हिंदुओं को जरूरत है सिद्धों की .....
इस शीर्षक का आधार पॉलिटिकल है।
पिछले कई सालों से देख रहा हूँ, हिन्दू को उसके श्रद्धा को ले कर शर्मिंदा करने का धंधा ज़ोरों पर है। हर सुविद्य हिन्दू के लिए अपने educated होने का प्रमाण होता है अपने धर्म का उपहास करना। पंडित, पूजापाठ, पूजा विधि, पद्धति, मंत्र, स्तोत्र, सब कुछ का मज़ाक उड़ाना । उन्हे अवैज्ञानिक साबित करके ही उनकी विज्ञाननिष्ठा प्रमाणित होती है ।
ये अलग बात है कि जब भी कोई संकट आता है तब इन्हें आप वही सब कुछ करते देख सकते हैं । लेकिन यह नोट न इनको कोस रही न ही श्रद्धा की झंडाबरदारी कर रही । जरा गौर से देखते हैं कि यह सुविद्य हिन्दू को उसके धर्म को ले कर शर्मिंदा करने में सब से अग्रसर कौन है? बहुत दूर ढूँढना जरूरी नहीं होगा, ये वही है जिनपर आप को भी शक आया ही होगा। जी वही - सेंट 420 हाइ स्कूलों के प्राचार्य और शिक्षक वर्ग । कॉलेज में भी सेंट 420 कॉलेज कम नहीं हैं।
और तो और, कोलेजोंमें वामपंथी भी अपनी @#यापंथी में आप को लपेटने तैयार ही रहते हैं। हिन्दू लड़के को अपने श्रद्धा को ले कर हीनताग्रंथि अगर हो जाये तो समझ सकते हैं। ऊपर से जब पोंगा पंडित और ढोंगी साधुओंसे पाला पड़ जाये तो धर्म से नफरत भी होने लगती है । यह भी अस्वाभाविक नहीं है । कुल मिलाकर अगर यह सुविद्य हिन्दू नास्तिक नहीं बना तो कम से कम अश्रद्ध तो जरूर हो जाता है। यह भी स्वाभाविक है ।
लेकिन इस पूरे प्रक्रिया के दौरान वो हिन्दू एक बार भी यह देखता या पूछता नहीं कि उसे अपने धर्म के प्रति हीनता का अनुभव करानेवाले यही सेंट 420 हाइ स्कूलों के ईसाई शिक्षकवर्ग का आस्था तथा श्रद्धा के बारे में क्या रवैया है? क्या वे बाइबल के चमत्कार ढकोसला मानते हैं ? या फिर कर्ण को ले कर कुंती पर कुटिल मुस्कान देनेवाले यह ईसाई ईसा के जन्म को ले कर ऐसे ही सवाल उठाए तो कैसे पेश आते हैं ? क्या हिन्दू साधुओंका उपहास करनेवाले ईसाई, Miracles करनेवाले स्थानीय और विदेशी Pastors, Brothers और sisters को भी उसी नजर से देखते हैं या नहीं ? या फिर तेरा वो ढकोसला, मेरा वो चमत्कार वाला ही रवैया है इनका, क्या नहीं?
फिल्मों में हिन्दू मान्यताओं का ही मज़ाक उड़ाया जाता है, कभी दरगाह को या चर्च को, पीर को या पादरी को निशाने पर लिया गया है कभी? संतों पर फब्तियाँ कसनेवाले कभी पीर और सेंट्स पर क्यों मुंह नहीं खोलते ? और अपने ही धर्म को शर्मिंदा करने में मज़े लेते ये एजुकेटेड हिन्दू, कभी इनको ये सवाल क्यों नहीं पूछते ?
उत्तर ये होगा कि ये सुविद्य हिन्दू inferiority complex से इतना मारा रहता है कि वो ये कभी समझ पाता ही नहीं । और अगर कभी समझा भी होगा तो पूछने की हिम्मत नहीं । सेंट 420 से निकालबाहर कर दिया तो माँ बाप की इज्जत मिट्टी में। तगड़ी फीस भरी वो गई । अच्छे कॉलेज में दाखिला डांवाडोल ! चुप रहना ही बेहतर !
अब आप ये प्रश्न करेंगे कि उसको कन्वर्ट तो नहीं किया तो फिर आप को क्या आपत्ति है? इसका उत्तर भी देना जरूरी है । ये जानते हैं कि धर्मांतरण की मुहिम समझ में आएगी, विरोध होगा, इसलिए इनका फॉर्मूला अलग होता है - जो हमारा नहीं हो सकेगा उसे हम तुम्हारा भी नहीं होने देंगे । यह हीनताग्रंथि का आरोपण इसी के तहत एक सोची समझी लॉन्ग टर्म साजिश है ।
और एक लॉन्ग टर्म साजिश - ऐसे इन सेंट 420 संस्थाओं से अभिभूत हिंदुओं से ये संस्थाएं हमेशा डोनेशन के लिए पीछे पड़ी रहती है। जैसे ही ये कमाने लगे, ओल्ड बॉयज गेट टुगेदर के नाम से हर साल आमंत्रण आते हैं । वहाँ स्वागत होता है और संस्था की योजनाओं में योगदान का आग्रह जरूर किया जाता है । जो सरकारी पदों पर जाते हैं उनसे सामाजिक कार्य के नामों पर जमीन वगैरे के मामले में सहयोग मांगा जाता है । ऐसे सहयोग करनेवाले हाकिमों को कभी पूछ कर देखिये कि उन्होने कभी हिन्दू संस्थाओं को भी ऐसा सहयोग किया है ? या क्या इन ईसाई संस्थाओं में कभी अनाचार या फिर धर्मांतरण के काम होते नहीं ? जिस तरह से वे समर्थन में दलीले देंगे, इन संस्थाओं को खुद के बचाव के लिए लोगों की जरूरत नहीं होती । रखते हैं फिर भी वो भी highly paid लोगों को !
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अब आते हैं शीर्षक के मुद्दे पर। क्यूँ हिंदुओं को सिद्धों की जरूरत है और इसका पॉलिटिकल आधार क्या है ?
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मनुष्य आम तौर पर श्रद्धालु होता है। भारतीय मनुष्य और उसमें भी विशेषकर हिन्दू, कुछ ज्यादा ही श्रद्धालु होते हैं। लेकिन हिन्दू की श्रद्धा रोकड़ी , "चमत्कार को ही नमस्कार" वाली होती है। उसे हमेशा ठगे जाने का डर रहता है कि जिसे धन चढ़ा रहा है वो भगवान या गुरु सही है या नहीं । बिना वांछित चमत्कार के वो दूसरी दुकान ढूँढता है । घर के मंदिर में रिज़ल्ट न मिला तो दूसरा ढूंढो । बाबा ढूंढो । दरगा ढूंढो, चर्च ढूंढो ।
खतरा यही है । यह दुकान चंगाई वाले ईसाई ठग कि या कोई झाड फूँकवाले कसाई की भी हो सकती है। और वहाँ जो गया, वहीं का हो गया ! ये चंगाईवालों को ले कर मुझे हमेशा यह खयाल आता है। कई विडियो देखे हैं उनके । थरथर कांपती कोई बीमार हिन्दू महिला आती है फिर वो पादरी उस पर पानी छिड़कता है । पाँच दस मिनट के नाटक के बाद वो ठीक हो जाती है । एक दक्षिण का विडियो था उसमें येशु के नाम से पिशाच् उतारा जा रहा था। दक्षिणी फिल्मों में हमेशा loud acting होती है। यह बाधित महिला अपवाद न थी। तो मेरा खुराफाती खयाल ये है कि उस स्टेज पर दस बड़े चूहे, चार पाँच छिपकलियाँ और एक नाग भी छोड़ देना चाहिए। बिना जादू टोने के ही वो अपेक्षित चमत्कार होते दिखाई देगा, महिला टनाटन कूदते भागेगी - चमत्कार ! https://www.facebook.com/URTSAM.TV/videos/10206476661498490/
हिन्दू अंधश्रद्धा पर करारा प्रहार करनेवाले ये लोग कभी इनके पास गए दिखाई नहींं दिये । उनकी "बेबाक और निस्वार्थ समाजसेवा" पर फिर कभी ।
तो मुद्दा यह है कि ये विधर्मी हिन्दू को बकरा बना रहे हैं, धर्मांतरण के धंधे में। इसीलिए अपने भाइयों को इन भेड़ियों से सुरक्शित रखने के लिए ऐसे सिद्धों की जरूरत है जो वास्तव में कुछ जानते हैं। ज्ञान वो भी होता है, ज्ञानी ही कम है, लुटेरे पोंगे ही ज्यादा मिल जाते हैं। लेकिन आज ज्ञाता सिद्धों की हिंदुओं को और पर्याय से हिंदुस्तान को सख्त जरूरत है।
क्यों ? क्योंकि देश की जमीन यही अपनी जगह रहेगी लेकिन अगर हिन्दू न बचे तो अपना यह देश हिंदुस्तान नहीं रहेगा । इस नोट की पॉलिटिकल पृष्ठभूमि यही है । और हाँ, Love Jihad में भी ये काम आएंगे । जिनके घरों से बेटियों का शिकार हुआ है, मेरी इस बात से सहमत होंगे । मुझे पूरा पता है कि कोई वामी इस पोस्ट पर, या फिर जो हिन्दू भाई बहन इसे शेयर करेंगे, वहाँ बवाल काटने या गंद मचाने आएंगे। उनका इंतज़ार है । ईसाई या कसाई नहीं आएंगे, बेनकाब नहीं होना चाहते, धूर्त होते हैं । वे उकसाएँगे इन हिन्दू नामधारी कौमनष्टों को ही । अगर आप ने यह नोट शेयर किया है और आप को ये प्राणी अगर परेशान कर रहे हैं तो मेरे वाल पर भेज दीजिये।
उम्मीद है आप ने मेरे भाव को समझ लिया है । चर्चा का स्वागत है, और बात रास आए तो शेयर करने की बिनती भी है । यह देश हिंदुस्तान ही बना रहे इसलिए इतना तो करें।
Hr. deepak raj mirdha
yog teacher , Acupressure therapist and blogger
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Reviewed by deepakrajsimple
on
April 21, 2018
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