वीरांगना विदूषी रानी कैकेयी की जीवन गाथा



रानी कैकेयी का जन्म कैकेया राज्य में हुआ, रानी कैकेयी कैकेया नरेश राजा अश्वपति की पुत्री थी,  रानी कैकेयी का नाम उनके राज्य यानि कैकेया के नाम पर पड़ा । रानी कैकेयी सात भाइयों की एकलौती बहन थी. वह वेदादि शास्त्रों की ज्ञाता और अस्त्र शस्त्र में निपुण थी । कैकेयी बचपन से ही मातृ प्रभाव के बिना रही है. कैकेयी के पिता ने कैकेयी की माँ को अपने महल से बाहर कर दिया था, जब उन्हें पता चला कि उसकी माँ का स्वभाव सुखी परिवार के लिए अनुकूल नहीं है. इसके अलावा, इनके पिता अश्वपति को एक वरदान मिला था कि वे पक्षियों की भाषा समझने में सक्षम है ॥

एक दिन राजा और उनकी रानी अपने महल के उद्यान में टहल रहे थे, तभी राजा ने दो हंसों के जोड़ों को आपस में बात करते सुना. उनकी बातों से राजा बहुत ही खुश हुए और दिल से हँस पड़े जिससे उनकी पत्नी की जिज्ञासा बढ़ने लगी. तथ्य यह था कि राजा अश्वपति को अपने जीवन को खोने के बारे में पता चल गया था और वे इसका खुलासा उनके सामने नहीं कर सकते थे. उनकी पत्नी राजा की ख़ुशी का कारण जानने के लिए आतुर थीं. जब राजा को यह पता चला कि उनकी पत्नी को उनके जीवन और भलाई की कोई परवाह नहीं है तो उन्होंने उनको अपने घर से बाहर कर दिया. इसके बाद कैकेयी ने अपनी माँ को दोबारा कभी नहीं देखा. और फिर कैकेयी की देखभाल उनकी दासी मंथरा ने की. वह दरबार में अपने स्टेटस को आगे बढ़ाने के लिए योजनायें बनाया करती थी. इस तरह रानी कैकेयी का बचपन और शुरूआती जीवन व्यतीत हुआ.

रानी कैकेयी का विवाह
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एक बार अयोध्या के राजा दशरथ को कैकेया नरेश अश्वपति ने अपने महल में आमंत्रित किया. उनके स्वागत के लिए सभी महल के द्वार पर उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे. उनकी युद्ध कौशल और महानता की चर्चाएँ सभी जानते थे, सभी उनके एक दर्शन मात्र के लिए आतुर थे ॥

क्योंकि राजा दशरथ राजा हरिशचन्द्र जैसे महान राजाओं के समान महान थे. उनकी देखरेख के लिए रानी कैकेयी खुद लगी हुई थीं. जब राजा दशरथ की नजर रानी कैकेयी पर पड़ी, तब वे उनसे बहुत प्रभावित हुए. उन्होंने उनसे शादी करने की इच्छा जताई. किन्तु इनके पिता को इनके शादी शुदा होने के कारण यह मंजूर नहीं था. फिर राजा अश्वपति ने राजा दशरथ से एक वचन माँगा कि रानी कैकेयी का पुत्र ही अयोध्या का उत्तराधिकारी बनेगा. राजा दशरथ की पहली पत्नी कौशल्या का कोई पुत्र नहीं था तो उन्होंने यह वचन ऐसे ही दे दिया. इसके बाद अयोध्या के राजा दशरथ से रानी कैकेयी की शादी हो गई, किन्तु शादी के बाद वे भी माँ ना बन सकी. इसके बाद राजा दशरथ की शादी सुमिंत्रा से हुई जोकि काशी के राजा की पुत्री थी. किन्तु वे भी माँ नहीं बन सकी फिर परिणाम यह निकला कि राजा दशरथ पिता नहीं बन सकते थे. राजा दशरथ के कोई भी पुत्र न होने कारण वे बहुत दुखी रहते थे. इसके लिए एक बार एक यज्ञ का आयोजन किया गया, जिससे बाद रानी कौशल्या का सबसे बड़ा पुत्र राम हुआ इसके बाद रानी कैकेयी का पुत्र भरत हुआ और फिर रानी सुमिन्त्रा को दो पुत्रों की प्राप्ति हुई जोकि लक्ष्मण और शत्रुघ्न थे. इस तरह राजा दशरथ को चार पुत्रों की प्राप्ति हुई.

रानी कैकेयी को राजा दशरथ द्वारा दिये गए वचन

रानी कैकेयी राजा दशरथ की सबसे प्रिय पत्नी थीं. राजा दशरथ कैकेयी के सौन्दर्य और साहस के कायल थे. कैकेयी सौन्दर्य की धनी होने के साथ – साथ युद्ध कौशल की भी धनी थी. वे राजा दशरथ के साथ युद्ध में भी उनका साथ देने जाती थी. एक बार देवराज इंद्र सम्बरासुर नामक राक्षस से युद्ध कर रहे थे किन्तु वह राक्षस बहुत ही बलशाली था. उसका सामना कोई भी देवता नहीं कर पा रहे थे. ऐसे में वे राजा दशरथ के पास सहायता के लिए गए. तब राजा ने उन्हें सम्बरासुर से युद्ध करने के लिए आश्वाशन दिया और वे युद्ध के लिए जाने लगे, तभी रानी कैकेयी भी उनके साथ जाने के लिए इच्छा जताने लगी ॥

 राजा दशरथ भी रानी कैकेयी को अपने साथ युद्ध में ले गये. युद्ध की शुरूआत हो गई. युद्ध के दौरान एक बाण राजा दशरथ के सारथी को लग गया, जिससे राजा दशरथ थोड़े से डगमगा गए. तब इनके रथ की कमान रानी कैकेयी ने सम्भाली. वे राजा दशरथ की सारथी बन गई. इसी के चलते उनके रथ का एक पहिया गढ्ढे में फंस गया. सम्बरासुर नामक राक्षस लगातार राजा दशरथ पर वार कर रहा था, जिससे राजा दशरथ बहुत अधिक घायल हो गए. यह देख रानी ने रथ में से उतर कर जल्दी से रथ के पहिये को गढ्ढे से बाहर निकाला और खुद ही युद्ध करने लगी. वह राक्षस भी उनके पराक्रम को देखकर भयभीत हो गया और वहाँ से भाग गया. इस तरह रानी कैकेयी ने राजा दशरथ के प्राणों की रक्षा की. राजा दशरथ भी रानी कैकेयी से बहुत प्रभावित हुए उन्होंने रानी कैकेयी को अपने दो मनचाहे वरदान मांगने को कहा. रानी कैकेयी ने राजा दशरथ से कहा कि – "आपके प्राणों की रक्षा करना यह तो मेरा कर्तव्य है." किन्तु राजा ने उन्हें फिर भी वरदान मांगने को कहा. रानी ने कहा कि –"अभी मुझे कुछ नहीं चाहिए इन 2 वरदानों की आवश्यकता भविष्य में जब कभी पड़ेगी तब मैं मांग लूँगी". तब राजा दशरथ ने उन्हें भविष्य में दो वरदान देने का वादा कर दिया.  

रानी कैकेयी की रामायण में भूमिका
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 यह निम्न चरणों के आधार पर है - १.राम का जन्म और उनका विवाह २.मंथरा द्वारा कैकेयी को भड़काना ३.कैकेयी का कोप भवन ४.राम का वनवास ५.राजा दशरथ की मृत्यु ६.कैकेयी का पश्चाताप।

(१. ) राम का जन्म और विवाह 
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राम, रानी कौशल्या के पुत्र थे. ये राजा दशरथ के सबसे बड़े पुत्र थे. राम, रानी कैकेयी और राजा दशरथ के सबसे प्रिय पुत्र थे. वे सबसे अधिक प्रेम राम से ही करते थे. छोटे से रानी कैकेयी ने राम पर अपना अधिकार जताया. राम भी रानी कैकेयी के सबसे ज्यादा करीब थे, वे उनकी हर बात मानते थे. मिथला के राजा जनक की पुत्री देवी सीता के स्वयंवर में राम ने भगवान शिव का धनुष तोड़ कर सीता से विवाह किया. साथ ही राजा दशरथ के चारों पुत्रों का विवाह मिथला की राजकुमारियों के साथ सम्पन्न हो गया ॥

(२.) मंथरा द्वारा कैकेयी को भड़काना
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रानी कैकेयी के पिता का स्वास्थ्य खराब होने के कारण उन्होंने भरत से मिलने की इच्छा जताई. रानी कैकेयी के भाई युद्धाजीत ने राजा दशरथ से भरत को कैकेया आने के लिए कहा. तब भरत और शत्रुघ्न दोनों ने कैकेया के लिए प्रस्थान किया. राजा दशरथ ने उसी समय राम को अयोध्या का उत्तराधिकारी बनाने का निर्णय लिया, जिससे सभी बहुत खुश हुए. रानी कैकेयी भी इस बात से बहुत खुश हुईं, किन्तु रानी कैकेयी की दासी मंथरा को यह पसंद नहीं आया. उसने रानी कैकेयी को इस बात पर खुश देखकर ईर्ष्या जताई. उसने रानी कैकेयी को भड़काना शुरू कर दिया ।

मंथरा ने रानी कैकेयी से कहा कि –"राजा दशरथ अपने वचन से मुकर रहे है उन्होंने तुम्हारे पिता को यह वचन दिया था कि तुम्हारा पुत्र उनका उत्तराधिकारी बनेगा, फिर वे कौशल्या के पुत्र को राजा कैसे बना सकते हैं". यह सुनकर रानी मंथरा पर बहुत क्रोधित हुई. मंथरा रानी कैकेयी से कहने लगी कि –" कैकेयी आप बहुत भोली हैं, आप राजा दशरथ का छल नहीं समझ पा रही हैं". इस तरह मंथरा रानी कैकेयी को भड़काती रही. उसने रानी कैकेयी से राम को वनवास भेजने के लिए कहा. फिर धीरे- धीरे रानी कैकेयी मंथरा की बातों में आने लगी. फिर उन्होंने इस विषय पर मंथरा से सलाह ली कि अब उन्हें क्या करना चाहिए. तब मंथरा ने उन्हें राजा दशरथ द्वारा दिए गए दो वचनों के बारे में कहा. रानी कैकेयी को सब समझ आ गया कि उन्हें क्या करना है ॥

(३.) रानी कैकेयी का कोप भवन
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रानी कैकेयी ने अन्न – जल सब का त्याग कर दिया और कोप भवन में चली गई. राजा दशरथ राम के राज्याभिषेक के लिए बहुत खुश थे सारा महल खुशियाँ मना रहा था. यह ख़ुशी राजा अपनी प्रिय पत्नी कैकेयी से बाँटना चाहते थे और वे इसके लिए कैकेयी के कक्ष में जाते है. वहाँ जाकर कैकेयी की अवस्था देखकर वे उनसे उनकी व्यथा के बारे में पूछते है. कैकेयी उनकी बात का कोई जवाब नहीं देती. तब राजा उन्हें बताते है कि आज उन्होंने राम का राज्याभिषेक करने का फैसला लिया है. फिर भी कैकेयी कुछ नहीं कहती है. राजा द्वारा फिर से पूछे जाने पर कैकेयी उनसे कहती है कि -"आप अपने दिए हुए वचनों से कैसे मुकर सकते है? आपने मेरे पुत्र को उत्तराधिकारी बनाने का वादा मेरे पिता से किया था फिर आप राम को राजा कैसे बना सकते है"॥

यह सुनकर राजा चौंक जाते है, और कैकेयी को बहुत समझाते है किन्तु कैकेयी फिर भी नहीं मानती. राजा दशरथ भी अपने फैसले पर अडिग रहते है तब रानी उनके द्वारा दिए गए दो वरदान मांगने को कहती है. राजा दशरथ वरदान देने का वादा कर चुके होते है तो वे इससे पीछे भी नहीं हट सकते थे. रानी कैकेयी उनसे कहती है कि – "मेरा पहला वर है मेरे पुत्र भरत का राज्याभिषेक, और मेरा दूसरा वर है राम को चौदह वर्ष का वनवास". यह सुनकर मानों राजा के पैरों तले जमीन ही खिसक गई हो. वे इससे बहुत अधिक दुखी होते है ।

(४.) राम का वनवास
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रानी कैकेयी के इन वचनों को सुनकर राजा दशरथ मानसिक तौर पर अत्यंत दुखी हो जाते है और उनके इन वचनों को मानने से इंकार कर देते है. रानी कैकेयी उनसे कहती है कि –"यह रघुकुल की रीती है कि प्राण जाये पर वचन न जाये, आप अपने वचनों से पीछे नहीं हठ सकते". इस तरह राजा दशरथ को उनके द्वारा देये हुए वचनों का पालन करना ही पड़ा. राम भी मर्यादा पुरुषोत्तम थे. इसलिए वे रघुकुल की रीती की रक्षा के लिए और अपने माता -पिता की आज्ञा का पालन करने के लिए वनवास जाने को तैयार हो जाते हैं. इस तरह राम को वनवास हुआ और वे अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ वन की ओर चल दिए.

(५.) राजा दशरथ की मृत्यु
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राजा दशरथ का राम के प्रति प्रेम सबसे अधिक था, जिसके कारण वे उनका वियोग सहन न कर सके. उन्होंने राम को बहुत रोकने की कोशिश की किन्तु राम ने उनके वचनों का मान रखने के लिए उनकी एक न सुनी और वे वन की ओर प्रस्थान कर गए. कुछ समय पश्चात राजा दशरथ ने राम से विरोग के चलते अपना देह त्याग दिया और उनकी मृत्यु हो गई. इसकी सूचना जब भरत को मिली तब वे रानी कैकेयी पर बहुत अधिक क्रोधित हुए और उन्होंने अपनी माता का त्याग कर दिया. भरत अपनी माता के किये पर बहुत दुखी था क्यूकि वे राम से बहुत अधिक प्रेम करता था. उसने राम को वापस अयोध्या लाने के लिए अपने मंत्रियों से उन्हें ढूंढने को कहा.

(६. ) कैकेयी का पश्चाताप
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रानी कैकेयी, अपने पुत्र भरत द्वारा कहे गए कटु वचनों से बहुत आहत हुई और उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ. किन्तु भरत ने उन्हें अपनी माता कहलाने से वंचित कर दिया. जब भरत को पता चला कि राम चित्रकूट में है, तब अयोध्या के सभी लोग उन्हें वापस लेने के लिए चित्रकूट की ओर चल दिए. वहाँ पहुँच कर जब राम को उनके पिता की मृत्यु के बारे में पता चला तो वे बहुत दुखी हुए. रानी कैकेयी अपने किये पर पछताती रही. उन्होंने राम से उनके किये के लिए माफी मांगी, और उनसे वापस अयोध्या चलने के लिए कहने लगी किन्तु राम ने अपने पिता के वचनों का पालन करने के लिए उनकी बात न मानी और वे वन में ही भ्रमण करते रहे और सारे अयोध्या वासियों को वापस जाने के लिए कह दिया. भरत ने भी राजगद्दी पर न बैठ कर राम के चरण पदुकाओ को सिंहासन पर रखा. इस तरह रानी कैकेयी ने अपने किये का पश्च्याताप किया, और राम को वनवास भेजने के कारण ही रानी कैकेयी की रामायण की कथा में अहम भूमिका रही।



Hr. deepak raj mirdha
yog teacher , Acupressure therapist and blogger
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वीरांगना विदूषी रानी कैकेयी की जीवन गाथा वीरांगना विदूषी रानी कैकेयी की जीवन गाथा Reviewed by deepakrajsimple on January 18, 2018 Rating: 5

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