भारतीय बैंकर जगत सेठ


 "जगतसेठ" आपने केवल इस शब्द को ही सुना होगा? पर आज हम इस शब्द का पुरा वर्णन करेंगे जो इस प्रकार हैं?

"जगतसेठ" यह एक उपाधि हैं जिसे मुगल सम्राट ने दी थी. जगतसेठ उस धनवान समुदाय का सरगना होता था जो बडे-बडे रजवाडो से लेकर गाँव के जमींदार को ब्याज पर फाईनेंस करता था.
इन ग्लोबल व्यापारीयों का सदीयों पुराना सपना था की असली राज्यकर्ताओं को हटा कर हम व्यापारी अपने चुने हुए प्यादों द्वारा दुनिया पर राज करे.....

"सिच्टेर्मन" नाम के एक निर्देशक ने '1744' में लिखा था कि-
"जगतसेठ फतेहचंद हिन्दुस्तान के सबसे बडे बैंकर थे पुरे राज्य में
उनका बिजनेस था. वे शासन के काम में हिस्सा नहीं लेते थे फिर भी उसका राज्य के सभी कामों पर दिखता था "

जगतसेठ का मतलब होता हैं- "पुरी दुनिया का सेठ या पुरी दुनिया का बैंकर" ये ओसवाल जैंन थे. और इन जैंनों को जगतसेठों का टाईटल दिल्ली बादशाह ने दे रखा था......

जगतसेठों के बारे में "आधुनिक भारत का आर्थिक इतिहास" पुस्तक के लेखक 'धनपति पाण्डेय' लिखते हैं की- राजस्थान
के मारवाडी 1750 के बाद महाराष्ट्र में इन्होने अपना निवास स्थान बनाया व वहा के व्यापार को प्रभावित करने लगे. ये किमती वस्तुओं का व्यापार करते थे.इनमें बंगाल के जगतसेठ प्रमुख थे. पुरे बंगाल का व्यापार इन जगतसेठों के हाथ में था. ऎसा उल्लेख मिलता हैं कि जब अलिवर्दी खाँ बंगाल का नवाब था तब इन जगतसेठों के पास 10 करोड की
पुँजी थी, मराठों ने उन पर आक्रमण करके उनस्व 2 करोड रूपये हथिया लिये थे पर उन पर इस लूट का लेशमात्र भी फ़र्क नही पडा......

जगतसेठ मारवाड के थे..ये व्यापारी आधुनिक बैंक के सभी काम करते थे........

वे रकमें जमा करते थे.. ऋण देते थे.. और हुण्डिया जारी करते थे..
इन व्यापारीयों का संबन्ध सभी राजा-म\हाराजाओं व बादशाहो से था व अंग्रेजों से तो इनका बडा जोर-दार गठबन्धन था......

According to Nick Robins- "The Jagatseths were
unrivelled in Northern India for their financial power
known as Banker of the World. This Marwari Family
had build up forminadable economic resources on
the back of its control of the Imperial mint and
extensive money lending. They wielded this
financial clout at the Bengali Court and were judged
to be "The Chief cause of revolutions in Bengal by a
French commentator at the time."
बंगाल में नवाब सिराजुद्दौला के समय मुर्शिदाबाद के जगतसेठ प्रसिद्ध थे उस वक्त इनके गुरु जैन आचार्य श्री भातृचंद्रसूरी थे.. 18 वी सदी के मध्यांत मेम ये शक्तिशाली बैंकर थे........

Roben Orme (official Historian Of East India
Company ) द्वारा जगतसेठों को Money Changer (मुद्रा
परिवर्तक) व Banker of the known World कहाँ जाता था..
इन जगतसेठों के कारण ही हिन्दुस्तान में अंग्रेजो का
शासन आया था क्योकी इन्होने राँबर्ट क्लाईव की सहायता करके सिराजुद्दौला के मीर ज़ाफ़र को अपने साथ मिला दिया था जिससे बंगाल ने मीर ज़ाफ़र के कारण हार मान ली व बंगाल पर अंग्रैजों का अधिकार हो गया और जगतसेठ अपने मन मुताबिक लोगो से कर लेने लगे व उन्हे रोकने वाळा कोई नही था
क्योकी स्वयं अंग्रैज भी
उन्ही के द्वारा लाए गऎ थे व अंग्रेजों को भी उन्होने ऋण दे रखा था.......

बंगाल के धनी बैंकर 'फ़टेहचंद' को 'मुहम्मद शाह' ने 1723 में जगतसेठ की उपाधी दी थी.. इन जगतसेठों के बिजनेस हाउस को
माणीखचंद ने बनाया था व इस बिजनेस हाउस का कार्य
"बैंक औफ इंगलेण्ड" के समतूळ्य़ था.........

थोमस ए. टींबर्ग व गुरूचरण दास द्वारा लिखित - "The
Marwari's = From Jagat Seth to the Birlas (The
Story of Indian Business)" को देखने पर भी
यही ज्ञात होता हैं की जगतसेठो ने
अपने आप को मारवाडी बताया हैं व मारवाड में जगतसेठ
जैंन ही होते हैं..इन जैंन महाजनों नें हमारे पुर्वजों पर अनंत अत्याचार किये हैं और आज ये देख के बहुत अफ़सोस होता हैं की उन्ही की संताने इन महाजन जैंनों की वाहवाही करती नही
थकती..12वी कक्षा की एक पुस्तक में महाजनों के बारे में बताया गया हैं की- किसानों से अत्यधिक लगान लिया करते थे.. जब किसान लगान नही चुक पाता था तब इन महाजनों से ऋण लेता था.. किसान को विवाह तथा जन्म-मरण के अवसर पर भी महाजनों से ऋण लेना पडता था. महाजन ऋण पर अत्यधिक ब्याज वसुलते थे.. जो किसान एक बार महाजन से ऋण ले लेता था व मरते दम तक उसका ऋणी हो जाता था इस कारण किसान उपज का थोडा भाग भी बचत हेतु नही रख पाते थे अतः जब सूखा पड जाता तो वे अत्यंत
दुख से अपना जीवनयापन करते थे.एक रिपोर्ट के अनुसार ब्रिटीशकाल में 80 % तक किसान महाजनों के ऋणी थे..
उपरोक्त लेख को पढते हैं व "जगतसेठौं" के बारे में विस्तृत
जानकारी हासिल करने पर यह पता चलता हैं की इन जगतसेठों ने ईस्ट इंडीय कंपनी आने तक व कंपनी के राज तक भारत में बहुत पैसा लुटा पर जैसे ही क्म्पनी राज खत्म हुआ व भारत का राज
सीधे-सीधे ब्रिटीश महारानी के अधीन आया तब जगतसेठों ने
केवल अपने मतलब के वास्ते हमारे भारत के वीर सपूतों
को क्रांतिकारीयों का चोला पहनाकर स्वतंत्रता के सपने
दिखा कर मैदान में उतार दिया ... इसमे फायदा केवल जगतसेठों का ही था क्योकी महारानी के
अधीन ये जगतसेठ रूपयों-पैसो का हेर-फ़ैर नही कर सकते थे व इसी कारण इन्होने महारानी के अधीन भारत को स्वतंत्र करके
पुरी तरह से अपने अधीन कर दिया...........

श्री अनोपदासजी महाराज अपनी किताब "श्री जगतहितकरनी"
लिखा हैं की- "हिन्दूस्तान में बनियों का डाला नमक पडता हैं"........

अभी भी विश्वास नही होता तो जरा अपने बटुए में हाथ डाल कर देख लो किस महाशय का फोटो नोट पर छपा हैं..ना वो हिन्दू हैं. ना मुसलमान और ना ही कोई अंग्रैज...अंदाजा लगाओं की आप स्वतंत्र भारत में हो या हस्तांतरीत किये भारत में हो.......

राष्ट्र के पिता बनकर जगत जननी माँ धरती को भुलाया और सभी जीवों की माता को जादुई शक्तियों से वश में कर रखा है ।

।। जय धरती माता।।

अधिक जानकारी के लिये पढे- किताब श्री जगतहितकरनी

जगत शेठ तो जगत डुबोवते 
पटवारी करे गाम का पट।

नगर शेठ तो नगर डुबोवते
तीनो ही हरामी नही है घट।।

कामेती वाणिया राज मरावते
आप तो बैठते घरो में दट।

बजारी वाणिया ब्याज करतब कर 
लोगों की इज्जत लेवते फट।।

सोनी हरिचंद झुलना केवते 
सवॅ राजेश्वर समझलो चट।

राक्षसी वाणिया जाल उठावसी माय माय जाल से मरोला कट।।
Hr. deepak raj mirdha
yog teacher , Acupressure therapist and blogger
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भारतीय बैंकर जगत सेठ भारतीय बैंकर जगत सेठ Reviewed by deepakrajsimple on January 18, 2018 Rating: 5

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