के लिये जीनेँ वाला भी बहूत ही महान होता है।
और ऐसे कई लोग हैँ जिनकी ऐसी महान सोँच ही उन्हेँ महान से भी बड़ा महान बनाती हैँ।
इसलिये राजन् अच्छी सोँच आदमी का किस्मत निर्धारित करती है।
इसलिये Friends हमेशा अच्छी बातेँ ही सोँचकर कार्य करेँ और महान बनेँ।
Friends आदमी बड़ी बातोँ से नहीँ बल्कि अच्छी सोँच व अच्छे कामोँ से महान
माना जाता है।
Life मेँ कुछ Achieve करनेँ के लिये और सफलता हासिल करनेँ के लिये बड़ी बातोँ को ज्यादा Importance देनेँ के बजाय अच्छी सोँच को ज्यादा महत्व देना चाहिये क्योँकि आपकी अच्छी सोँच ही आपके कार्य को निर्धारित करती है।
एक किसान जो बहुत ही मेहनती था, उसके अनाजोँ को बेचनेँ के लिये बाजार जा रहा था। वो अपनेँ सारे अनाजोँ को बैलगाड़ी से ही एक साथ ले जा रहा था। बाजार पहुँचनेँ से पहले उस किसान के सामनेँ एक बहूत बड़ी समस्या आ गई। समस्या थी रास्ते मेँ पड़ा एक भारी पत्थर जो उसके बैलगाड़ी को आगे बढ़नेँ नहीँ दे रहा था। एक और समस्या थी कि पत्थर का भार बहूत ही ज्यादा था, वह किसान पत्थर को अकेला उठाने मेँ असमर्थ था।
किसान को बाजार जानेँ के लिये देरी हो रही थी, इस कारण वो और भी चिँतित हो गया कि अब वो पत्थर को अकेले हटाकर कैसे बाजार पहूँचे। तभी उसकी नजर टीले पर लेटे एक आदमी पर पड़ी, वह किसान उस व्यक्ति के पास मदद के लिये गया और दोनोँ पत्थर हटानेँ लगे। उस किसान नेँ मदद करनेँ वाले को धन्यवाद कहा और तारीफ की। और उस अनजान आदमी को गाली देनेँ लगा, बहुत बुरा भला कहनेँ लगा, जिसनेँ पत्थर बीच सड़क मेँ रखी थी।
जब किसान बैलगाड़ी पर बैठकर जानेँ ही वाला था तो उस मददगार आदमी नेँ किसान से कहा कि महोदय
आप जिस व्यक्ति को गाली दे रहे थे और अभी आपनेँ जिसकी तारीफ की एवं धन्यवाद कहा वो दोनोँ मैँ ही हूँ। असल मेँ मैँ बहूत ही ज्यादा थक गया था। और आराम के लिये एक अच्छी जगह ढुंढ रहा था तो यह पत्थर दिखा। मैँ इस पत्थर को पलटनेँ की कोशिश ही कर रहा था कि यह लुढ़कते हुये रास्ते के बीच मेँ आ गया। मैँने इसे हटानेँ की बहूत कोशिश की लेकिन अकेले नहीँ हो पाया। इसीलिये मैँ बहूत समय से किसी के आनेँ का इंतजार कर रहा था। और कई घंटे बाद आप आए। आपकी मदद से इसे हटाकर मेरा मन हल्का हो गया। अब मैँ आराम से घर जा सकता हूँ।
*........
Friends इस कहानीँ से हमेँ यह शिक्षा मिलती है कि
(1.) गलती किसी की भी हो सकती है लेकिन जरूरी यह है कि आपनेँ उसे स्वीकारा कि बहाना बनाकर टाल गये और किसी दुसरे का नुकसान कर बैठे। गलती माननेँ से कोई छोटे नहीँ हो जाते।
(2.) बिना जानेँ या बिना प्रमाण के किसी पर आरोप नहीँ लगाना चाहिये क्योँकि बाद मेँ गलती आरोप लगानेँ वाले की भी हो सकती है।
(3.) उपकार भी भावना इंसान को बहूत ऊँचा उठाती है।
.......
आपको यह Story कैसा लगा Please comment के Through जरूर बताइयेगा। And अपनेँ Facebook Friends के साथ जरूर Share(साझा) कीजियेगा।
जल्द ही एक और अच्छे Article के साथ मिलेँगे तब तक आप अपना, अपने Family और Society का ध्यान रखेँ।
धन्यवाद!
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