भारत के मंदिरों से धन लूटने के आधुनिक (सभ्य) तरीका


किसी ज़माने में जब भारत सोने की चिड़िया हुआ करता था तब आक्रान्ता सेना लेकर आते थे तथा भारत के मंदिरों व अन्य धार्मिक स्थलों पर लूटपाट और हत्याएं कर चले जाया करते थे ......

65 वर्ष पूर्व ...तक अंग्रेज़ भी यही कर रहे थे पर आज 21 वीं सदी में लूटपाट करने का तरीका कुछ बदल गया है l

अब तक तो यही समझा जा रहा था की भारत में अब सब कुछ लुट चूका है और अब लूटने के लिए वो अपार दौलत नहीं बची है पर जैसे ही वर्ल्डबैंक/ IMF जैसी अमरीकी संस्थाओं को भारत के मंदिरों में अपार सोना व अन्य कीमती धातु रूप में अपार धन होने खबर मिली वैसे ही भारत में कार्यरत उनके एजेंटों ने उसे अमरीका भिजवाने का कार्य शुरू कर दिया l

सबसे पहले तो जिन मंदिरों में अपार सम्पदा रखी है उन्हें भारत सरकार ने अपने कब्ज़े में ले लिया साथ ही भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर पद पर अपना व्यक्ति आसीन कर दिया l

अब भारतीय बाजारों से डॉलर निकाल कर रुपये की कीमत को जान बूझ कर कम किया गया तथा मीडिया में भ्रम फैलाया गया की यह सब अन्तराष्ट्रीय हालातों के कारण हो रहा है ......

अब रुपये को स्थिर करने के लिए भारतीय मंदिरों का सोना गिरवी रखने की बात फैला दी गयी जिसके बाद मीडिया में यह भ्रम फैलाया गया की यह पैसा देश के काम आ रहा है .......
जबकी ऐसा बिलकुल नहीं है .......क्योंकि सदियों सोने को ही असल धन माना जाता जिसकी वास्तविक कीमत होती है जबकि करंसी नोट के बदले यदि उतने ही मूल्य का सोना नहीं मिलता तो करंसी नोट की कीमत एक कागज़ के टुकड़े से ज्यादा कुछ नहीं होती.....

यह बात अमरीकी कॉरपोरेट्स द्वारा चालित IMF/वर्ल्डबैंक जैसी संस्थाओं को अच्छे से पता है तथा उन्हें यह भी पता है की इसके दम पर भारत अपना पुराना क़र्ज़ उतार स्वयं सामर्थवान हो सकता है ......इसीलिए इस धन को भारत से लेने के लिए यह सब प्लान रचा गया ......

क्योंकि भारत में अव्वल दर्जे के मूर्खों की कोई कमी नहीं जिन्हें यह अर्थशास्त्र की एक मामूली प्रक्रिया नज़र आ रही है क्योंकि वो इन लूटने वाली संस्थाओं द्वारा चालित न्यूज़ चैनलों पर इनके नौकर अर्थशास्त्रियों के व्याख्यान पढ़ते और सुनते हैं ......

अंग्रेजियत में डूबे इन IMF एजेंटों की डिग्रियों के बोझ तले दबे इन मूर्खों को यह समझने की ज़रूरत, बैठे बिठाये हमारा धन तिजोरी से निकल कर गैर की तिजोरी में कभी वापस ना आने क लिए जा रहा है और बदले में हमें कुछ पैसों का एक कागज़ का टुकड़ा थमाया जा रहा है.......

फिर भी इन्हें इसमें कॉमन सेन्स नहीं सिर्फ अर्थशास्त्र और ऐसा करने वालों की डिग्रियां नज़र आती हैं ..... !!!


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Reviewed by deepakrajsimple on January 27, 2014 Rating: 5

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