संभव की सीमा जानने का केवल एक ही तरीका है, असंभव से आगे निकल जाना। आप जैसे विचार रखेंगे वैसे ही हो जाएंगे, यदि अपने आपको निर्बल मानेंगे तो निर्बल और समर्थ मानेंगे तो समर्थ हो जाएंगे।
जहाज सबसे सुरक्षित तब होता है, जब वह किनारे खडा होता है लेकिन खड़े रहना जहाज का स्वभाव नहीं है। इसी प्रकार युवाओं में असीमित संभावनाएं हैं, आवश्यकता है अपने आप को पहचानने की और लक्ष्य निर्धारित कर उसपर कार्य करने की ! आप देखेंगे कि जिन्दगी आपका स्वागत करने तैयार है।

सोच से संभावनाओं तक का सफ़र हौसलों से होकर गुजरता है।
"राह संघर्ष की जो चलता है, वह ही संसार को बदलता है।
जिसने रातों से जंग जीती, सूरज बनकर वही निकलता है।"
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Reviewed by deepakrajsimple on August 17, 2018 Rating: 5

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