हमारे हाथो की पांचों अंगुलिया पंचतत्व की प्रतीक है और इसी सिद्धान्त के हिसाब से भारत मे हाथो से खाना खाने की मान्यता है और जिसकी वजह से शरीर को पंचतत्व का पोषण मिलता है, अलग अलग अंगुली अलग अलग तत्वो को देखती है और उसे तत्व का पोषण करती है
*आकाश - अंगूठा*
*वायु - मध्यमा*
*अग्नि - अनामिका*
*जल - तर्जनी*
*पृथ्वी - कनिष्ठा*
अलग अलग अंगुली के अलग अलग तत्वो के प्रधान गुण है और ये अंगुलिया हमेशा अपने तत्वो से संबंधित जानकारी ही सिर्फ देती है।
अब अंगुलियों की लंबाई को ले कर चल रहे भरम को दूर करेंगे और अंगुलियों को सबसे छोटी से बड़ी अंगुली के क्रम को बताएंगे
*सबसे छोटी कनिष्ठा उसके बाद कनिष्ठ से बड़ा अंगूठा, और अंगूठा से बड़ी अनामिका, और अनामिका से बड़ी तर्जनी और तर्जनी से बड़ी या सबसे बड़ी मध्यम्मा अंगुली होती है।*
*कनिष्ठा अंगुली, तर्जनी की पहली गांठ या पहले पोर के आधार तक कम से कम होनी चाहिए उसके बाद कर्मानुसार बड़ी होनी चाहिए।*
छोटी से बड़ी के क्रम में अंगुलिया
1. कानिष्ठा
2. अंगूठा
3. अनामिका
4. तर्जनी
5. मध्यम्मा
*हस्तरेखा में हथेली पे अलग अलग पर्वत बताये गए है और इन पर्वतो का एक निश्चित गुण धर्म होता है और पर्वत सदैव अपने गुण धर्म के आधार पे ही अपना निश्चित कर्म या कर्म फल देते है।*
*पांच पर्वत अंगुलियों की जड़ो में होते है और बाकी के चार हथेली के किनारों में और मध्य होते है, इन पर्वतो के नाम इस प्रकार है जड़ो में जो पांच पर्वत है वो इस प्रकार है।*
*शुक्र, गुरु, शनि, शुर्य और बुध और बाकी के जो चार पर्वत हथेली में है वो इस प्रकार है मंगल, चंद्र, केतु, मंगल और राहु*
*अब बात करते है इन पर्वतो के तत्वो की, कोनसे पर्वत में कोनसे तत्व के गुण की प्रधानता है और इन पर्वतो का ये तत्व ही आधार है, धर्म है और कर्म है।*
*आकाश तत्व - शुक्र पर्वत और राहु पर्वत*
*वायु तत्व - शनि पर्वत और केतु पर्वत*
*अग्नि तत्व - सूर्य पर्वत और मंगल पर्वत*
*जल तत्व - गुरु पर्वत और चंद्र पर्वत*
*पृथ्वी - बुध पर्वत*
*इन तत्वो की इन ग्रहों में प्रधानता रहती है और सदैव ये तत्व इन पर्वतो को अपने कर्म की और कर्तव्य की और अग्रसर करते रहते है।*
*सभी तत्वो में दूसरे नम्बर में जो पर्वत लिखे है उन पर्वतो में अपने प्रधान तत्व के अलावा कुछ दूसरे तत्व भी मौजूद रहते है जिसकी वजह से इनके कर्मो में थोड़ा परिवर्तन हो जाता है।*
*आकाश तत्व - शुक्र पर्वत और राहु पर्वत*
*वायु तत्व - शनि पर्वत और केतु पर्वत*
*अग्नि तत्व - सूर्य पर्वत और मंगल पर्वत*
*जल तत्व - गुरु पर्वत और चंद्र पर्वत*
*
*आकाश तत्व में दूसरे नम्बर का पर्वत है राहु जिसमे आकाश तत्व के साथ अग्नि की मौजूदगी रहती है जिसकी वजह से इनके गुणों में कुछ बढ़ोतरी हो गयी है।*
*वायु तत्व में दूसरे नम्बर का पर्वत है केतु, जिसमे वायु तत्व के साथ साथ जल की मौजूदगी भी देता है जिसकी वजह से केतु के गुणों में कुछ बढ़ोतरी दिखाई पड़ती है।*
*अग्नि तत्व के दूसरे नम्बर का पर्वत है मंगल, जिसमे अग्नि तत्व के साथ साथ वायु के गुण भी मौजूद है जिसकी वजह मंगल के गुणों में कुछ विशिष्ट नजर आता है।*
*जल तत्व के दूसरे नम्बर का पर्वत है चंद्र, जिसमे जल के गुणों के साथ साथ वायु की मौजूदगी भी है जिसकी वजह से चंद्र के गुण गुरु के गुणों से कुछ अलग दिखाई पड़ते है।*
*अब बात करते है रेखाओं की स्थिति, रेखाओं के नाम और रेखाओं का पंचतत्व से संबंध के विषय मे,*
*कहते है कि रेखाये माँ के गर्भ में ही बनना शुरू हो जाती है सभी मुख्य रेखाओं के साथ ही बच्चे का जन्म होता है।*
*रेखाओं के विषय मे बात करते हुए सबसे पहले बात करेंगे पहले तत्व आकाश तत्व की और जानेंगे कि कोनसी रेखाये आकाश तत्व के अंतर्गत आती है*
*आकाश तत्व प्रथम और रेखाये*
*1. जीवन रेखा*
*आकाश तत्व द्वितीय और रेखाये*
*2. मध्य भाग्य रेखा*
*3. शनि वल्य*
*आकाश तत्व के बाद आगे बढ़ते हुए दूसरे तत्व पे जाएंगे जो है वायु तत्व और वायु तत्व के अंतर्गत कौन कौन सी रेखाये आती है उस विषय पे चर्चा करते है।*
*वायु तत्व प्रथम और रेखाये*
*1. उत्तर भाग्य रेखा*
*वायु तत्व द्वितीय और रेखाये*
*2. पूर्व भाग्य रेखा*
*वायु तत्व के बाद अब चर्चा को आगे बढ़ाते हुए अगले तत्व, अग्नि तत्व पे बात करेंगे और जानेंगे कि वायु तत्व के अंतर्गत कोनसी रेखाये आ रही है।*
*अग्नि तत्व प्रथम और रेखाये*
*1. सूर्य रेखा*
*अग्नि तत्व द्वितीय और रेखाये*
*1. मंगल रेखा प्रथम*
*2. मंगल रेखा द्वितीय*
*अग्नि तत्व के बाद विषय को आगे बढ़ाते हुए चौथे तत्व, जल तत्व की तरफ बढ़ेंगे और जल तत्व के अधीन आने वाली सभी रेखाओं के वर्णन करेंगे।*
*जल तत्व प्रथम और रेखा*
*हर्दय रेखा*
*जल तत्व द्वितीय और रेखा
*मस्तिष्क रेखा*
*चंद्र रेखा*
*गुरु वल्य रेखा*
*जल तत्व के बाद विषय के आखिरी पड़ाव की तरफ आगे बढ़ते हुए पांचवे तत्व, पृथ्वी तत्व पे चर्चा करेंगे और जानेंगे।कि कौन कौन सी रेखाये पृथ्वी तत्व के अधीन आती है।*
*पृथ्वी तत्व और रेखाये*
*विवाह रेखा*
*स्वास्थ्य रेखा*
*पोर और पंचतत्व*
*अंगुलियों के अलग अलग पोर भी अलग अलग तत्व के संबंध को दर्शाता है और पोर की स्थिति को देख कर अंगुली के प्रभाव को पता लगाने में आसानी होती है और फलादेश के क्रम को सटीक तोर पे आगे बढ़ाया जा सकता है*
*सामान्यता अंगुली में तीन पोर और दो गांठ होती है जबकि अंगूठे में दो पोर और एक गांठ होती है।*
*और सभी का संबंध अलग अलग तत्व से होता है।*
*अब बात करते है कि कोनसा पोर और गांठ कोनसे तत्व को देखते है।*
*आकाश तत्व - दूसरी गांठ*
*वायु तत्व - तीसरा पोर*
*अग्नि तत्व - दूसरी पोर*
*जल तत्व - पहला पोर*
*पृथ्वी तत्व - तीनो पोर बराबर होने पे*
*जैसे तर्जनी अंगुली का अगर पहला पोर बड़ा हो तो जातक को जल तत्व संबंधी बहुत अच्छे परिणाम मिलते है*
*हर बार हर जगह तत्व का कर्म निश्चित रहता है ।
रेखाओं और पर्वतो का रेखा संबंध या निशान से क्या फल मिलेगा।
आकाश तत्व - उतावलापन
वायु तत्व - चंचलता
अग्नि तत्व - जोश
जल तत्व - धैर्य
पृथ्वी तत्व - स्थिरता
अगर हर्दय रेखा का सूर्य पर्वत या सूर्य रेखा से संबंध है तो हर्दय रेखा के साथ जोश की भावना और जुड़ जाएगी।
अलग अलग तत्वो का क्या कर्म है जो संक्षेप में बता रहा हूँ अभी तो
आकाश तत्व - आडंबर
वायु तत्व - मोह
अग्नि तत्व - अहंकार
जल तत्व - ज्ञान
पृथ्वी तत्व - शोध
कोनसा तत्व कोनसी दिशा में योग्यताएं देता है
आकाश तत्व - शुद्ध गृहणी
वायु तत्व - शुद्र कर्म करने वाले
अग्नि तत्व - क्षत्रिय कर्म करने वाले
जल तत्व - ब्राह्मण कर्म करने वाले
पृथ्वी तत्व - व्यापार कर्म करने वाले
*अग्नि तत्व की हथेली का आकार*
*अग्नि तत्व की हथेली आकार में चोड़ी होतीं है और देखने से ऐसा प्रतीत होता है कि हथेली और अंगुलिया छोटी है, हथेली को देखने के साथ ही हाथ की चौड़ाई साफ साफ नजर आती है।*
*यंहा पे सिर्फ आकार की बात कर रहा हूँ हाथो की चमड़ी और रंग इसके बाद का विषय है।*
*अग्नि तत्व की हथेली के आकार वाले जातको में बहुत ज्यादा ऊर्जा होती है, बहुत ज्यादा जोश और जुनून होता है, गुस्सा भी ज्यादा आएगा, नेतृत्व की भी बहुत अच्छी क्षमता होती है, ऐसे जातक बहुत मेहनती होते है, पुरुषार्थ ही इनका कर्म और धर्म होता है, इनके हर सोच में मेहनत सबसे ऊपर होती है ऐसे लोगो का मानना होता है मेहनत करेंगे तो सफल ही होंगे, ऐसे जातक उतावले भी बहुत होते है, और किसी के साथ भी अगर कुछ गलत हो रहा हो इन्हें बर्दास्त नही होता और बीच बचाव में पढ़ जाते है।*
*अग्नि तत्व की हथेली के आकार वाले लोग बहुत निडर और साहसी होते है, डर किस चिड़िया का नाम होता है इन्हें नही पता होता है, बहुत सुरवीर और पराक्रमी भी होते है, किसी के अधीन रह कर ये काम नही कर पाते है, ये खुद को राजा की तरह समझते है, खेलकुद में और पंचायती के कामो में हमेशा आगे ही रहते है।*
*अग्नि तत्व की हथेली के आकार वाले जातको खाने पीने के बहुत शौकीन होते है या यूं कहु की खाने पीने में थोड़े पेटू होते है, खाने में तीखा, मिर्च मसाला और खट्टे खाने को बड़े चाव से खाते है।*
*अग्नि तत्व वाले जातको का असमय बाल पक जाने से कम उम्र में बाल सफेद हो जाते है या बाल पतले हो कर झड़ने लगते है, ऐसे जातको की तीक्ष्ण जठर अग्नि होती है जिसकी वजह से इन्हें बार बार भूख लगती रहती है और खाते पीते रहते है, गर्मी बहुत ज्यादा लगती है, पसीना ज्यादा आता है और पसीने में दुर्गंध भी आती है, गर्मियों में ऐसे जातको को घमौरियों और एलर्जी से भी परेशांनी रहती है।*
*ऐसे जातक पढ़ने में बहुत अच्छे होते है, खेलकुद में भी बहुत अच्छे होते है, लीडरशिप के लिए हमेशा आगे रहते है, राजनीति में भी बहुत अच्छे होते है ऐसे जातक इसके अलावा जिस फील्ड में जाते है उस फील्ड में बहुत जल्दी अपना नाम बना लेते है।*
*अब आकार के अलावा चमड़ी के रंग और प्रकार, अंगुलियों की लंबाई, पोरो की लंबाई, नाखून, पर्वत और रेखाये, शुभ अशुभ निशान भी मिला कर फलादेश किया जाता है और प्रकृति की प्रधानता को निश्चित करने में आसानी होती है।*
Hr. deepak raj mirdha
yog teacher , Acupressure therapist and blogger
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अंगुलियां और ज्योतिष
Reviewed by deepakrajsimple
on
October 27, 2017
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