*शर्म तो आ नहीं रही होगी कांग्रेसियों*
नब्बे के शुरुवाती दशक में जब काश्मीर में आतंकवाद अपने चरम पर था .....
उन दिनों काश्मीर में दो ऐसी घटनाए घटी जिसने ये साफ़ कर दिया की भारत सरकार आतंक और आतंकवादियों को दो तरह के चश्मे से देखती है ......
जिसमे एक चश्मे का रंग कथित सेक्युलर रंग से रंगा है .....
15 अक्टूबर 1993.....काश्मीर के हजरत बल दरगाह पर इस्लामिक कट्टरपंथी आतंकियों के एक ग्रुप में कब्ज़ा जमा लिया ..
ये लोग अत्याधुनिक हथियार से लैस थे ....
आपको बता दें की हज़रत बल दरगाह वो जगह हैं जहाँ हज़रत मोहम्मद साहब का बाल रखा है.......
उन दिनों केंद्र में नरसिम्हा राव की सरकार थी .....
सेना ने केंद्र सरकार से बात की और कहा की एक दिन में मस्जिद खली करावा देंगे ..बस आप आदेश दीजिये .....
लेकिन कांग्रेस सरकार को ये डर था की मस्जिद में गोलाबारी करने से मस्जिद की पवित्रता भंग हो जायेगी ....
भारत का मुस्लमान भडक जाएगा ...वोट बैंक खतरे में आ जाएगा ....
इसी डर से सरकार ने सेना के हाथ बाँध दिए और कई दिनों तक आतंकियों से मिन्नतें की गयी की वो मस्जिद को छोड़कर कर चले जायें.....
करीब दस दिनों तक सरकार और आतंकियों में वार्ता होती रही ..
इन दस दिनों में भारत सरकार ने हर दिन आतंकियों को मस्जिद में कई किस्म का ख़ास भोजन भिजवाया ...बिरयानी भेजवाई ....
इतना ही नहीं......कांग्रेस सरकार ने उनको बाहर निकलकर भाग जाने के लिए सुरक्षित रास्ता भी दिया,.......
सेना चाहती तो उसी दिन आतंकियों से मस्जिद खाली करवा लेती ..
लेकिन सिर्फ भारतीय मुसलमानों को खुश करने के लिए भारतीय सेना को नपुंसक बना दिया गया ..
इस घटना से आतंकियों का मनोबल बढ़ा और महज दो सालों बाद कश्मीर में एक और घटना घटी ..
7 मार्च 1995 को अफगानी आतंकवादी मस्त गुल के नेतृत्व में लगभग 60 आतंकवादियों के एक गुट ने काश्मीर की चरार-ए-शरीफ नाम की दरगाह पर कब्जा कर लिया..
ये दरगाह श्री नगर से मात्र 28 km दूर थी.....
हालांकि अगले ही दिन भारतीय सेना ने दरगाह को चारों ओर से घेर लिया....
लेकिन हमेशा की तरह भारत सरकार ने सेना को किसी भी तरह की कार्यवाही नहीं करने दी और आतंकवादियों से बातचीत करती रही कि आप लोग इस दरगाह को खाली कर दीजिये
कारण वही था ..दरगाह की पवित्रता सेना के दरगाह में घुसने से भंग हो जाती.....
आतंकियों और सरकार में कुल 60 दिनों तक बात चीत हुई ..
इस दौरान भारत सरकार हर रोज़ आतंकियों के लिए 56 प्रकार के शाही व्यंजन और बिरियानी दरगाह के अन्दर पहुचाती रही ..
लेकिन इन 60 दिनों में कोई solution नहीं निकला ...
अंत में भारतीय सेना का धैर्य जवाब दे गया ..."बहुत हुआ सम्मान!!!.....
10 मई 1995 यानी ईद के दिन सेना दरगाह में घुस गयी ...
दोनों तरफ से जम के गोली चली ....आतंकियों को जब लगा की अब क़यामत का दिन आ गया ..
तो उन्होंने कथित पवित्र दरगाह में खुद आग लगा दी .....
इसके बाद जबरदस्त एनकाउंटर हुवा ..
कुल 20 आतंकवादी मारे गये.......2 सैनिक शहीद हुए और 5 नागरिकों की जानें गयी...
मै भारत सरकार से सिर्फ इतना पूछना चाहती हूँ की इस तरह की लम्बी वार्ता क्या तब भी हुई थी जब भिंडरेवाले ने स्वर्णमंदिर पर कब्ज़ा कर लिया था ..
तब तो आप बाकायदा टैंक लेकर और जूते पहन कर अकाल तख़्त तक पहुच गए थे ....
आज डेरा सच्चा सौदा के आश्रम पर भी सेना ने कार्यवाही की है ...
ठीक है अच्छा किया है ..लेकिन क्या कल को इमाम बुखारी जिसके नाम पर 50 से ज्यादा नान बेलेबल वारेंट लंबित है ...
उन्हें गिरफ्तार करने की हिम्मत भी आप जुटा पायेंगे ??
क्या जिस तरह सेना डेरा में घुसी है ...क्या वैसे ही आप जामा मस्जिद में भी घुस पायेंगे ???
चरारे शरीफ और हज़रात बल दरगाह में 60 दिनों तक आतंकियों को बिरियानी खिलाने वाली और स्वर्ण मंदिर में टैंक लेकर घुसने वाली कांग्रेस अब राम रहीम के मुद्दे पर बीजेपी से सवाल पूछ रही है ???..........
शर्म तो आ नहीं रही होगी कांग्रेसियों ?
deepak raj mirdha
yog teacher , Acupressure therapist and blogger
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